मोदी कैबिनेट ने दी नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी, अगले हफ्ते संसद में किया जाएगा पेश

Update: 2019-12-04 08:41 GMT

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दे दी गई। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में इसे लोकसभा में पास करा लिया था। लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के कारण राज्यसभा में अटक गया था...

जनज्वार। संसद के शीतकालीन सत्र से अलग संसद भवन में ही आज केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बुधवार को नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी मिल गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई इस बैठक में नागरिकता संशोधन बिल पर मुहर लग गई है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद जल्‍द ही गृह मंत्री अमित शाह इस बिल को संसद में पेश करेंगे। इस विधेयक से मुस्लिम आबादी बहुल पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों (हिंदु, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी व इसाई) को भारतीय नागरिकता देने में आसानी होगी। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल (जनवरी में) इसे लोकसभा में पास करा लिया था। लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के कारण राज्यसभा में अटक गया था। दरअसल, विपक्षी दलों ने धार्मिक आधार पर भेदभाव के रूप में नागरिकता विधेयक की आलोचना कर चुके हैं। बिल को लेकर असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों ने आपत्ति जताई थी और कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए थे।

केंद्र सरकार ने इस विधेयक के जरिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाईयों को बिना वैध दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए उनके देश मे रहने के समय को 11 वर्ष से घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया है यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

नागरिकता अधिनियम बिल का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि इस संशोधन के बाद 1985 में किया गया असम करार का उल्लंघन हो जाएगा जिसमें 1971 के बाद से बांगलादेश से आए सभी धर्मों के नागिरकों को निर्वासित करने की बात की गई थी। असम में बीजेपी की गठबंधन पार्टी असम गण परिषद् बिल को स्वदेशी समुदाय के लोगों के सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ बता रही है। कृषत मुक्ति संग्राम समिति एनजीओ और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन भी इस बिल के विरोध में मुखर रुप से सामने आई हैं।

जिसके बाद से भारतीय जनता पार्टी ने अपने सभी सांसदों को संसद में उपस्थित रहने के लिए कहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इस कानून को लाने का वादा किया था। ऐसे में राजनीतिक तौर पर भी बीजेपी के लिये ये बिल काफी अहम है। वहीं केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय जनता पार्टी की संसदीय दल की बैठक में सांसदों से कहा था कि अनुच्छेद 370 बिल के बाद ये बिल काफी अहम है, ऐसे में सभी सांसदों का सदन में रहना काफी जरूरी है।

विधेयक के अनुसार अगर कोई व्यक्ति देश में अवैध रुप से आ जाता है तो उसे जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार ने साल 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में सशोंधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौध्द, जैन, पारसी और ईसाई को छूट दे दी थी। इसका मतलब ये था कि इन धर्माें से संबंध रखने वाले लोग अगर वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उन लोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर , 2014 कोया उससे पहले भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों की भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून- 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक- 2016 संसद में पेश किया गया था।

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