अजय प्रकाश न केवल प्रखर पत्रकार हैं, बल्कि सामाजिक यथार्थबोध के तीक्ष्ण कहानीकार भी हैं। वह कम ही कहानियां लिखते हैं और कम ही छपवाते हैं। हालांकि तमाम पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका कथ्य बहुत स्पष्ट होता है और उनकी कहानियां पाठकों में एक दिलचस्पी भी पैदा करती है। प्रस्तुत कहानी 'पीरबाबा' एक लोक मिथक के निर्माण की सुंदर कहानी है, जिसमें एक अनजान स्त्री और पहलवान के अकस्मात परिचय के संयोग से एक अनोखी प्रेम कहानी का जन्म होता है। अजय ने बहुत सहज ढंग से कहानी को विकसित किया है और घटनाक्रम का सुंदर संयोजन कर उसे उत्कर्ष तक पहुंचाया है। पाठक इस कहानी के क्लाइमेक्स की उत्सुकता से प्रतीक्षा करता है और इस कहानी के अंत ने एक लोक मिथकीय चरित्र का निर्माण किया जो एक पीर बाबा में रूपांतरित कर देता है। यह पहलवान नई आर्थिक नीति के बाद पैदा हुआ ताकतवर पहलवान नहीं, बल्कि यह पुराने जमाने का पहलवान है, जिसमें एक गहरी संवेदना और मानवीय गुणों का स्पर्श है, जो एक स्त्री को मरने से बचाता है, पर खुद मर जाता है। आइए पढ़ते हैं अजय प्रकाश की कहानी 'पीरबाबा' : विमल कुमार, वरिष्ठ पत्रकार और कवि
पीरबाबा
इलाहाबाद से नैनी होते हुए शंकरगढ़। यह वही रास्ता है जिस पर कवि निराला ने पत्थर तोड़ती महिलाएं देखी थीं। उसके बाद किसी कवि ने उन महिलाओं देखा हो, इसका कोई प्रमाण प्रचलित कविताओं में नहीं मिलता है। यह उसी सड़क पर एक रात की कहानी है, जहां उस औरत की जिंदगी बदल गयी।
दिनभर काम करने के बाद जब वह शाम के भोजन का जुगाड़ कर चौराहे पर पहुंची तो अंधेरा हो चुका था। अंधेरे के साथ कोहरे के घालमेल ने सड़क की वीरानी और बढ़ा दी थी। दस फर्लांग का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था। उसने आसपास निगाह डाली तो टाट-ठठरी की दुकानें बंद हो चुकी थीं। जिन दो-तीन दुकानों में हरकत हो रही थी वह लोग भी चट्टी-बोरों से दुकानों को ढंकने में लगे थे। अब पूछे भी तो किससे कि टेंपो आकर गया कि नहीं?
पिछले छह महीने से वह रोज इसी चौराहे से होकर गुजरती थी। आज अफसोस कर रही थी, काश इतने महीनों में चौराहे के किसी एक दुकानदार को भी जान पायी होती। जानती तो पूछ लेती कि टेंपो गया है या आनेवाला है। चौराहे से उसके गांव की दूरी पांच किलोमीटर थी, पक्का पांच किलोमीटर। उसके गांव की यह विशेषता इलाके में कई बार तफरी के वक्त सामान्य ज्ञान का सवाल बन जाया करती थी। चौराहे से जाने वाले टेंपो जहां खड़े किये जाते थे वहां दूरी नापने वाले पत्थर पर शून्य लिखा था। शून्य से चला टेंपो ठीक पांच किमी लिखे पत्थर के सामने जहां खड़ा होता तो वहां इसी महिला का घर होता। पांच किमी की वजह से रोज साथ जाने वाली सवारियां मजाक में इस महिला को किमी कहा करती थीं।
तो हम भी खड़ी महिला को इस या उस कहने की बजाय किमी से ही संबोधित कर लेते हैं। किमी सिर आगे झुकाकर बार-बार उस आखिरी टेंपो के आने की राह तक रही थी जो रेडियो में खेती-किसानी कार्यक्रम के बाद ही यहां से जाया करता था। जैसे ही रेडियो बोलता- पंचो... अब चौपाल... उसके बाद तीन बार रेडियो सीटी जैसा आवाज करता और ड्राइवर रस्सी बांधने पीछे की ओर चल देता। ड्राइवर रस्सी बांधने इसलिए जाता कि चौराहे का हर टेंपो चाभी की बजाय रस्सी फ्रेंडली था।
अंधेरे और कुहासे के बीच खड़ी किमी को तभी लगा कि सामने से कोई गाड़ी आ रही है। अब वह कान लगाकर टोह लेने लगी कि धक-धक की आ रही आवाज टेंपो की है या किसी और गाड़ी की। आवाज की नजदीकी बढ़ी तो किमी को साफ हो गया कि या तो यह ट्रैक्टर है, नहीं तो टेंपो। टेंपो में पंपसेट का इंजन लग जाने से वह ट्रैक्टर की ही तरह आवाज करता है, इसलिए फर्क करना मुश्किल हो रहा था।
किमी जितने भगवानों को जानती थी उनसे दुहाई करती रही कि टेंपो ही आये। दुहाई में बस एक भगवान छूट रहे थे, जिन्हें वह कई बार हाल ही में टीवी में देख चुकी थी। तभी उसे याद आया और बड़बड़ाई ‘दुहाई साईंबाबा’ मुंह से दुहाई साईंबाबा की पुकार निकली ही थी कि नजदीक आ रही गाड़ी में बज रहे गाने ‘तनी सा जिंस ढीला करअ, गोरिया तु रसलीला करअ’ और गाड़ी की धक-धक की आवाज के आपस में गड्डमड्ड होने से कुछ साफ समझ में नहीं आ रहा था कि गाड़ी कौन सी है।
