मायावती ने दिया राज्यसभा से इस्तीफा, कहा जहां बोल नहीं सकती वहां रहकर क्या करूंगी
मायावती ने कहा जब बोलने ही नहीं देंगे तो क्या करूंगी सदन में रहकर, मैंने पूरा जीवन जिनके लिए समर्पित किया है, उनके लिए हर त्याग करने को हूं तैयार
बसपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने मानसून सत्र के दूसरे दिन राज्यसभा की सदस्यता देकर न सिर्फ पूरे देश को चौंका दिया है, बल्कि बहस भी छेड़ दी है कि अगर सदन में सदस्यों को अपनी बात नहीं कहने दी जाएगी फिर वे वहां बैठकर माथा तो चोथेंगे नहीं।
पढ़िए देश की प्रमुख दलित नेता मायावती ने क्यों दिया इस्तीफा, सभापति को संबोधित करते हुए उन्होंने क्या लिखा इस्तीफे में
महोदय,
आज दिनांक 18.7.2017 को हमारी पार्टी बीएसपी द्वारा कार्य स्थगन की नोटिस रूल 267 के तहत दी गई थी और उसमें यह अनुरोध किया गया था कि पूरे देश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और उसमें से खासकर अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के शब्बीरपुर गांव जिला सहारनपुर में हुए दलित उत्पीड़न और उनकी हत्याओं के विषय पर सदन की सभी कार्रवाई रोककर चर्चा कराई जाए।
आज पूर्वाहन 11 बजे जब राज्यसभा की बैठक शुरू हुई तो मैंने माननीय उप सभापति का ध्यान बीएसपी द्वारा दी गई नोटिस की ओर दिलाया और उस पर मुझे बोलने की अनुमति देने का अनुरोध किया।
इस पर माननीय उप सभापति ने कहा कि आपकी नोटिस पर मैं आपको बोलने की अनुमति देता हूं परंतु इस पर तीन मिनट तक ही बोलियेगा। इस पर मैंने उसी वक्त कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है कि जिस पर तीन मिनट में अपनी बात रखी जा सके। राज्यसभा के रूल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि स्थगन नोटिस पर सिर्फ तीन मिनट का ही समय मिलेगा और उसके बाद फिर मैंने अपनी बात रखनी शुरू की।
जैसे ही मैंने अपनी बात सदन के समक्ष रखनी शुरू की तो तुरंत ही सत्तापक्ष की ओर से उनके संसद सदस्यों के साथ—साथ मंत्रीगण भी खड़े हो गए और मुझे बोलने से रोकना शुरू कर दिया तथा मुझे अपनी बात कहने पर वो लगातार अवरोध उत्पन्न करने लगे। बीजेपी के संसद सदस्यों के साथ—साथ मंत्रीगण भी मुझे इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बात न रखने देने के उद्देश्य से लगातार शोर—शराबा और अवरोध उत्पन्न करते रहे।
इसके बावजूद भी मैंने शोर—शराबे के बीच अपनी पूरी बात सदन के समक्ष रखने की पूरी कोशिश की और कहा कि जब से केंद्र में बीजेपी और इनकी एनडीए की सरकार बनी है, तो तब से पूरे देश में और खासकर बीजेपी शासित राज्यों में तो इन्होंने अपनी जातिवादी, साम्प्रदायिक व पूंजीवादी मानसिकता के तहत अपने राजनीतिक स्वार्थ में व अपने नफे—नुकसान को भी सामने रखकर यहां विशेषकर गरीबों, दलितों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, मजदूरों, किसानों एवं मध्यमवर्ग का विभिन्न स्तर पर जो बड़े पैमाने पर शोषण व उत्पीड़न आदि किया है, जो अभी भी लगातार जारी है, तो वह किसी से छिपा हुआ नहीं है।
यह बात कहते हुए
