डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्वरोजगार, स्टार्टअप का ढोल पीटकर अपनी पीठ थपथपाने वाली भाजपा सरकार देश की प्रतिष्ठित चौबीस कंपनियों को बेचने जा रही है...
मनु मनस्वी
कांग्रेस सरकार के जल, थल एवं वायु में व्याप्त घोटालों से त्रस्त जनता को मोदी के रूप में आशा की जो किरण दिखाई दी थी, उसकी चमक तीन साल बीतते बीतते फीकी पड़ चुकी है।
अब तक भाजपा केवल कांग्रेस सरकार से अपनी तुलना तक ही सीमित रही है और तुलना में भी वह अपनी नाकामी ही छिपा रही है। यदि तुलना की ही जानी है तो कुछ बेहतर करके कांग्रेस को कमतर साबित किया जाता, पर यहां तो प्रधान सेवक जबरन ‘मन की बात’ का काढ़ा जनता को पिला रहे हैं, जिसका कोई छोर समझ नहीं आता कि यह मन की बात किसके लिए है।
कहां तो सरकार का वायदा था कि यहां की अर्थव्यवस्था मजबूत कर विदेशों को टक्कर दी जाएगी, और कहां ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि सरकार देश की कई नामचीन कंपनियों को बेचने जा रही है।
डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्वरोजगार, स्टार्टअप का ढोल पीटकर अपनी पीठ थपथपाने वाली भाजपा सरकार देश की प्रतिष्ठित चौबीस कंपनियों को बेचने जा रही है।
राज्यसभा में सांसद डी राजा द्वारा वित्तमंत्री से पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा गया है कि सरकार 24 पब्लिक सेक्टर कंपनियों को बेचने की योजना को अमलीजामा पहनाने जा रही है। हैरत की बात यह है कि इन कंपनियों में एअर इंडिया, पवनहंस, एचएलएल जैसी कंपनियां मौजूद हैं।
इन कंपनियों को बेचने की है तैयारी |
सरकार इसके पीछे इन कंपनियों के घाटे में चलने का तर्क देकर अपना पल्ला बेशक झाड़ ले, लेकिन इससे वह जवाबदेही से नहीं बच सकती कि जब सरकार के कहे अनुसार नोटबंदी से अथाह कालाधन बैंकों में आ चुका है तो इस धनराशि से क्या पोस्टरबाजी ही की जाएगी या ऐसी कपनियों को घाटे से उबारने के प्रयास किए जाएंगे?
जाहिर है नोटबंदी से कालाधन उगाही के दावे भी जुमला ही हैं वर्ना केन्द्र सरकार को विदेशों से और कर्जा नहीं लेना पड़ता।
क्या यह बेहतर नहीं होता कि बेचने की योजना बनाने में इतनी मुस्तैदी दिखाने की बजाय इन कंपनियों को अन्य सहूलियतें देकर इन्हें घाटे से उबरने में मदद की जाती? बेच देने का मतलब तो हाथ खड़े कर देना ही हुआ ना?