गाने और गाड़ी की गड्डमड्ड बढ़ती गयी, लेकिन इस बीच किमी का अंदाजा निश्चितता में बदल गया। सामने से फर्लांगभर की दूरी पर ट्रैक्टर आता दिखा। ट्रैक्टर की एक ही हेडलाइट जल रही थी, इसलिए किमी ने कुछ सेकेंड अपने को झुठलाने में लगाये कि एक लाइट तो टेंपो की ही होती है, ट्रैक्टर में कहां। पास आते ट्रैक्टर और मन को झुठलाने के अंतराल में सेकेंडों का एक वक्त ऐसा भी आया जब किमी ने ट्रैक्टर रोकने के लिए हाथ आगे बढ़ाया।
ट्रैक्टर रुक गया। किमी ट्रैक्टर के नजदीक पहुंची। ड्राइवर ने सिर झुकाकर कुछ पूछा। ट्रैक्टर और गाने की तीखी आवाज के बीच यह नहीं पता चल सका कि उनके बीच क्या बात हुई, लेकिन वह पीछे हटी। किमी के पीछे हटते ही ड्राइवर ने गेयर और गाने को एक साथ बदला और कुछ सेकेंड तक ड्राइवर एक्सीलेटर को पैर से दाबे रहा। जब ट्रैक्टर के इंजन की आवाज गाने को दबाने लगी तब जाकर उसने एकाएक क्लच छोड़ा।
क्लच छोड़ते ही अगला पहिया एक कुदाक लेकर धधड़ाते हुए किमी के सामने से पार हो गया। फिर भी वह उसी ओर देखती रही। वह ट्रैक्टर के रुकने का तब तक इंतजार करती रही जब तक वह आंखों से ओझल न हो गया। ओझल हो जाने के बाद वह तमाम देवी-देवताओं से अपील करने लगी कि वे ड्राइवर का बुरा करें।
किमी अब बड़बड़ा रही थी, ‘धिंगड़ा कहीं का। ड्राइवर तो होते ही ऐसे हैं कि मौके पर नखरा नवाजें। उसकी भी तो मां-बेटी होगी। कहता है नहीं बैठायेंगे, आगे रिश्तेदारों को बैठा रखे हैं। एक टेंपो के कारण उसके सामने गिड़गिड़ाना पड़ा। अब कहां कोई गाड़ी आयेगी? मैं तो पीछे बैठने को तैयार थी ट्राली पर। ऊपर से किराया भी दे रही थी। भला कोई ट्रैक्टर का किराया देता है क्या...? फिर भी नहीं बैठाया... कहता है मुझे नहीं पहचानता। तो मैं क्या कोई उठाईगीर हूं या उढ़र-भाग के आयी हूं... धिंगड़ा कहीं का।’
बहुत देर तक वह ड्राइवर को कोसती रही। फिर उसे एहसास हुआ कि एक ही बात बेमतलब दोहराये जा रही है। कोसना बंद करते ही घर पहुंचने को लेकर मन में उठ रही आशंकाएं, घर न जा पाने के डर में तब्दील हो गयीं। चौराहे पर खड़ी यह औरत जो अब तक घर, बच्चे, पति, ढोर-डांगर और जाने के बारे में सोच रही थी वह एकाएक खुद को रात में अकेली महसूसने लगी। उसकी सारी सोच यहां आकर टिक गयी कि रात कटेगी कैसे? डरते हुए ही उसने चारों ओर एक बार खुद को संभालने के लिए नजर दौड़ाने की सोची।
अभी वह उसी ओर मुंह करके खड़ी थी जिस दिशा में ट्रैक्टर जा चुका था। ट्रैक्टर की उम्मीद छूटी तो उसके शरीर में थोड़ी हरकत हुई और उसे लगा कि रात पर कोहरा तेजी से गहराने लगा है। कोहरा घना होने के अहसास ने किमी के शरीर को एकाएक ठंडाना शुरू कर दिया और शरीर में हुई हरकत, डर के मारे फिर एक बार सुन्न हो गयी। अब उसने खुद को सुरक्षित समझने के लिए चारों ओर देखना मुनासिब समझा। इस चेतना को लिए वह डर से लड़ने की कोशिश में दाहिने घूमने को हुई, लेकिन शरीर ने हरकत नहीं की। देखकर कहा जा सकता था कि उसके शरीर में डर समा चुका था और मन अभी भी अनजान डर से लगातार लड़ रहा है।
किमी फिर बड़बड़ाने लगी, ‘डरना क्या है। कोई मैं बाहरी तो नहीं। इसी चौराहे पर रोज गांव-घर वाले जमे रहते हैं। बता दूंगी फलां गांव के प्रधान के यहां की रहने वाली हूं। रामनिहाल प्रधान को कौन नहीं जानता... पांच गांव की थाना-पुलिस, फौजदारी-दीवानी से लेकर चोरों का इंसाफ भी हमारे गांव के प्रधान के घर ही तो निपटता है।’
जब उसे तसल्ली हो गयी कि वह चौराहे पर अकेले नहीं, बल्कि गांव के प्रधान की ताकत के साथ खड़ी है तो तपाक से दाहिने मुड़ी। गांव के प्रधान की ताकत को याद कर खुद को रतजगा के लिए तैयार कर रही किमी इस बार मन और शरीर दोनों को मिलाकर मुड़ी थी। मगर जैसे झटका देकर उसने अपने को दाहिने ओर मोड़ा था, उससे कई गुना तेजी से वह फिर उसी दिशा में पहले की तरह खड़ी थी। आखिर हुआ क्या?
