दलित विरोधी पोस्ट करने पर होगी जेल, पर मुस्लिम विरोधी पोस्टों पर कब जाएगा कोई अदालत

Update: 2017-07-05 10:11 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से उन लोगों और समुदायों के बीच एक अधिकार भाव का बोध जरूर आएगा जो अपनी जाति और धर्म के कारण व्यक्तिगत या सामूहिक तौर रूप से सोशल मीडिया पर पर बेइज्जत या ट्रोल किए जाते हैं...

जनज्वार, दिल्ली। 4 जून को आए एक फैसले में दिल्ली हाईकार्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों या समुदाय को सोशल मीडिया पर बेइज्जत और अपमानित करने वाली पोस्ट को करने वालों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्यवाही होगी। आरोपियों को जेल भी हो सकती है। भले ही यह बेइज्जती कोई क्लोज ग्रुप ही क्यों न कर रहा हो।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया पर दलित और आदिवासी समुदाय से आने वालों के खिलाफ गाली—गलौच करने पर 'दलित अत्याचार रोकथाम कानून 1989' तहत कार्यवाही होगी।

दिल्ली हाईकार्ट में अपनी बहन के खिलाफ याचिका दायर की महिला ने बताया कि मैं अनुसूचित जाति से हूं जबकि मेरी बहन राजपूत है। मेरी बहन अक्सर ही मुझे और मेरी जाति को अपमानित करने वाले पोस्ट फेसबुक पर डालती है। मैं चाहती हूं बहन की हरकत के खिलाफ अदालत कार्यवाही करे।

मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज विपिन संघी ने कहा, 'अगर कोई फेसबुक पर रजिस्टर्ड है और वह कोई पोस्ट लिखता है, और वह सार्वजनिक रूप से देखा जा सकता है, भले ही उसकी सेटिंग प्राइवेट हो या बाद में प्राइवेट कर दी गयी हो, पर पोस्ट को सार्वजनकि रूप से लोगों ने देखा है तो, ऐसा करने वाले व्यक्ति या ग्रुप के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (1) (x)के तहत सजायाफ्ता होगा।

अदालत ने स्पष्ट किया कि यह नियम अन्य सोशल मीडिया जैसे वाट्सअप आदि पर भी लागू होगा।

हालांकि राजपूत महिला ने अपने बचाव में बताया कि ऐसा कोई उसने पोस्ट नहीं किया और न ही ऐसा करने की उसकी कोई चाह थी। दूसरी तरफ आरोप लगा रही महिला भी बहुत स्पष्ट तथ्य नहीं दे सकी तो अदालत ने आरोपी को हिदायत देते हुए बरी कर दिया कि भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए।

इस फैसले के आने के बाद एक सवाल यह उठता कि मुस्लिम विरोधी पोस्टों पर कब कार्यवाही होगी? इसके खिलाफ कौन अदालत जाएगा और कब होगी सुनवाई जिससे अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जो हजारों ग्रुप जहर उगल रहे हैं, समाज में वैमनस्य फैला रहे हैं, उन पर रोक लगे।

एक प्रमुख मुस्लिम संगठन के प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मुस्लिमों के खिलाफ सोशल मीडिया में चल रही गाली—गलौच के खिलाफ कोई भी वकील या संस्था अदालत नहीं गयी है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील रविंद्र गढ़िया कहते हैं, 'मैंने कभी सुना नहीं कि सोशल मीडिया पर होने वाली मुस्लिम विरोधी अन्य अपल्संख्यक विरोधी पोस्टों के मामले में कोई अदालत गया हो। हां, धार्मिक भावनाएं भड़काने के खिलाफ वाले मामले तो सुनने को मिलते हैं। पर मैं इस बात से सहमत हूं कि इसके खिलाफ अदालत में जाना तो चाहिए।'

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