गरीबों के मसीहा डॉक्टर कय्यूम

Update: 2017-12-19 17:05 GMT

अब तक बचा चुके हैं सैकड़ों कैंसर पीड़ितों की जान, गरीबों का न सिर्फ करते हैं मुफ्त इलाज बल्कि जरूरतमंदों को देते हैं दवा और आर्थिक सहायता भी...

बलरामपुर से फरीद आरजू

आज जहां मैक्स और फोर्टिज जैसे नामी—गिरामी हॉस्पिटलों के डॉक्टरों समेत तमाम डॉक्टर अपने पेशे को शर्मसार करते न्यूनतम इंसानी मानवता भी त्याग रहे हैं, डेंगू पीड़ित बच्ची के इलाज के नाम पर 16 लाख वसूलने के बाद भी जान नहीं बचा पा रहे और जिंदा नवजात को कफन में लपेट रहे हैं, वहीं एक डॉक्टर ऐसा भी है जो वाकई अपने पेशे को ईमानदारी के साथ निभा रहा है। वह गरीबों की उम्मीद और उनकी जान बचाने वाले भगवान साबित हो रहे हैं।

हर साल हजारों जिंदगियों को निगल जाने वाली ख़ौफ़नाक बीमारी कैंसर से दो—दो हाथ करने का बीड़ा अल रहमान कैंसर फाउंडेशन के संस्थापक डॉ अब्दुल कय्यूम ने उठाया है। पेशे से ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ कय्यूम पिछले कई सालों से कैंसर पीड़ित मरीजों का निशुल्क इलाज कर रहे हैं।

डॉ कय्यूम कैंसर पीड़ित मरीजों का न सिर्फ इलाज करते हैं, बल्कि ऐसे मरीजों जिनके पास दवा और इलाज के लिये रुपये नहीं हैं, उन मरीजों को अपने पास से दवा मंगा कर भी देते हैं। यही नहीं लखनऊ, दिल्ली या मुम्बई रेफर किये जाने पर वहाँ के डॉक्टरों से सम्पर्क कर मरीजों की आर्थिक मदद भी करते हैं।

पिछले 5 वर्षों में इस ख़ौफ़नाक बीमारी से जंग लड़ रहे 191 मरीजों का इलाज करते हुये डॉ कय्यूम ने कई हंसते—खेलते परिवारों को न सिर्फ उजड़ने से बचाया है, बल्कि मरीज के साथ—साथ परिवार को भी नई जिंदगी दी है।

इन्हीं में 2 नाम छोटकउ प्रसाद और साबिर अली भी हैं, जिन्हें कैंसर हो गया था। लेकिन डॉ. कय्यूम के सम्पर्क में आने के बाद डॉ कय्यूम ने उन्हें कैंसर से लड़ने का हौसला देते हुए लखनऊ भेजकर आॅपरेशन और इलाज कराया। दोनों कैंसर जैसी ख़ौफ़नाक बीमारी को मात देकर पूरी तरह से स्वस्थ हैं और डॉक्टर कय्यूम उन्हें किसी देवता से कम नजर नहीं आते।

डॉ कय्यूम और उनकी संस्था अल रहमान का सफर यहीं खत्म नही होता है। डॉ कय्यूम पिछले कई सालों से अपने सहयोगी डॉक्टरों की टीम ले जाकर स्कूलों में बच्चों को कैंसर से संबंधित जानकारी देते हुए युवाओं के सवालों का जवाब देकर उन्हें जागरूक करते हुए देश को स्वस्थ नस्ल देने की कोशिश में लगातार जूझ रहे हैं।

पिछले 5 सालों में 50 हजार से अधिक छात्रों और युवाओं को स्कूल, मोहल्लों में कैम्प या गोष्ठी के माध्यम से जागृत कर चुके हैं। उनके जनजागरण की जलाई गई मशाल का नतीजा है कि कई बच्चों के जिद के आगे उनके पिता और भाइयों को गुटका पान सिगरेट जैसी कैंसर फैलाने वाली नशीली चीजों को छोड़ना पड़ा है।

इन्हीं बच्चों में एक छात्रा आरुषि राजपूत भी है, जो डॉ कय्यूम के अभियान से प्रभावित होकर अपने पिता से गुटका छोड़ने का जिद कर बैठी और अपनी लाडली की जिद के आगे उन्हें हार माननी पड़ी। पिता ने गुटका और सिगरेट न छूने की कसम खा ली।

डॉ कय्यूम की कैंसर के खिलाफ छेड़ी गयी जंग और समाज के प्रति समर्पण की दिशा में किए जा रहे कामों के लिए उन्हें अब तक कई सम्मान भी मिल चुके हैं। लेकिन शोहरत की भूख को दरकिनार करते हुए वह लगातार गरीब मजबूर कैंसर पीड़ितों की इलाज के साथ—साथ उनके हौसलों को उड़ान देते हुए उनके परिवार को नई जिंदगी देने में लगे हुए हैं।

आज जब पूरी दुनिया में धर्म के नाम पर बेगुनाहों का खून बहाया जा रहा है, डॉ कय्यूम धर्म, जाति, मजहब से ऊपर उठकर काम कर रहे हैं। वह उन डॉक्टरों के मुंह पर एक तमाचा हैं, जिनका उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है। वह उन कथित समाज—धर्म के ठेकेदार को भी करारा जवाब दे रहे हैं अपने काम से जो धर्म के नाम पर नफरत और बेगुनाहों के खून बहाते हैं। इंसनियत की मशाल को जलाये रखने वाले कय्यूम जैसे डॉक्टर की वाकई आज समाज को बहुत जरूरत है।

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