किमी थरथरा रही थी। उसने दाहिने बगल क्या देखा था उसके दिमाग में साफ-साफ नहीं उभर रहा था। बस उसे इतना लगा कि आफत सामने है। सोच रही थी आदमी होता तो कुछ बोलता। यह तो ऐसे खड़ा है जैसे खंभा हो। पता नहीं मोटर साइकिल कहां से लाया। अब किमी को मोटरसाइकिल के पास खड़ा प्रतिबिंब पूरा भूत नजर आ रहा था। उसने अब गांव के प्रधान को छोड़, बलशाली देवताओं को तेजी से याद करना शुरू कर दिया।
मोटर साइकिल के पास खड़ा प्रतिबिंब एक पहलवान सरीखा आदमी था जिसकी घनी मूछें थीं और उसने कमीज और लुंगी पहन रखी थी। अब दृश्य यह था कि लगभग पन्द्रह फिट चौड़ी सड़क के उस पार किमी खड़ी थी और दूसरी तरफ बुलेट मोटरसाइकिल लिए लुंगीधारी पहलवान। कुछ देर की चुप्पी के बाद पहलवान ने बुलंद आवाज निकाली, ‘इतनी रात गये कहां जाना है। तेरे साथ कोई और भी है कि अकेली है।’
किमी ने पहलवान की आवाज तो सुनी, लेकिन उसने यह भी सुन रखा था कि भूत भी बोलते हैं और कई बार तो वह लड़ते भी हैं और अपने साथ पाप के भागीदार बनाते हैं। सो उसने कोई जवाब नहीं दिया और तेजी से एक-दूसरे में जोड़-साटकर मंतर पढ़ने में अपने को रमाने लगी।
इधर पहलवान को लगा कि औरत सहम रही है। वह सड़क पार किमी के पास पहुंचा और दुबारा पूछा, ‘कौन गांव की हो।’ वह इस बार भी नहीं बोली। पहलवान को संदेह हुआ। फिर पहलवान ने उसका हाथ पकड़ अपनी ओर घुमाते हुए पूछा, ‘का दिक्कत है, बताये काहे नहीं रही हो। कौन गांव जाना है, क्या बात है।’
पहलवान ने जब किमी का हाथ पकड़ा तो उसने सिहरन महसूस की। उसे भरोसा हुआ कि यह भूत नहीं है। पहलवान के बांह थामने पर आदमी का अहसास उसे इसलिए हुआ कि किसी ने कभी यह नहीं बताया था कि भूतों के छूने का अहसास कैसा होता है। पहलवान को देख किमी के शरीर ने फिर एक बार हरकत महसूस की। पहलवान के पास होने के अहसास ने उसके भीतर वह सारे अहसास भर दिये जो ट्रैक्टर जाने से पहले था।
हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘का बताऊं? रामनिहाल प्रधान के गांव की हूं। नरेगा में मजदूरी को गयी थी। आज आने में देर हुई तो चौराहे से टेंपो ही निकल गया। पता नहीं कितनी रात हो गयी, कोई सवारी ही नहीं कि जाऊं। वो अभागा ट्रैक्टर वाला है कि...। ’
‘तो ट्रैक्टर वाला तुम्हें उतार काहे दिया?’ पहलवान ने पूछा।
किमी- ‘उतारा कहां, वह तो बैठाकर ही नहीं ले गया। मेरे गांव की ओर ही जा रहा है, लेकिन कहता है, नहीं बैठायेंगे।’
पहलवान-‘उ काहे, सरउ हीरो बन रहा है का। रात गये अकेली औरत को ऐसे कैसे छोड़कर चला जायेगा। बस इतना बताओ कि उ ट्रैक्टर तुम्हारे गांव की ओर जायेगा कि नहीं, बाकी तो हम देख लेंगे।’
किमी- ‘हां, हमरे आगे वाला गांव का ट्रैक्टर है। हम उसको पहचानते हैं, रोज काम की जगह पर ईंटा लेकर आता है।’
पहलवान-‘अच्छा तो अब देर न करो, हमारे बुलेट पर बैठो। ट्रैक्टर ही तो है, कोई मंत्री जी की सफारी तो है नहीं कि पांव लगी के लिए आगे बढौ भी न कि गाड़ी हवा में उड़ने को होती है। सरवा ट्रैक्टर है, थोड़ी दूर बढ़ा होगा। आओ जल्दी करो, तुम्हें हम उस पर बैठवा देंगे।’
किमी तेज कदमों से पहलवान के पीछे हो ली। बुलेट स्टार्ट हो गया तो पहलवान ने पूछा-‘चलें।’
किमी-‘अरे, नहीं-नहीं। इस पर बैठें कैसे, हम तो कभी ऐसी गाड़ी पर बैठे नहीं हैं।’
