अपने प्रिय कवियों के बारे में जब मैं सोचता हूं तो कवि से पहले उनकी कविताएं व कविता पंक्तियां जेहन में आती हैं। पहली कविता पाब्लो नेरूदा की 'जहाज' याद आती है -'हम पहले ही/ किराया चुका कर आये हैं इस दुनिया में/ तब क्यों तुम हमें/ बैठने और खाने नहीं देते?...'
पहली बार यह कविता पच्चीस-छब्बीस साल पहले पटना से उस समय प्रकाशित हो रहे दैनिक नवभारत टाइम्स में पढ़ी थी। तब कविता इतनी अच्छी लगी कि इसकी कटिंग संभाल कर रख ली थी। अनुवाद मोहन थपलियाल का था। यह नेरूदा से मेरा पहला परिचय था।
फिर नभाटा में ही सम्पूर्णानंद का किया नेरूदा की कविताओं का अनुवाद पढ़ा। आगे मधु शर्मा, सुरेश सलिल और रामकृष्ण पांडेय द्वारा अनुदित उनकी कविताओं के संकलन पढ़े, जिनमें कुछ कविताएं कविता कोश पर पढ़ी जा सकती हैं।
हाल में नेरूदा पर एक फिल्म देखी, 'द पोस्टमैन'। यह एक प्यारी, सहज फिल्म है जो कवि का जीवन दर्शाती है। माइकल रेडफोर्ड की यह फिल्म 'इल पोस्टिनो : द पोस्टमैन' 1994 में आयी थी, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। माइकल का जन्म दिल्ली में ही हुआ था, फिर वे ब्रिटेन के नागरिक हो गये। इस फिल्म को देख नेरूदा के प्रति मेरा प्रेम और बढ़ गया। 'जहाज' एक लाजवाब कविता है, जिसमें कवि सहज प्राकृतिक बिंबों के माध्यम से अपने विचारों को सामने रखता है। यह आम लोगों की बेहतरी का विचार है। कुमार मुकुल, कवि और पत्रकार - प्रस्तुत है पाब्लो नेरूदा की कविता :
जहाज
हम पहले ही
किराया चुका कर आये हैं इस दुनिया में
तब क्यों तुम हमें
बैठने और खाने नहीं देते?
हम बादलों को देखना चाहते हैं,
हम धूप में नहाना चाहते हैं
और नमकीन हवा को सूंघना चाहते हैं
ईमानदारी से तुम यह नहीं कह सकते
कि हम दूसरों को सता रहे हैं,
यह बहुत आसान है, हम राहगीर हैं
हम सब यात्रा पर हैं और वक्त हमारा हमसफर है
समुद्र गुजरता है, गुलाब के फूल अंतिम विदा कहते हैं
अंधकार और रोशनी के नीचे पृथ्वी गुजरती है
और तुम, हम सभी यात्री गुजरते हैं।
तब तुम्हें सताता है क्या
तुम क्यों इतने गुस्सैल हो
उस पिस्तौल को ताने हुए तुम किसे ताक रहे हो
हम नहीं जानते
कि सब कुछ लिया जा चुका है,
प्याले, कुर्सियां
बिस्तर, आईने
समुद्र, शराब और आसमान।
अब हमसे कहा गया है
कि कोई मेज नहीं है हमारे लिए शेष,
यह नहीं हो सकता, हम सोचते हैं।
तुम हमें आश्वस्त नहीं कर सकते।
तब अंधेरा था, जब हम इस जहाज पर पहुंचे,
हम निर्वस्त्र थे,
हम सभी एक ही जगह से आए थे,
हम सभी औरत और आदमी से आए थे,
हम सभी भूख से परिचित थे और तब हमारे दांत उगे,
काम के लिए हमारे हाथ उगे,
और आंखें यह जानने के लिए कि क्या हो रहा है।
और तुम नहीं कह सकते हमसे कि हम नहीं जानते,
कि यहां जहाज पर कोई कमरा नहीं है,
तुम हलो तक नहीं कहना चाहते,
तुम हमारे साथ नहीं खेलना चाहते।
तुम्हारे लिए इतनी सुविधाएं आखिर क्यों
पैदा होने से पहले ही किसने वह चम्मच तुम्हारे हाथों में सौंप दिए
तुम यहां खुश नहीं हो,
चीजें इस तरह ठीक नहीं होंगी।
मैं इस तरह की यात्रा पसंद नहीं करता
छुपी हुई उदासी को कोनों में ढूंढ़ने के लिए,
और आंखें जो कि प्यार से खाली हैं
और मुंह जो कि भूखे हैं।
इस पतझड़ के लिए कोई कपड़ा नहीं है
और अगले जाड़े के लिए खाक तक नहीं
और बिना जूतों के हम कैसे बढ़ेंगे एक भी कदम
इस दुनिया में जहां कि ढेर सारे पत्थर रास्तों में हैं
बिना मेज के हम कहां खाना खायेंगे,
कहां बैठेंगे हम
जब कोई कुर्सी नहीं होगी
यदि यह एक अप्रिय मजाक है
तो फैसला करो भले आदमियो
यह सब जल्दी खतम हो,
अब गंभीरता से बात करो।
वर्ना इसके बाद समुद्र सख्त है
और बारिशें ख़ून की।