सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखा अयोध्या पहुंचे संघ और शिवसेना के गुंडे

Update: 2018-11-24 04:09 GMT

संघ की धर्मसभा को लेकर अयोध्या के मुसलमानों में दहशत है। मुस्लिम बहुत डरे हुए हैं और बड़े पैमाने पर पलायन करने के लिए बाध्य हैं....

सुशील मानव की रिपोर्ट

जनज्वार। अयोध्या के बाज़ारों में वीरानी और सन्नाटा पसरा है। गलियाँ किसी भयानक घटित होने वाले भय की आशंका से रुँआसी बैठी हैं। क़स्बे और मोहल्ले मातमी आँखों से मुसलमानों को अपना घर-बार छोड़कर जाते देखकर गुमसुम और ग़मज़दां हैं। अयोध्या एक बार फिर भगवा हो रही है।

अयोध्या के भगवा होने का मतलब अल्पसंख्यकों के जान की लाले पड़ना है। भगवा उनके लिए सिर्फ खौफ़, मौत, बलात्कार लूट और आगजनी का पर्याय है। आज भगवा आतंक का पर्याय है। 1990 के बाद से अयोध्या में जब भी भगवा जमघट जुटा है सरयू का तट मरघट में तब्दील हुआ है।

अयोध्या और राम मंदिर 1984 के बाद के भारत में सांप्रदायिक दंगों, जनसंहार और आतंकवाद का मूल हैं। हाशिमपुरा और मलियाना कस्टोडियल हत्याएं, मुंबई बम ब्लास्ट, गोधरा कांड और गुजरात मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगे सबके सिरे अयोध्या से ही जुड़े हुए हैं।

अयोध्या मुद्दे ने भारत में घृणा और नफ़रत की राजनीति को परवान चढ़ाया है। हत्यारे सत्ता की सर्वोच्च पर काबिज हैं। दूसरे हत्यारे उनसे प्रेरित होकर उसी रास्ते से चलकर सत्ता तक पहुँचना चाहते हैं। राजनीतिक सफलता अब इस बात पर टिकी है किस जाति, समुदाय या क्षेत्रीयता के प्रति कितना नफरत आप दूसरे पक्ष में पैदा कर सकते है।

विकास के सारे दावे फुस्स हो चुके हैं। हिंदुत्व और राम मंदिर का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है। जाने 2019 तक जाने कितने निर्दोष इसकी लपेट में आएंगे। जाने कितनी हत्याएं और बलात्कार होंगे। जाने कितनी घर और दुकानें जलेंगी। 1990 और 1992 के बाद एक बार फिर अयोध्या में दहशत का माहौल है।

जैसे जैसे विश्व हिंदू परिषद के प्रस्तावित धर्मसभा की तारीख़ (25 नवंबर) नजदीक आ रही है अयोध्या के गलियों-मोहल्लों सड़कों-बाजारों और चौराहों पर मातम की आहट सुनाई पड़ने लगी है। जिन्होंने 1990-92 को देखा, भोगा है उनके जख़्म फिर से हरे हो उठे हैं। वो अपने जवान बेटों-बेटियों को अयोध्या से दूर के रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों के यहाँ भेज दे रहे हैं। मुगलपुरा, गोला घाट, टेड़ी बाजार, अशर्फी भवन जैसे इलाकों के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जीवन की सुरक्षा के लिहाज़ से अपना घर-बार छोड़ दिया है।

बता दें कि इस धर्मसभा में देश को नफ़रत की आग में झोंकने वाले विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, शिवसेना समेत कई दक्षिणपंथी संगठन शामिल हो रहे हैं।

वहीं बाबरी मस्जिद के पैरवीकार रहे हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी का कहना है कि संघ की धर्मसभा को लेकर अयोध्या के मुसलमानों में दहशत है। मुस्लिम समुदाय के लोग बहुत डरे हुए हैं और बड़े पैमाने पर पलायन करने के लिए बाध्य हैं।

हाशिम अंसारी ने बताया कि उन्होंने इसको लेकर जिलाधिकारी को एक ज्ञापन देकर शहर के मुसलमानों को सुरक्षा देने की गुहार भी लगाई है।

गौरतलब है कि 22 नवंबर गुरुवार को विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने शहर के रकाबगंज, फतेहगंज, नाका, चौक जैसे मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से होते हुए बड़ा भक्तमाल की बगिया तक एक जागरुकता रैली निकाली थी। 25 नवंबर की पूर्वनिर्धारित धर्मसभा बड़ा भक्तमाल की बगिया में ही होनी है।

वहीं मुख्यधारा के तमाम टीवी चैनल लगातार रातों-दिन मंदिर-राग अलाप-अलापकर बहुसंख्यक समाज की भावना को उत्तेजित करके माहौल को सांप्रदायिक बनाने के अभियान में लगे हुए हैं। 25 नवंबर को प्रायोजित कार्यक्रम लगातार टीवी चैनलों की मार्निंग न्यूज से लेकर प्राइमटाइम तक में हाहाकार मचाए हुए हैं। जैसे देश में इस समय कुछ और हो ही नहीं रहा।

अयोध्या में हालात बिगड़ने पर प्रशासन की भूमिका क्या होगी, इसे लेकर भी एक तरह का संशय है। बाबरी मस्जिद विध्वंस और हाशिमपुरा-मलियाना के दंगों से लेकर गुजरात दंगों तक में प्रशासन की भूमिका जैसी रही है वो आनेवाले कल की एक बहुत ही खौफ़नाक तस्वीर पेश करती है। पूरा मामला जब सुप्रीम कोर्ट के अधीन चल रहा है, तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं।

भगवा संगठनों द्वारा सत्ता-यज्ञ किया जा रहा है। इस सत्ता-यज्ञ में अल्पसंख्यकों को आहुत करने के लिए राम के बहाने सांप्रदायिकता की आग सुलगाई जा रही है।

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