किमी की बात सुनकर पहलवान हंसा और बुलेट से उतरकर उसे पीछे हटने को बोला। वह अचकायी सी पीछे हटी तो अबकी बार पहलवान ने उस मजदूरिन को पूरी आंख देखा। पांव से जमीन छोड़ती गुलाबी साड़ी पहने, कसे बदन की वह औरत बीस-बाइस साल की रही होगी, जिसका रंग गहरा सांवला था। पहलवान को किमी के चेहरे पर रात में आंख के अलावा बस दांत ही समझ में आये थे।
पहलवान ने किमी को निहारते हुए ही बुलेट स्टैंड पर खड़ी की और बैठकर दिखाया कि ऐसे उछलकर बैठ जाओ। पहलवान ने दोनों हाथों से बुलेट थामी और बड़ी मुश्किल से किमी उस पर बैठ पायी।
तेज एक्सीलेटर के साथ धकधकाते हुए बुलेट जब आगे बढ़ी तो किमी के भीतर पैठा डर धुएं के साथ उड़ गया। उबड़-खाबड़ सड़कें और बुलेट की तेज रफ्तार के साथ पहली बार ऐसी सवारी का अनुभव ले रही किमी को बार-बार लग रहा था कि कहीं वह गिर न पड़े। बचने के लिए उसने पीछे की ओर रॉड पकड़ रखी थी, लेकिन उसे लग रहा था कि पहलवान की कमर पकड़ना ज्यादा मुनासिब है। एक-दो गड्ढों की उछाल पर उसने पहलवान की कमीज जरूर कसकर भिंची थी, पर कमर पकड़ने की हिम्मत न कर सकी। हालांकि पहलवान कई बार कह चुका था मेरा कंधा पकड़ लो।
अब वे ट्रैक्टर के इतना नजदीक पहुंच चुके थे कि दोनों गाड़ियों की आवाजें आपस में टकराने लगीं थींं। पहलवान ने कहा, -‘बस दो मिनट और।’ इधर किमी अपने को गिरने से बचाने के लिए कभी पहलवान के कमर के पास तो कभी कंधे के नजदीक हाथ लहराकर हटा लेती। अपरिचित, अनजान मर्द के उपर वह हाथ कैसे रखे, अभी यह सब सोच ही रही थी कि एक बड़ा गड्ढा आया और वह गिरते-गिरते बची।
इस बार पहलवान गरमाया और बोला, ‘कोई भूत नहीं हूं जो हाथ रख दोगी तो लपेटे में आ जाओगी।’
सहमी किमी ने ‘हां ठीक है’ कहा और पूछा, ‘लेकिन आये तो भूत की तरह ही थे। यह गाड़ी जिसकी आवाज अब दस गांवों में गूंज रही है उस समय तो पता ही न चला कि आप वहां कबसे मुझे देख रहे थे।’
किमी की बात सुनकर पहलवान ठठाकर हंसा और बोला, ‘डरो नहीं, मैं ट्रैक्टर के साथ ही वहां पहुंचा था, लेकिन मैं गाड़ी खड़ी कर हल्का होने चला गया। दूसरा, मेरे बुलेट की लाइट खराब हो रही है, इसलिए शायद पता नहीं चला हो।
हल्का होकर लौटा तो देखता हूं कि तुम खड़ी हो और ट्रैक्टर वाला चला जा रहा है। पहले तो मुझे यही लगा कि तुम चौराहे की हो और ट्रैक्टर से उतरी हो, नहीं तो मैं उसी वक्त ड्राइवर को डांट-डपटकर तुम्हें बैठवा देता... कोई नहीं।’
अब बुलेट ट्रैक्टर की ट्रॉली को पार करने को हो रहा था। पहलवान ने जोश में एक्सीलेटर बढ़ाया और पलक झपकते ही ट्रैक्टर से फर्लांग भर आगे सड़क पर बुलेट खड़ी कर दी। बीच सड़क पर बुलेट खड़ी देख ट्रैक्टर का ड्राइवर हड़बड़ाया और तेजी से ब्रेक लेकर पहलवान से पहले ही गाड़ी खड़ी कर टेप रिकॉर्डर बंद कर लिया।
पहलवान आगे-आगे चल रहा था और किमी उसके पीछे। ट्रैक्टर के ड्राइवर ने पहचानते ही हंसते हुए पूछा ‘का गलती हुई पहलवान।’
पहलवान- ‘गलती पूछ रहे हो! रात में अकेली औरत को छोड़े जा रहे हो और ऊपर से पूछ भी रहे हो। आखिर इसको काहे नहीं बैठाये।’
‘बैठा लेते पहलवान, मगर जगह नहीं थी तो हिचक गये। कोई नहीं अब आप कह रहे हैं तो बैठाये लेंगे। किमी की ओर इशारा कर ड्राइवर ने कहा ‘सुनो, ट्रॉली पर लकड़ी लदी है उसी पर बैठ जाओ।’
पहलवान की पैरवी से उत्साहित किमी चिढ़कर बोली, ‘तो का हम अटारी पर बैठने के लिए उस टाइम कह रहे थे। लकड़ी में ही बैठाने की मिन्नत किये थे, मगर तुम हो कि उड़ लिए।’
