3 विश्वविद्यालयों के वीसी समेत 208 अकादमिकों ने लिखा पीएम मोदी को पत्र कि वामपंथी बिगाड़ रहे हैं शिक्षा का माहौल
पीएम मोदी को 208 अकादमिक विद्वानों की तरफ से लिखे गये पत्र जिसमें 3 यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर भी हैं शामिल, में कहा गया है वामपंथियों द्वारा लगाई गई सेंसरशिप के चलते स्वतंत्र रूप से कुछ भी बोलना और कोई सार्वजनिक कार्यक्रम करना हो गया है मुश्किल....
जनज्वार। अभी NRC-CAA को लेकर देश के 106 पूर्व नौकरशाहों द्वारा मोदी सरकार को लिखे पत्र का मामला शांत भी नहीं हुआ है कि 208 एकेडमिशिनों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने की बात सामने आ रही है। इस पत्र में इन माननीय अकादमिक विद्वानों ने कहा है कि लेफ्टिस्ट शिक्षा के माहौल को खराब कर रहे हैं। उनका इशारा जेएनयू, एमयू, जामिया में मची हिंसा से है, जिसके लिए वे वाम रूझान वाले लोगों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने वाले में कई ख्यात विश्वविद्यालयों के चांसलर भी शामिल हैं।
जानकारी के मुतातिबक अकादमिक विद्वानों ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा है, 'हमारा मानना है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स के नाम पर अतिवादी वामपंथी एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है। हाल में ही जेएनयू से जामिया और एएमयू से जाधवपुर यूनिवर्सिटी तक में सामने आई घटनाओं से पता चलता है किस तरह से अकादमिक माहौल को खराब किया जा रहा है। इसके पीछे लेफ्ट ऐक्टिविस्ट्स के एक छोटे से वर्ग की शरारत है।'
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पीएम मोदी को लेफ्टिस्टों के विरोध में पत्र लिखने वालों में कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर भी शामिल हैं। पत्र में इन एकेडमिशियन ने लेफ्ट विंग को निशाना बनाकर कहा है कि लेफ्ट एक्टिविस्ट्स की मंडली देश में शिक्षा जगत के माहौल को खराब करने में जुटी है।
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पीएम मोदी को वाम रूझान वालों के विरोध में इस पत्र को लिखने वालों में हरि सिंह गौर यूनिवर्सिटी के कुलपति आरपी तिवारी, साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति एचसीएस राठौर और सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के वीसी शिरीष कुलकर्णी शामिल का नाम भी शामिल है। 'शिक्षण संस्थानों में लेफ्ट विंग की अराजकता के खिलाफ बयान' शीर्षक से लिखे गए पत्र में कुल 208 अकादमिक विद्वानों के हस्ताक्षर की बात सामने आ रही है।
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गौरतलब है कि अभी कुछ दिन पहले ही 106 पूर्व नौकरशाहों ने मोदी सरकार को सीएए और एनआरसी पर आपत्ति जताते हुए पत्र लिखा था। अब उसके ठीक बाद यानी CAA-NRC के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों और जेएनयू में हुई हिंसा के बाद लिखे गए इस पत्र को प्रायोजित माना जा रहा है।
वाम दलों से जुड़े समूहों पर आक्रामक होते हुए लिखे गये पत्र में कहा गया है लेफ्ट विंग राजनीति द्वारा लगाई गई सेंसरशिप के चलते स्वतंत्र रूप से कुछ भी बोलना और कोई सार्वजनिक कार्यक्रम करना मुश्किल हो गया है।