गांधी के विचारों का इस्तेमाल अब ​दंगे के ​लिए

Update: 2017-08-11 11:23 GMT

धर्म परिवर्तन के मसले पर दंगाई माहौल तैयार करने के लिए जैसा इस्तेमाल झारखंड सरकार ने विज्ञापन में गांधी जी के विचारों को छापकर किया है, उसे देख आप कह सकते हैं कि भाजपा ने पहला धर्म परिवर्तन गांधी का किया है...

रांची, जनज्वार। कई बार सही विचार भी जब गलत समय और संदर्भ में उपयोग किए जाते हैं तो वह शांति और प्रगति के बजाए समाज की बर्बादी में भी इस्तेमाल हो सकते हैं। फिलहाल गांधी के विचारों के साथ भाजपा यही कर रही है। विचार सही है या गलत इसकी जांच उसके इस्तेमाल से होती है और अब भाजपा गांधी के विचारों का इस्तेमाल कर झारखंड और देश के दूसरे आदिवासी क्षेत्रों में फसाद करने की तैयारी में है।

झारखंड की रघुबर दास सरकार ने राज्य के आज सभी प्रमुख अखबारों को एक विज्ञापन जारी किया है, जिसमें मुख्यमंत्री रघुबरदास की फोटो के साथ गांधी जी के विचार लिखे गए हैं। ऊपरी तौर पर देखने से विचारों को देख ऐसा लगता है कि मानो गांधी के इस विचार से भाजपा कोई संदेश देना चाहती है, पर देश के मौजूदा हालात के मद्देनजर गांधी द्वारा लगभग 70—75 साल पहले कही गई बात का आज इस्तेमाल किया जाना गहरे संदेह पैदा करता है।

गांधी जी पर लिखी प्रसिद्ध पुस्तक 'पहला गिरमिटिया' के लेखक और व्यास सम्मान प्राप्त गिरिराज किशोर ने जनज्वार से बातचीत में कहा, 'आश्चर्य है कि गांधी ने जो बात एक समय में खास सदंर्भों में कही थी, आज उसका इस्तेमाल भाजपा अपनी गंदी और फसादी राजनीति को फैलाने के लिए कर रही है। इस पूरे विज्ञापन का आज कोई संदर्भ नहीं है।'

गिरिराज किशोर आगे कहते हैं, 'एक आदिवासी राज्य में आदिवासी से ईसाई बने लोगों को लेकर छपा यह विज्ञापन भविष्य की किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा करता है। आने वाले समय में ईसाई आदिवासियों पर धार्मिक हमलों से इनकार नहीं किया जा सकता। ओड़िसा और झारखंड में ऐसी घटनाएं पहले हो चुकी हैं। अगर गांधी के नाम पर ऐसा हुआ तो आने वाली पीढ़ियां भूल जाएंगी कि गांधी का पहला धर्म सत्य और अहिंसा था।'

यह छपा है विज्ञापन में

विज्ञापन में लिखा गया है कि, 'यदि ईसाई मिशनरी समझते हैं कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण से ही मनुष्य का आध्यात्मिक उद्धार संभव है तो आप यह काम मुझसे या महादेव देसाई (गांधीजी के निजी सचिव) से क्यों नहीं शुरू करते। क्यों इन भोले—भाले, अबोध, अज्ञानी, गरीब और वनवासियों के धर्मांतरण पर जोर देते हो। ये बेचारे तो ईसा और मोहम्मद में भेद नहीं कर सकते और न आपके धर्मोपदेश को समझने की पात्रता रखते हैं। वे तो गाय के समान मूक और सरल हैं। जिन भोले—भाले, अनपढ़ दलितों और वनवासियों की गरीबी का दोहन करके आप ईसाई बनाते हैं वह ईसा के नहीं (चावल) अर्थात पेट के लिए ईसाई होते हैं।'

जाहिर है यह विज्ञापन धर्म परिवर्तन रोकने के नाम पर ईसाइयों और वहां अन्य अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमले को जायज ठहराएगा और आम समाज में अल्पसंख्यकों को लेकर होने वाले हमलों पर गांधी के बहाने आम सहमति बनाएगा।

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