पहलवान किमी की बात सुनकर ठीक वैसे ही मुस्कुराया जैसे मां-बाप बच्चों के हठ के सामने मंद-मंद मुस्काते रहते हैं। इधर किमी लगातार चौड़ी हुए जा रही थी और ड्राइवर पर बड़बड़ाते हुए ट्राली पर जाकर बैठ गयी।
पहलवान ने ड्राइवर को बोला, ‘इसे मेरी मेहमान समझना और घर तक इत्मीनान से छोड़ देना।’
ड्राइवर- ‘शर्मिंदा न करो पहलवान, बस आपने कह दिया तो कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।’
अरहर के बोझों पर किमी अब बैठ चुकी थी। ट्रैक्टर की बैक लाइट से किमी का चेहरा अब साफ दिख रहा था। चेहरे पर उभरे भाव बता रहे थे कि किमी पहलवान से कुछ कहना चाह रही थी। क्या कहना चाह रही थी सो तो वही जाने। तजुर्बे के हिसाब से देखें तो पहलवान किमी से इतना बड़ा नहीं था कि उसे वह वह पांव लगी करे और न छोटा था कि पहलवान के एहसान पर आशीर्वाद दे। रही बात बराबरी की तो मुस्कुराने से अधिक का कोई रिवाज किमी को पता नहीं।
सो वह मुस्कुराई। चेहरे पर बिखरी खुशी के बीच आंखें मस्त हो रही थीं और उसने बदन में सिहरन महसूस की। कहना मुश्किल था कि यह पहलवान का एहसान था कि एहसास। जो दिख रहा था वह इस प्रकार कि ट्रैक्टर आगे जा रहा था पर वह पीछे देख रही थी। इस तारतम्य को देखकर ऐसा लगा, मानो परिंदा आकाश चूमने की आस में ऊंंचाई नाप रहा हो और आकाश चढ़ता ही जा रहा हो। कह सकते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम का यह सबसे खूबसूरत दृश्य था जिसकी मियाद ठीक से मिनट भर भी नहीं थी।
ट्रैक्टर की आवाज मद्धिम होने लगी तो पहलवान ने फिर एक बार लुंगी चढ़ाई, बुलेट का किक झटके के साथ मारा और मूंछ पर ताव देकर बुलेट धकधकाते हुए चलते बना।
अब पहलवान ट्रैक्टर को पीछे छोड़ चुका था। बुलेट की लाइट खराब होने के बावजूद उसकी रफ्तार काफी थी। पहलवान ने बुलेट की रफ्तार बढ़ायी तो ठंड का असर भी बढ़ा, इसलिए उसने गले में लिपटी गमछी को धीरे से सरकाकर कान और मुंह-नाक ढकते हुए लपेट लिया। अब पहलवान की सिर्फ आंखें दिख रही थीं।
गमछी लपेटकर पहलवान मस्ती में चला जा रहा था। वह जब अपने गांव के चौराहे पर पहुंचने वाला था उससे थोड़ी दूर पहले कोई उसकी आंखों पर टार्च चकमकाने लगा। टार्च चकमकाने वाला ठीक उसकी आंखों पर ही निशाना कर चकमका रहा था।
चिढ़कर पहलवान बोला, ‘कौन हो बे, मौत आयी है का। चोर उचक्के अब पहलवान से वसूली करेंगे।’ पहलवान....शब्द सुनते ही चकमकाने वाले ने टार्च बंद कर दी और ‘ये बात नहीं है पहलवान’ कहते हुए दो खाकीधारी पहलवान की ओर लपके।
एक खाकीधारी जिसे देखते ही पहलवान ने पूछा, ‘का दीवान साहब... रतजगा काहे हो रहा है।’
उसने कहा, ‘का बात करत हौ पहलवान, हमलोग ऐसे कहां रतजगा करते हैं। बुरा न मानना पहलवान ई तो साला अईसा इलाका है कि आम से लदल पेड़ हिलाओ तो सुखटी गिरता है।’
पहलवान- ‘तो रात में दशहरी और कपूरी का बुलावा आया है का।’
दीवान साहब- ‘अरे नहीं गुरु, मजाक न करो। मंत्रीजी के भतीजे की सांझ में दरवाजे से ही मोटरसाइकिल चोरी हो गयी। तीन-तीन थाना अलर्ट कर दिया गया है। सिपाही से लेकर सीओ-एसपी तक चैराहों पर लगे पड़े हैं। मंत्री जी ने एसपी को बोला है, ‘भोषणो के! अगर कल सुबह होने से पहले मोटरसाइकिल दरवाजे पर खड़ी नहीं मिली तो तुम सांझ इस क्षेत्र में नहीं देख पाओगे।’ एसपीओ साला बड़ा बकचोद है, पूछता है भोषणो का मतलब का हुआ। साला उड़ीसा का साहू है, आयोग से आया है। अब उसको कौन बताये कि यहां साहू लोग धनिया-मिर्चा बेचते हैं, पुलिस महकमे में तो गलती से सिपाही में भी भर्ती नहीं होते।’
