कल्पना दुधाल 13वें शीला सिद्धांतकर समृति सम्मान से पुरस्कृत

Update: 2018-04-03 12:03 GMT

पूंजीवाद ने हमारी संस्कृति को इस तरह से विकृत कर दिया है कि अब यह संकट बन गया है, इसने अराजकतावादी संस्कृति का पोषण किया है...

जनज्वार। मराठी भाषा की ख्यात युवा कवि कल्पना दुधाल को उनकी दूसरी काव्य कृति धग असतेच आसपास के लिए 13वें शीला सिद्धान्तकर स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान दिल्ली के मुक्तधारा सभागार में कल्पना दुधाल को शिवमंगल सिद्धान्तकर, मुख्य अतिथि मराठी साहित्यकार शोभा करांडे और मुख्य वक्ता गोपाल प्रधान के द्वारा राग विराग की ओर से दिया गया।

कार्यक्रम में बोलते हुए शिवमंगल सिद्धान्तकर ने कहा कि पूँजीवाद को संकटग्रस्त बतलाने के सूत्रीकरण को हमें अब छोड़ देना चाहिए, क्योंकि आज पूंजीवाद खुद संकट बन गया है। पूंजीवाद अराजकतावादी संस्कृति का विकास करता है। उसके दूसरे आयाम भी है, जिन्हें तकनीकों में देखा जा सकता है कि उसने संस्कृति को कितना आगे बढाया है अथवा उसे विकृत किया है। यह एक लंबी बहस है, जिसके लिए लंबे विमर्श की जरूरत है।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पधारीं शोभा करांडे ने अपने वक्तव्य में कहा की विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन और उसकी उपज पर्यावरण को किस तरह नष्ट किया जा रहा है, इसको चिन्हित करने की जरूरत नहीं है। खुशी की बात है कि कल्पना दुधाल ने जमीन और उसकी उपज के सवाल को काव्यात्मक ढंग से बारीकी के साथ व्यक्त किया है। जिनके नाम पर यह पुरस्कार दिया जाता है, उन शीला सिद्धान्तकर के विद्रोही तेवर से कल्पना की कविताएं भिन्नता के साथ अपना स्थान बनाती हैं।

मुख्य वक्ता डॉ गोपाल प्रधान ने मार्क्स के हवाले से यह बतलाने की कोशिश की कि कल्पना दुधाल की कवितायें खेती के काम करने वाली महिला के आत्मनिर्वासन को ही नहीं, बल्कि विभिन्न प्रकार से सामाजिक कैदी बनी महिलाओं की आज़ादी की सांस लेने की तरफ इशारा किया है।

इस अवसर पर पुरस्कृत कवि कल्पना दुधाल ने अपनी धग असतेच आसपास समेत कई कविताओं का पाठ करते हुए अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया। कार्यक्रम का संचालन रविन्द्र कुमार दास ने किया। इसके अतिरिक्त राग विराग कला केंद्र की ओर से बच्चों द्वारा कथक नृत्य की प्रस्तुति भी हुई, जिसकी कोरियोग्राफी प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना पुनीता शर्मा द्वारा की गयी।

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