मैंने कहा कि मुझे पूरे सदन का ध्यान खासतौर पर उत्तर प्रदेश में बीजेपी व उनकी सरकार द्वारा एक सोची समझी राजनीतिक साजिश व स्वार्थ के तहत जिला सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में कराए गए दलित उत्पीड़न की घटना की तरफ दिलाना चाहती हूं जिस पर पर्दा डालने के लिए बाद में उन्होंने वहां एक दलित संगठन को भी इस्तेमाल करके उसे जातीय हिंसा का नाम दे दिया था। मैंने इतना ही कहा था कि सत्तापक्ष के ज्यादातर संसद सदस्य और उनके साथ—साथ मंत्रीगण पुन: खड़े हो गए और वो मुझे अपनी बात कहने से रोकते रहे और नारे लगाते रहे। इस बात पर हमारी पार्टी के संसद सदस्यों ने भी माननीय उप सभापति से आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि सत्तापक्ष के लोगों को बैठाया जाए और सदन को सुचारू रूप से चलाते हुए बीएसपी की नेता को अपनी पूरी बात रखने दिया जाए।
परंतु अफसोस के साथ मुझे यह कहना पड़ रहा है कि माननीय उप सभापति ने सत्ता पक्ष के लोगों को शांत कराने की जगह घंटी बजाकर मुझे ही बैठने के लिए कह दिया और मुझे अपनी बात वहीं रोकने के लिए कहा क्योंकि तीन मिनट हो चुके हैं।
इस पर मैंने माननीय उप सभापति से बार—बार यह कहा कि राज्यसभा की रूल बुक में कहीं पर भी यह नहीं लिखा है कि स्थगन प्रस्ताव की नोटिस पर केवल तीन मिनट का ही समय मिलेगा और जो तीन मिनट बीते हैं वह भी ज्यादातर सत्तापक्ष ने शोर—शराबा मचाकर बर्बाद कर दिया और मुझे अपनी बात कहने से रोका गया।
मैंने यह भी कहा कि सहारनपुर कांड कोई मामूली मामला नहीं है। अत: मुझे इस बात को संसद में रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए। परंतु माननीय उप सभापति महोदय से बार—बार अनुरोध करने के बावजूद भी मुझे और मौका दिए जाने मना कर दिया गया।
इस पर मैंने जोर देकर अनुरोध करते हुए यह भी कहा कि अगर सत्तापक्ष अपनी बीजेपी की सरकारों में खुलेआम हो रहे दलितों के उत्पीड़न व हत्याओं के मामलों पर भी मैं राज्यसभा के सदन के अंदर नहीं बोल सकती तो फिर यहां पर मेरा आगे सदन के सदस्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं है और मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूंगी।
लेकिन इसके बावजूद भी उप सभापति ने इस विषय पर मुझे आगे बोलने की इजाजत नहीं दी और इस तरह मुझे मजबूर होकर सदन के अंदर इस बात को दोहराते हुए कि अगर मुझे इस सदन के अंदर मेरे अपने खुद के दलित समाज पर आए दिन हो रहे उत्पीड़न पर भी अपनी पूरी बात रखने की इजाजत नहीं दी जा रही है और चूंकि यहां मैं अपनी बात नहीं रख सकती हूं तो फिर मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूंगी और यह कहते हुए मैं सदन से बाहर आ गई।
माननीय उप सभापति जी मुझे बड़े दुख के साथ इस्तीफा देने का यह फैसला लेना पड़ रहा है कि देश में सर्व समाज में से खासकर जिन गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों व मुस्लिम एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों आदि के हित व कल्याण के लिए मैंने अपनी पूरी जिंदगी समर्पित की है और यदि मुझे इनके हित व कल्याण की भी बात सत्ता पक्ष के लोग अर्थात बीजेपी व इनके एनडीए के लोग नहीं रखने देंगे तो फिर मुझे ऐसी स्थिति में माननीय इस सदन में बिल्कुल भी रहने का औचित्य नहीं रहा है।
इसके साथ ही, यहां मैं यह भी बताना चाहती हूं कि मैंने सन 2003 में भी उत्तर प्रदेश में बीएसपी व बीजेपी की मिली—जुली सरकार में, अपनी पार्टी की विचारधारा एवं सिद्धांतों में बीजेपी का दखल होते हुए देखकर लगभग 15 महीने के अंदर ही मुख्यमंत्री के पद से व इस संयुक्त सरकार से भी इस्तीफा दे दिया था।
ऐसी स्थिति में अब मैंने आज दिनांक 18 जुलाई, सन 2017 को अपने राज्यसभा सदस्य के पद से इस्तीफा देने का फैसला ले लिया है, जिसका मैंने आज माननीय सदन में भी ऐलान कर दिया था।
आपसे अनुरोध है कि आप मेरे इस इस्तीफे को स्वीकार करने का कष्ट करें।
भवदीया
(मायावती)
संसद सदस्य (राज्यसभा)