पहलवान- ‘लेकिन मोटरसाइकिल कौन सी है और गाड़ी का नंबर का है।’
दीवान साहब- ‘पहलवान आप भी सब बतिया उगलवा लोगे। किसी की हिम्मत ही नहीं हुई कि मंत्री जी से पूछे कि भतीजे की गाड़ी कौन सी है, तो नंबर की कौन कहे।’
पहलवान- ‘फिर मोटरसाइकिल बरामद कैसे होगी।’
दीवान साहब- ‘वही तरीका, जिसकी दिखे उसकी उठा लो। दो घंटे के सर्च अभियान में ही हमारे थाने में 23 मोटरसाइकिलें उठवा कर जमा करा दी हैं।’
पहलवान- ‘तो हमें इसीलिये रोके हो।’
दीवान साहब- ‘हमारी कहां इतनी हिम्मत, ये सब तो मंत्रीजी का पावर करा रहा है।’
पहलवान समझ चुका था कि उसकी बुलेट भी थाने में जमा होगी जो मंत्री के भतीजे के पहचान करने के बाद वहां से निकल पायेगी। इसलिए अब वह इस फिराक में दिमाग लगाने लगा कि किससे पैरवी कराये कि उसको यह रात भुगतनी न पड़े। पहलवान अभी इसी उधेड़बुन में लगा ही था कि ट्रैक्टर की आवाज उसके कानों तक पहुंची और किमी का चेहरा उसकी आंखों में उतर आया। किमी का चेहरा आंखों में समाते ही पहलवान के चेहरे पर हल्की से मुस्कान दिखी और फिर वह थोड़ी देर पहले हुई किमी से मुलाकात में खो गया।
मुलाकात में खोने और खोते ही जाने के स्वप्नों में अभी पहलवान उतर ही रहा था कि उसके कानों तक किसी औरत के चीखने की आवाज आयी। एक दफा पहलवान को लगा कि वह किमी है, मगर किमी को लेकर वह जिंदगी के उन खूबसूरत अहसासों को बुन रहा था जिसमें अपने प्रिय के बुरा होने की किसी आशंका की कोई जगह प्रियतम रखता ही नहीं है। लेकिन यह आशंका ख्यालों में नहीं थी और चीख किमी की ही थी जो बचाओ... बचाओ... चिल्ला रही थी।
जब तक पहलवान का अंदाजा निश्चित हुआ कि वह किमी की ही आवाज है, ट्रैक्टर बुलेट से आगे निकल चुका था। खाकीधारियों की टॉर्च लाइट की चकमकाहट से घबड़ाकर कि पुलिस वाले वसूली के लिए खड़े हैं, ट्रैक्टर के ड्राइवर ने रफ्तार और बढ़ा ली। इधर बेचैन पहलवान को खाकीधारियों को समझाने में दो मिनट लग गये कि ट्रैक्टर पर बैठी औरत को उसने ही पिछले चौराहे पर बैठाया है। अब उसके साथ कुछ बुरा हो रहा है इसलिए वह मामला समझकर फौरन बुलेट बरामदगी के लिए यहीं लौट आयेगा।
पुलिस वाले समझ गये और पहलवान ने बुलेट को तेजी से ट्रैक्टर के पीछे दौड़ा लिया। दीवान के साथ खड़े एक दूसरे सिपाही ने कहा, ‘कायदे से तो यह हमारा काम बनता है, लेकिन पहलवान को जाने दिया... हें...हें।’
दीवान साहब- ‘हंसुआ के बिआह में खुर्पी के गीत न गाओ हवलदार नेमीचंद। हमारा काम आज सिर्फ और सिर्फ सड़क से गुजरने वाली मोटर साइकिलों को जब्त करना है, बाकी कोई घटना-दुर्घटना हो तो मान लेना कि रतौंधी है।’
बुलेट में हेडलाइट न होने से पहलवान को तेज चलाने में काफी दिक्कत हो रही थी। वह जैसे-जैसे ट्रैक्टर के नजदीक हो रहा था किमी की आवाज किसी बचाने वाले की पुकार में और तेज और दारुण होती जा रही थी। पहलवान के मन में तरह-तरह की आशंकाएं उठ रही थीं, लेकिन तय नहीं कर पा रहा था उसके साथ ऐसा क्या बुरा हुआ होगा जो वह इतना चिल्ला रही है और ट्रैक्टर वाला सुन नहीं रहा है। पहलवान को लगा कि बदमाशी ड्राइवर की है। वैसे भी वह उसको बैठाना नहीं चाह रहा था। और फिर इससे पहले तक न तो ट्रैक्टर की आवाज और न ही गाने की आवाज इतनी तेज थी।
