एक आंकड़े के मुताबिक 20 घंटे नेट कर्फ्यू रहने के दौरान तकरीबन 600 करोड़ रुपये का लेन-देन प्रभावित हुआ, जिसमें व्यापारियों को 50 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ...
गौरव कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार, जयपुर। राजस्थान में कांस्टेबल भर्ती में नकल पर रोक लगाने के लिए सरकार ने पूरे प्रदेश पर ‘वेब कर्फ्यू’ लगा दिया, जिससे न सिर्फ करोड़ों नेट यूजर परेशान रहे, बल्कि करोड़ों रुपए का डिजिटल लेन—देन भी इसकी चपेट में आ गया।
गौरतलब है कि इससे पहले तक डिजिटल कर्फ्यू सिर्फ आंदोलनों और दंगों के दौरान सरकार द्वारा लगाया जाता था, ताकि सोशल मीडिया पर लगाम कस अफवाहों पर लगाम लगाई जा सके। मगर कांस्टेबल भर्ती में नकल रोकने का यह तरीका अख्तियार कर शायद सरकार ने यह नई परंपरा भी शुरू कर दी है कि जब भी सरकार नकल रोकने में खुद को असहाय महसूस करे तो पूरा वेब कर्फ्यू लागू कर अपनी नाकामियों को छिपा सके।
गौरतलब है कि नकल रोकने के नाम पर 2 दिनों में 20 घंटे के लिए प्रदेशभर में पूरे राजस्थान में नेट बंद कर करोड़ों का नुकसान किया गया। इससे कैब, ईटिकटिंग, मोबाइल बैंकिंग काफी प्रभावित हुई।
व्यापारियों के मुताबिक इस दौरान उनको करोड़ों रुपये के लेन-देन का नुकसान हुआ, जबकि आम जनता कहती है कि मोबाइल एप आधारित सेवाएं नहीं चलने के कारण उसे सड़कों पर धक्के खाने को मजबूर होना पड़ा।
सरकार के मुताबिक पिछले साल इस परीक्षा में जमकर नकल हुई थी, जिसमें 10 से अधिक एफआईआर और 30 से अधिक गिरफ्तारियां की गईं थीं, इस बार ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं इसलिए पूरे 2 दिन के लिए राजस्थान में डिजिटल कर्फ्यू लागू कर दिया गया।
इस बार कांस्टेबल परीक्षा में राजस्थान के 664 सेंटरों पर करीब 13142 पदों के लिए 15 लाख अभ्यर्थियों ने दो पारियों में परीक्षा दी थी। विशेषज्ञों की मानें तो 20 घंटे नेट कर्फ्यू रहने के दौरान तकरीबन 600 करोड़ रुपये का लेन-देन प्रभावित हुआ जिसमें व्यापारियों को 50 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ।
मोबाइल एप के जरिए आवाजाही को सुगम बनाने वाली मोबाइल टैक्सियां तो इस दौरान खासी प्रभावित रहीं। अंदाजन राजस्थान के अलग—अलग शहरों में लगभग 6 हजार टैक्सियां व बाइक टैक्सियां इंटरनेट के जरिए ओला व उबर कंपनियों से जुड़ी हुई हैं। पीक समय पर इनके चक्का जाम ने जहां यातायात को प्रभावित किया, वहीं डेजी वेजेज पर गाड़ी चलाने वाले ड्राइवरों की आमदनी को भी नुकसान पहुंचा।
अकसर लॉ एंड आर्डर प्रभावित होने की स्थिति में बन्द किया जाने वाला नेट परीक्षा संचालित कराने के लिए भी बंद किया जा सकता है, ये कभी किसी ने सोचा तक नहीं होगा।
खबरों के मुताबिक गृहमंत्री कटारिया परीक्षा को लेकर इतने चिंतित थे कि वह पूरी परीक्षा को भगवान भरोसे ही डाल गए। शायद उन्हें राजस्थान के लोगों का दर्द समझ आया कि 4 साल पूरी व्यवस्था भगवान भरोसे चलने का आलम क्या होता है।
बारिश के चलते परीक्षा केंद्रों तक न पहुंच पाने युवा तो जरूर हताश होगा, क्योंकि पता नहीं लम्बे इंतजार के बाद हुई परीक्षा के बाद कब उसे अगली बार मौका मिले! ऐसा लग रहा था जैसे बेरोजगारों की संख्या देखते हुए राज्य को बेरोजगार पर शोध केन्द्र बनाकर उनकी स्थिति का आकलन करने की जरूरत है। सवाल यह है कि आखिर एक परीक्षा में इतनी भारी संख्या में अभ्यर्थी, ऐसा क्यों?
मामला महज जनसंख्या या सरकारी नौकरी में का नहीं, बल्कि कुछ ओर है। राजस्थान में निकलने वाली भर्तियों का अपना इतिहास रहा है। काफी भर्तियां 2013 के बाद से ही भाजपा सरकार आने के बाद कोर्ट में अटकी हैं। 2013 के चुनाव प्रचार में वसुंधरा द्वारा 5 लाख नौकरी देने का किया वादा वो पूरा नहीं कर पाईं तो इसके पीछे एक ठोस वजह है - वह है भर्ती परीक्षा में कोई न कोई गलती होने पर उसका कोर्ट में पहुंच जाना। कभी आरक्षण प्रक्रिया का पालन नहीं, तो कभी प्रश्न पत्र में गलती! इस तरह अभ्यर्थी को परीक्षा में बैठने का अभ्यास कराकर उसकी स्किल ट्रेनिंग कराई गई।
राजस्थान की सत्ता में 5वें साल का ट्रेंड वसुंधरा जी अच्छे से समझती हैं, तभी तो वह बम्पर भर्ती निकालकर उसे किसी भी तरह से पूर्ण करने की होड़ में जुट गईं। फिर इसके लिए चाहे पूरे प्रदेश में डिजिटल कर्फ्यू ही लागू क्यों न करना पड़े, फिर चाहे उससे आम जनता को कितनी ही परेशानी क्यों न उठानी पड़े।
जो सरकार 4 साल तक बेरोजगार युवा की समस्या को गम्भीरता से नहीं ले पाई, वह आखिरी साल में सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने को चिंतित है। लेकिन इन हालातों में यह आसान नहीं लगता, क्योंकि इस चुनावी गर्मी की मार का खामियाजा सत्ताधारी दल को उठाना पड़ सकता है।
(गौरव कुमार गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय में एमए के छात्र हैं।)