रामजन्मभूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर सवाल खड़े करने के लिए मुस्लिम पक्ष ने मांगी माफी

Update: 2019-09-27 03:28 GMT

अयोध्या में विवादित स्थान के बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर सवाल उठाने को लेकर मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में मारी पलटी, शीर्ष अदालत से वक्त बर्बाद करने के लिए मांगी माफी...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या भूमि विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष 32वें दिन की सुनवाई में अयोध्या भूमि विवाद मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट के लेखकीय दावे पर सवाल करने को लेकर उच्चतम न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उससे माफी मांगी।

मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने संविधान पीठ को बताया कि वे एएसआई रिपोर्ट के सारांश के लेखकीय दावे पर सवाल नहीं उठाना चाहते।

वन ने कहा कि यह उम्मीद नहीं की जाती है कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर हों। रिपोर्ट के लेखकीय दावे और सारांश पर सवाल उठाने की आवश्यकता नहीं है। यदि हमने न्यायालय का समय बर्बाद किया है तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं। उन्होंने कहा कि जिस रिपोर्ट की बात की जा रही है, उसका एक लेखक है और हम लेखन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं।

मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने बुधवार को एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा था कि हर अध्याय एक लेखक ने लिखा है, लेकिन सारांश में किसी का जिक्र नहीं है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि धवन ने अपनी शुरुआती टिप्पणी में कहा है कि उन्होंने रिपोर्ट पर सवाल करने का अपना अधिकार छोड़ा नहीं है, लेकिन न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद सबूतों पर संदेह नहीं किया जा सकता।

मुस्लिम पक्ष की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने गुरुवार 26 सितंबर को एएसआई की रिपोर्ट पर बहस की। उन्होंने कहा कि एएसआई द्वारा वर्णित अधिकांश अवधि का, मंदिर की अवधि से कोई लेना-देना नहीं है (सुंगा, कुषाण, गुप्त आदि)। जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आप सीधे विक्रमादित्य पर बताइए। जस्टिस भूषण ने कहा गुप्त के बाद कोई विक्रमादित्य नहीं था। मीनाक्षी ने कहा विक्रमादित्य का संबंध सुंगा से है, गुप्त से नहीं।जस्टिस भूषण ने कहा वह गुप्त के हैं, आप कृपया फिर चेक करें।

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआई ने खुद स्वीकार किया था कि उसको परतों की पहचान करने में दिक्कत हुई थी। कुल 184 हड्डियां मिली थीं, लेकिन हाईकोर्ट ने सिर्फ 21.2 प्रतिशत का ही अध्ययन किया। उन्होंने नौ सभ्यताओं के आधार पर नौ समयकाल के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि एएसआई ने जिन सभ्यताओं के बारे में बताया है, उनका मंदिर से कोई लेना देना नहीं है। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में सुंगा, कुषाण और गुप्त के समयकाल के बारे में बताया है। कार्बन डेटिंग का इस्तेमाल यह पता करने के लिए किया जाता है कि चीज कितनी पुरानी है, लेकिन एएसआई हड्डियों का इस्तेमाल नहीं करता इसलिए इनकी कार्बन डेटिंग नहीं की गई।

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट में विवादित भूमि के नीचे खुदाई में करीब 50 खंभों पर टिका तीन स्तरीय निर्माण मिला, लेकिन सभी मंजिलें अलग-अलग काल में बनीं। पहला शायद ढह गया या धंस गया तब दूसरा बना। एएसआई ने सिर्फ चार खंभे ही एक्सपोज़ किए थे। जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या यह खंभे 50 मीटर वाली दीवार को सपोर्ट करने को थे? मीनाक्षी ने कहा नहीं, खंभे दीवार से अलग थे। जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या कहीं ये ब्यौरा है कि वो चार खंभे अलग काल में और बाकी 46 खंभे अलग-अलग काल में बने?

ससे पहले उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने एक बार फिर कहा कि 18 अक्तूबर तक सुनवाई खत्म होनी जरूरी है। अगर चार हफ्ते में हमने फैसला दे दिया तो यह एक चमत्कार की तरह होगा, लेकिन अगर सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म नहीं हुई तो फैसला संभव नहीं हो पाएगा।

चीफ जस्टिस ने कहा कि आज का दिन मिलाकर 18 तक हमारे पास साढ़े दस दिन हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि 18 अक्तूबर के बाद एक भी दिन अतिरिक्त नहीं है। इसलिए पक्षकार इसी समय सीमा में सुनवाई पूरी करें।

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