किसी अनहोनी की आशंका और भय से भरा पहलवान अब ट्रैक्टर के आगे पहुंच चुका था और उसने उसी अंदाज में जैसे किमी को बैठाने के लिए किया था, बुलेट खड़ी कर दी। पहलवान को देखते ही ड्राइवर ने गाड़ी खड़ी कर दी, लेकिन इस बार पहलवान ने तनिक देर नहीं की और छलांग लगाकर ट्रैक्टर पर चढ़ ड्राइवर को दो झापड़ लगाया और चाबी निकाल दी।
ट्रैक्टर के इंजन के बंद होते ही किमी की बचाओ... बचाओ... की जो चीख निकल रही थी उसको सुनकर सभी अवाक रह गये।
पहलवान ने अब एक और छलांग लगायी और ट्राली पर पहुंच गया। लेकिन ट्राली पर चित्त लेटी किमी को देखकर सुन्न हो गया। उसे समझ न आया कि क्या करे। पहलवान को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि किमी को हुआ क्या है। उसने जो देखा वह इस प्रकार था कि उसकी साड़ी घुटने तक चढ़ी हुई है और जांघ के करीब किसी चीज को वह कस कर पकड़े हुए है।’
पहलवान जब तक पूछता कि क्या हुआ, कुछ और लोग वहां आ चुके थे।
कोई पूछता कि बताओ, तो कोई राय देता कि पहले शांत हो जाओ, फिर बताओ कि बात क्या है। इधर किमी थी कि बदहवास लगातार चिल्लाये जा रही थी कि बचाओ...बचाओ... मार डाली हो दादा...बचाओ।
पहलवान से नहीं रहा गया तो उसने धमकाकर सबको चुप करा दिया। लोगों के शांत होते ही किमी की आवाज साफ सुनायी देने लगी कि ‘कीड़ा हाथ में है, निकाल कर बचाओ।’
सब लोग एक दफा हंसने लगे कि ‘कीड़ा है तो इतना तमाशा का की हो। कसकर मसल डालो मर जायेगा।’
लेकिन तभी पहलवान को उसके जांघ के पास हरकत महसूस हुई तो उसने अपनी मोबाइल का टॉर्च ठीक वहां फोकस किया जहां किमी ने कुछ पकड़ रखा था। पहलवान को संदेह हुआ तो लेटी पड़ी किमी के ऊपर सर झुकाकर पूछा ‘सांप है का।’
जाड़े में पसीने-पसीने हो चुकी किमी ने सिर्फ आंख बंद कर हां का इशारा किया।
पहलवान ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘कसके पकड़ने में हिम्मत न हारना, हम कुछ उपाय करते हैं।’
पहलवान नीचे उतरा तो बाकी सभी नीचे उतर गये और जानने के लिए घेर लिये कि माजरा क्या है। अब पहलवान भी पसीने-पसीने हो गया था और घबड़ाकर बताने लगा कि उसके साड़ी में सांप घुस गया है।
मामले का खुलासा होते ही जितने मुंड वहां थे उतनी रायें आने लगीं, लेकिन राय का समुच्चय निकाला गया तो यही सामने आया कि मर्द होती तो नंगे भी कर देते, औरत है तो कैसे करें।
घबड़ाया पहलवान चिल्ला पड़ा-‘तो का उसे वैसे ही मरने दें। कुछ तो सोचो जिससे वह बच सके।’
तभी पहलवान के चेहरे पर किमी को बचा लेने की उम्मीद दिखी और उसने कहा- ‘बस नंगा होने से ही बचाना है तो उसका उपाय मैं किये देता हूं। वह फिर से ट्राली पर चढ़ गया। पहलवान ने अपनी लुंगी निकाली और किमी के शरीर पर डालते हुए बोला, ‘धीरे-धीरे साड़ी सरका दो और लुंगी से खुद को ढंक लो।
बचने की उम्मीद छोड़ चुकी किमी को पहलवान की बात से थोड़ी राहत मिली और उसने हाथ आगे बढ़ाकर लुंगी खींचने की कोशिश की, लेकिन लुंगी और कोशिश के बीच फिर एक बार मौत भारी पड़ी और किमी ने यह कहते हुए हाथ पीछे खींच लिया कि ‘गेहुंअन सांप है। पकड़ने की मजबूती थोड़ी भी ढीली पड़ी तो मार डालेगा।’
फिर सबने कहना शुरू किया, ‘यह बात तो है।’
पहलवान अब ट्राली पर चढ़ गया और किमी से बोला-’तुम सांप को जस का तस पकड़ी रहो। मैं तुम्हारी साड़ी धीरे-धीरे सरकाता हूं।’
