नीतीश कुमार पर दर्ज हत्या के मुकदमे की पूरी ​डिटेल

Update: 2017-07-26 21:21 GMT

नीतीश के इस्तीफे के बाद लालू ने किया है इस हत्या के मुकदमे का जिक्र, कहा पहले नीतीश खुद इस मुकदमे से तो बरी हो जाएं

जनज्वार। नीतीश के इस्तीफे पर पलटवार करते हुए राजद प्रमुख लालू यादव ने कहा कि उनका इस्तीफा पहले से तय था। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार पर मर्डर, आर्म्स एक्ट और नागरिक हत्या का केस है जो भ्रष्टाचार से बड़ा है।

लालू यादव ने कहा कि नीतीश कुमार पर धारा 302 का केस दर्ज है। आखिर ये नीतीश की कैसी इमानदारी है कि वो इस तरह इस्तीफा देकर खुद को पाकसाफ साबित करने की कोशिश करते हैं। पहले वह इस मुकदमें से तो बरी हो जाएं। लालू के मुताबिक 2009 में चूंकि यह मामला फिर से खुल गया था, और तब नीतीश मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे, उन्होंने मामले की सुनवाई रुकवा दी थी। इतना ही नहीं लालू ने यह भी आरोप जड़ा कि नीतीश ने इस मामले को देख रहे जज को भी प्रताड़ित किया था।

क्या है पूरा मामला
17 नवंबर 1991 में पटना जनपद के पांडरक में एक मतदान बूथ पर कांग्रेस कार्यकर्ता सीताराम सिंह की हत्या कर दी गई थी, जिसमें नीतीश कुमार और एलजेपी के एक विधायक दूलचंद यादव के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से सशस्त्र दंगा), 149 (गैरकानूनी विधानसभा), 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था। यह मामला मृतक के रिश्तेदार द्वारा दायर याचिका के बाद दर्ज किया गया था, जिस पर अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रंजन कुमार ने 1 सितंबर, 2009 को एक आदेश पारित कर दोनों आरोपियों को कोर्ट में तलब किया था।

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा था कि, "आरोपियों के खिलाफ वोट देने के लिए सीताराम सिंह की हत्या और चार लोगों पर गोलीबारी का आरोप है।"

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ 1991 में एक कांग्रेस नेता की हत्या में सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करने पर आरोप लगाते हुए 14 अक्टूबर को पटना हाईकोर्ट में एक आपराधिक रिट याचिका दायर की गई थी।

इस रिट याचिका कांग्रेस के कार्यकर्ता सीताराम सिंह की मां शैल देवी और भाई ने दायर की थी, जिनकी 17 नवंबर 1991 में पटना जनपद के पांडरक में एक मतदान बूथ पर हत्या कर दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार ने इस मामले में गवाहों को प्रभावित करने और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की थी।

एक अदालत से बरी पर मुकदमा कायम

याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अदालत में तब कहा था कि उनके क्लाइंट के मामले की जांच बाहर की एजेंसी द्वारा जांच किए जाने की मांग की थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस मामले का निष्पक्ष मुकदमा और जांच उन्हें बिहार में संभव नहीं लगती। गौरतलब है कि बाढ़ अदालत ने इस मामले से नीतीश कुमार को बरी कर दिया था, क्योंकि कोर्ट के मुताबिक इस मामले में नीतीश के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे।

हालांकि कोर्ट ने 31 अगस्त, 2009 को शिकायत पर संज्ञान लेते हुए 10 सितंबर, 2009 को नीतीश को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था, क्योंकि एक प्रमुख गवाह रामानंद सिंह ने इसमें नीतीश की संलिप्तता को जाहिर किया था।

नीतीश कुमार ने तब इस मामले को पटना हाइकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद बाढ़ अदालत में उनके खिलाफ सभी कार्रवाइयां रोक दी गयी थीं।

Similar News