पुलिस की गोलियों से सड़क पर खड़ा कोई व्यक्ति तो नहीं घायल हुआ, पर यासीन नामक 13 वर्षीय बालक जो अपनी बालकनी में खड़ा था, वह पुलिस की गोली से मारा गया...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। कुछ दिनों पहले केन्या ने एक कस्बे में एक 13 वर्षीय बालक अपने घर की बालकनी में खड़ा था। कुछ लोग कोरोना के चलते जो लोच्दोवं था, उसके बावजूद सड़कों पर खड़े थे। इतने में पुलिस का एक गस्ती दल उधर से गुजरा और सड़क पे खड़े लोगों को दौड़ाना शुरू किया।
जब लोग पुलिस से बहुत आगे आ गए तो पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कीं। इन गोलियों से सड़क पर खड़ा कोई व्यक्ति तो नहीं घायल हुआ, पर यासीन नामक 13 वर्षीय बालक जो अपनी बालकनी में खड़ा था, वह पुलिस की गोली से मारा गया।
यासीन के पिता, मोयो बताते हैं कि पुलिस वालों ने सड़क पर खड़े लोगों को जानवरों की तरह मार रहे थे और बाद में अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे, जिससे उनके बेटे की मौत हो गई। इस घटना पर पुलिस ने बाद में सार्वजनिक माफी माँगी, पर यासीन चला गया।
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अभी दुनिया एक अभूतपूर्व दौर से गुजर रहा है। इस समय लगभग पूरी दुनिया लॉकडाउन, आपातकाल, कर्फ्यू और इसी तरह की दूसरी पाबंदियों में है। जाहिर है ऐसी पाबंदियों में पुलिस के अधिकार असीमित हो जाते हैं, इसका क्या असर होता है यह किसी से छुपा नहीं है।
इसका असर हमारे देश में तो लगातार दिखाई दे रहा है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले को गोली मारने की बात करते हैं, प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा में उल्लंघन करने वालों को जेल भेजने का सुझाव दिया है। दूसरी तरफ पुलिस लोगों पर लाठी चार्ज कर रही है, बिकती सब्जियों को सड़क पर फैला रही है, कहीं लोगों को मुर्गा बना रही है तो कहीं आवश्यक सामान की आपूर्ति करने वालों का रास्ता रोक रही है।
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उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्यों और दूसरे राज्यों से भी पुलिस की ज्यादतियों के किस्से लगातार आ रहे हैं। पुलिस की ज्यादतियों से तंग लोग खुदकुशी भी करने लगे हैं, तो दूसरी तरफ पुलिस वाले अब अपना रसूख दिखाकर रिश्वत भी वसूल रहे हैं।
बिहार पुलिस ने तो एक ट्रक ड्राईवर द्वारा रिश्वत नहीं देने पर, उसे गोली मार दी। उत्तर प्रदेश में पुलिस ने कोरोना वायरस मारने के नाम पर लोगों पर सोडियम हाइपोक्लोराइड का सीधा छिडकाव कर दिया, जो चमड़ी, आँखों और फेफड़ों पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
पंजाब पुलिस ने लोगों को मुर्गा बनाकर “मैं समाज का दुश्मन हूँ, हम घर में नहीं बैठ सकते” के नारे लगवाए। अनेक जगह तो पुलिस वाले इतनी निर्ममता से लाठी भांजते दिखाते हैं मानो वे जनता को नहीं, बल्कि कोरोना वायरस को ही मार रहे हों।
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पूरी दुनिया में आजकल पुलिस का यही चेहरा सामने आ रहा है। पराग्वे में पुलिस ने लाठी मारने के बाद लोगों को जमीन पर लेटकर “ऑफिसर, अब मैं अपने घर से बाहर नहीं निकालूँगा” के नारे लगवाये। इसकी पूरी वीडियो भी पुलिस वालों ने तैयार किया और फिर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा। वरिष्ठ अधिकारियों ने उन पुलिस वालों को शाबाशी भी दी।
फिलीपींस में तो सड़कों पर निकलते लोगों को पुलिसवालों ने कुत्तों के पिंजड़े में बंद किया और पूरी दोपहर धूप में सड़क पर पिंजरे को रख दिया। यहाँ 17000 से अधिक लोग लॉकडाउन के उल्लंघन करने पर जेल की सजा काट रहे हैं।
केन्या में तो सड़कों पर लोगों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठी चार्ज किया। इंग्लैंड में लॉकडाउन के उल्लंघन पर 30 पौंड का जुर्माना लगाने का प्रावधान है, जिसके कोई तय दिशा—निर्देश नहीं हैं। यह केवल पुलिस पर निर्भर करता है कि वह किससे जुर्माना वसूले और किससे नहीं।
फिलीपींस और थाईलैंड में तो आपातकाल घोषित कर दिया गया है, जिससे पुलिस और सरकार के अधिकार असीमित हो गए हैं। हंगरी में संसद ने यह स्वीकृत किया है कि देश में प्रधानमंत्री जब तक चाहेंगे तब तक आपातकाल रहेगा। यहाँ अफवाहों फैलाने वालों के लिए जेल का प्रावधान है। इस प्रावधान के तहत, कोरोना वायरस से सम्बंधित अफवाह फैलाने पर कोई जेल नहीं गया, पर सरकार विरोधी लोग एक-एक कर जेल भेजे जा रहे हैं।
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विश्व के अनेक मानवाधिकार संगठन मानते हैं कि इस संकट की घड़ी के नाम पर पूरे दुनिया की सरकारें अपने अधिकार को बढाती जा रही हैं, मानवाधिकार को ताक पर रखकर अपने विरोधियों को कुचलने में लगी है और इसमें पुलिस महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार यदि बहुत आवश्यक हो तभी पुलिस को कोई भी कदम उठाना चाहिए, और यह कदम मानवीय और बिना भेदभाव के हो। ह्यूमन राइट्स वाच नामक संस्था ने दुनियाभर की सरकारों से मानव के सम्मान और जनता के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की अपील की है।