किमी की मदद में पहलवान शरीक होता, इससे पहले ही वहां मौजूद बाकी सभी ने एक स्वर में विरोध किया कि ‘दूसरे की औरत की साड़ी कैसे उतार लोगे। वह बचे चाहे मरे, यह भगवान के हाथ में है लेकिन यह अधर्म कैसे हो सकता है। कल बेवजह लहू बह जायेगा, पहलवान वहां से हट जाओ।’
पहलवान को देखते ही जिस ड्राइवर की घिघ्घी बंध रही थी अब नैतिकता की हिदायत देने वालों में वह भी शामिल हो गया था। मामला दूसरी तरफ मुड़ता देख किमी ने पहलवान की तरफ जाने किस नजर से देखा कि वह ट्राली से नीचे आ गया। बाकी लोग भी जो थोड़ी देर पहले तक-‘तनी सा जिंस ढीला करअ...’ गाने का मजा ले रहे थे वे भी नीचे आ गये कि औरत को साड़ी सरकाते कैसे देख सकते थे।
किमी को साड़ी सरकाने में होती देर देख किसी ने साथ में खड़े कम उम्र के एक लड़के को कहा कि ‘जरा देखना तो लुंगी उसने पहन लिया कि नहीं।’
लड़का ऊपर पहुंचा तो देखा कि उसने साड़ी हाथ में ले रखी है और उसकी टांगें लुंगी से ढंकी हैं और छातियां ब्लाउज से। लड़का यह सीन देख भरमाया कि शरमाया सो तो पता नहीं, मगर झट से उतरा और बोला कि सांप मुट्ठी में है।
फिर क्या था, जितने मुंड, उतनी राय। राय का समुच्चय यह कि साड़ी समेत सांप को कस कर फेंको। सो किमी ने साड़ी में सांप को कसकर भींचा और जितनी दूर तक हाथ उठ सकता था, जोर लगाकर फेंक दिया। साड़ी हवा में लहरायी। ट्राली के नीचे खड़े सभी लोगों ने अपने को बचाने के लिए कि कहीं सांप उन पर न गिर जाये इधर-उधर हुए।
सांप साड़ी के साथ गिरा या पहले, किसी ने नहीं देखा। मगर साड़ी जमीन पर अकेले नहीं गिरी बल्कि वह जिस पर गिरी उसको लेकर जमीन पर गिरी। साड़ी ऊपर थी और साथ गिरा आदमी नीचे चित्त पड़ा था। यह दृश्य किसी पीरबाबा की मजार जैसा लगा, जहां हर कोई अपना धर्म दियारखे में टांग सिर्फ पीर के महातिम को महसूसने एक बार उसके दर पर जरूर जाता है।
वहां खड़े लोगों ने आपस की गिनती कर ली तो कोई चिल्लाया, ‘पहलवान को सांप काट लिया।’ किसी ने चेहरे तक चढ़ी साड़ी सरकायी तो सबने देखा कि पहलवान की आंखें पलट चुकी हैं। अभी भी लाश नीचे थी और साड़ी ऊपर। पहलवान की लाश अभी भी पीरबाबा के मजार सी लग रही थी जिस पर अभी-अभी किसी ने चढ़ावा चढ़ाया है।
किमी ट्राली से नीचे उतरी, तब तक पहलवान मुंह से गाज फेंककर मर चुका था। उसने कोशिश की पहलवान का चेहरा देखने की। लोग नहीं माने तो मिन्नतें कीं, पांव पर गिरी मगर उसके देखने की चाहत को सबने गैरवाजिब माना। किमी को पहलवान से कई फर्लांग की दूरी पर खड़े होने की हिदायत दी गयी। फिर भी वह देखने की जिद्द पर अड़ी रही तो वहां खड़े लोगों ने त्राहि-त्राहि किया। बाद में जुटे लोगों ने काल का लेखा कहा। जो बच गये उन्होंने किमी को गालियां दीं, कोसा और मैयत के बाद उसे दोजख नसीब हो यह आशीर्वाद दिया। दीवान साहब, हवलदार, ड्राइवर, ट्रैक्टर पर सवार लोग और उन्होंने भी जिन्होंने न कभी किमी को जाना और न पहलवान को, बहुतेरी बातें कहीं।
नहीं कुछ कहा तो किमी ने... कभी नहीं... एक शब्द नहीं। वह अब बहुत कम बोलती है, जवाब में सिर्फ हंसती है और कभी-कभी खिलखिला पड़ती है जब उसके कानों में यह आवाज जाती है कि ‘पहलवान के साथ उसका चक्कर था।’ किमी को छठे-छमासे जब फुरसत, मिजाज और प्रिय, एक साथ मिलते हैं तो बस इतना कहती है, 'मुझे उस पर फक्र है, मगर अपने पर कोई अफसोस नहीं। सिवाय इसके कि मैं उसको जीभर के देख भी न सकी थी।’