कांग्रेस ने टिहरी डैम बनाया, भाजपा पंचेश्वर बनायेगी

Update: 2017-08-14 14:17 GMT

खबर है कि पंचेश्वर बांध का निर्माण चीन की टॉप कंस्ट्रशन कंपनियां करेंगी। 2000 चीनी लोगों में से 500 तो यकीनन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रशिक्षित जासूस—फौजी होंगे। 5 साल तक वो यहां रहेंगे, तो यहां की पूरी रेकी कर के ले जाएंगे...

दीप पाठक

सुना है पंचेश्वर बांध का ठेका चीन की टाप कंस्ट्रशन कंपनियों को मिला है। वो तय समय से पहले काम पूरा करने में माहिर हैं। उनके लगभग 2000 कर्मचारी इंजीनियर आते हैं, सीमेंट सरिया यहीं की और जेसीबी, टीबीएम जैसी महंगी मशीनें वो सरकार से चीन में बनी खरीदवाते हैं, फिर नेपाली लेबर लगाते हैं। नक्शे ड्राईंग के हिसाब से खोदना, सीमेंट—सरिया—गारा—तगार—चिनाई शुरू करवा देते हैं। यहां से शुद्ध पेमेंट डॉलर में लेके निकल लेते हैं। टेंडर भी उनका और ठेकेदार कंपनियों से 100 करोड़ कम में हुआ होगा, तभी उनको काम मिला।

खैर, 2000 चीनी लोगों में से 500 तो यकीनन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के प्रशिक्षित जासूस—फौजी होंगे। 5 साल तक वो यहां रहेंगे, तो यहां की पूरी रेकी कर के ले जाएंगे। नेपाल और पाकिस्तान में चीनी भाषा सिखाने, चीनी टीवी चैनल को लोकप्रिय बनाने का काम चल रहा है। इस बार चीन सांस्कृतिक रूप से भी तैयारी कर रहा है।

कांग्रेस ने टिहरी डैम बना दिया, भाजपा पंचेश्वर बनायेगी ही। सरकार जब भारी निवेश तय कर देती है तो फिर विरोध नहीं सुनती। उससे निपटने को आंदोलन तोड़क बहुत सी राज्य मशीनरी सक्रिय हो जाती है। यहां पर्यावरण पर आकलन करने वाले ब्रिटिश, फ्रैंच जैसे वैज्ञानिक-पर्यावरणविद नहीं हैं, जो हैं वो बहुत मोटी अधिभौतिक सोच वाले हैं। ना फ्रांस की अदालतों जैसी अदालतें हैं, जिन्होंने पर्यावरण की चिंता के मद्देनजर अरबों—खरबों डॉलर के प्रोजेक्ट ठप्प कर दिये।

पंचेश्वर बांध बने या न बने, ये बड़ी समझ का मामला है। सरकार और अदालतें इस समय एकतरफा हैं। पहले भी ऐसे मेगा प्रोजेक्ट पर सरकारों के पक्ष में ही फैसले आये हैं। मुझे नहीं लगता देश की उर्जा जरूरत के नाम पर बनने वाला ये डैम रद्द हो सकेगा। जन सुनवाई का हाल हम देख ही रहे हैं!

अगर बांध बनना ही है तो पहले भाबर-तराई में सरकार सीलिंग की जमीनें या जंगल का रकबा काटकर सारी चीजें स्कूल, अस्पताल, सड़क, बिजली, पानी, खेती, बाजार, शमशान आदि बनाकर पहले दे, फिर बांध बनाये। पर यहां ऐसा होता नहीं। सब हाबड़-ताबड़ के साथ होता है। मुख्य चीज विस्थापन को पहले तय होना चाहिए, पर्यावरण की चिंता पर आजकल मुनाफा भारी है।

ढंग से जनहित याचिका बनाओ, भौतिक आकलन करो, विज्ञानसम्मत अकाट्य लॉजिक बनाओ, फिर ढंग का वकील खड़ा करो, जो पढ़ता और समझता हो, जज की कुर्सी तो लॉजिक से हिल जाती है।

सरकार के टॉप वकील देखे ही हैं मुकुल रोहितगी, कपिल सिब्बल, जेटली, राम जेठमलानी, रविशंकर, ये सब बनियों के मुनीम टाईप लगते हैं। न्याय तंत्र एक लॉबी में बदल जाता है... पैसे में बहुत ताकत होती है।

होने को तो मैं भी बांध की ड्राईंग बना दूं, बांध की लागत निकाल दूं अरबों—खरबों की बात कर दूं, पर आम जन के लिए दो हजार रुपए भी बहुत होते हैं। जो लाखों—करोड़ों में रोज व्यवहार करते हैं, उनके सामने आम लोगों की कोई औकात नहीं है।

हूवर डैम से लेकर थ्री गौजियस डैम तक सब बता देंगे, रद्द हुई परियोजनाओं की नजीर भी बता देंगे, पर हम ने पैसा देखा नहीं है। पचास हजार इकठ्ठे मिल जायें तो पेट खराब हो जाएगा। ऐसे ही अगर किसी आंदोलनकारी को एक करोड़ दे दे सरकार की बारगैनिंग लॉबी वाला ठेकेदार केस वापस लेने को, तो वो न सिर्फ वो केस वापस लेगा बल्कि बाकी जिंदगी उसके मुंह से आवाज भी नहीं निकलेगी।

रही बात कम्युनिस्टों की तो इनको चीन के दलाल, माओवादी, उग्रवादी बताकर देशद्रोह में बंद कर देगी सरकार।

(दीप पाठक विभिन्न सामाजिक—राजनीतिक मसलों पर लेखन करते हैं।)

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