मोदी सरकार की सुप्रीम कोर्ट से मांग, डेथ वारंट के 7 दिन के अंदर फांसी देकर करे कानूनी खामियां दूर

Update: 2020-01-23 05:37 GMT

मोदी सरकार ने कोर्ट से कहा निर्भया गैंगरेप और हत्या के 4 दोषियों को निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, घटना को सात साल बीत चुके हैं, लेकिन दोषी एक के बाद एक याचिका दाखिल कर कानूनी खामियों का फायदा उठा रहे हैं और फांसी टलवा रहे हैं....

जेपी सिंह की टिप्पणी

कानूनी खामियों का सहारा लेकर फांसी की सज़ा को धता बता रहे हत्यारों के विरुद्ध आम जनता में बढ़ रहे गुस्से को देखते हुए केन्द्र सरकार ने डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू की है। केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कल 22 जनवरी को एक याचिका दाखिल कर मांग की है कि कोर्ट आदेश दे कि फांसी की सजा पाए दोषियों की दया याचिका खारिज होने के बाद सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी कर दिया जाएगा और उसके बाद सात दिन के भीतर उन्हें फांसी दे दी जाएगी। इस पर उनके साथी सह अभियुक्तों की पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव याचिका या दया याचिका लंबित रहने का कोई असर नहीं पड़ेगा।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 21 जनवरी 2014 को शत्रुघ्न चौहान मामले में फांसी की सजा पाए दोषियों के पहलू से विचार करते हुए फैसला दिया था और दिशा—निर्देश जारी किये थे, जिसमें यह कहा गया था कि दया याचिका खारिज होने के बाद अभियुक्त को 14 दिन का समय दिया जाएगा। सरकार का कहना है कि कोर्ट ने उस फैसले में यह भी कहा था कि फांसी की सजा पाए दोषी का मामला लटका रहना उस पर मानसिक अत्याचार है। कोर्ट ने वह फैसला दोषी के नजरिये से सुनाया था।

केन्द्र की मोदी सरकार ने न्याय की मांग कर रहे दुर्दांत अपराध के पीडि़तों का हवाला देते हुए कोर्ट से इस बारे में दिशा निर्देश तय करने का आग्रह किया है। सरकार ने शत्रुघ्न चौहान मामले में दिए गए पूर्व फैसले में फांसी के लिए तय की गई 14 दिन की समय सीमा को घटाकर 7 दिन करने का आग्रह किया है।

केन्द्र सरकार की यह याचिका फांसी की सजा पाए दिल्ली दुष्कर्म कांड के दोषियों के मामले को देखते हुए महत्वपूर्ण है। इस मामले के 4 दोषियों को निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। घटना को सात साल बीत चुके हैं, लेकिन दोषी एक के बाद एक याचिका दाखिल कर कानूनी खामियों का फायदा उठा रहे हैं और फांसी टलवा रहे हैं।

स मामले में चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी है। इसके बाद दो दोषियों की क्यूरेटिव याचिका भी सुप्रीम कोर्ट ठुकरा चुका है। एक दोषी मुकेश की दया याचिका भी राष्ट्रपति खारिज कर चुके हैं। निचली अदालत ने चारो को फांसी देने के लिए 1 फरवरी की तारीख तय कर रखी है। लेकिन अभी तक दो अभियुक्तों ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल नहीं की है, जबकि तीन ने दया याचिका नहीं दी है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगर अंतिम मौके पर कोई अभियुक्त दया याचिका या क्यूरेटिव दाखिल कर देता है तो फांसी फिर टल जाएगी।

केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि देश में दुष्कर्म, हत्या आदि के दुर्दांत अपराध दिनोंदिन बढ़ रहे हैं। फांसी की सजा पाए दोषी एक एक कर अर्जी दाखिल कर मामला लटकाते रहते हैं। कोर्ट को न्याय का इंतजार कर रहे अपराध के पीडि़त परिवार के बारे में भी सोचना चाहिए। सरकार की मांग है कि कोर्ट आदेश दे कि पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय समय सीमा के ही भीतर दोषी को क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने की इजाजत होगी। कोर्ट यह भी आदेश दे कि अगर दोषी दया याचिका दाखिल करना चाहता है तो वह डेथ वारंट जारी होने के सात दिन के भीतर ही ऐसा कर सकता है।

ह भी मांग है कि कोर्ट सभी सक्षम अथारिटी जैसे राज्य, जेल अथारिटी तथा अन्य को आदेश दे कि वे दया याचिका खारिज होने के बाद सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी करेंगे और उसके बात सात दिन के भीतर उन्हें फांसी दे दी जाएगी। उनके केस पर इस बात का कोई असर नहीं होगा कि उनके सह अभियुक्तों की पुनर्विचार, क्यूरेटिव या दया याचिका लंबित है। गौरतलब है कि शत्रुघ्न चौहान के फैसले के खिलाफ केंद्र की पुनर्विचार और क्यूरेटिव याचिकाओं को क्रमशः 2014 और 2017 में खारिज कर दिया गया था।

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