अमेरिका ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन क्या मांगी, अचानक कई गुणा बढ़ गए कच्चे माल के दाम
दवा निर्माताओं ने बताया कि पहले इसकी कीमत 7,000 रुपये प्रति किलो थी, लेकिन अब बढ़ कर कीमत 50,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है...
जनज्वार ब्यूरो शिमला। अमेरिका ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा क्या मांग ली, इसके कच्चे माल में कई गुणा तक वृद्धि हो गयी है। इस वजह से छोटे दवा निर्माताओं को काफी आर्थिक दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। दवा निर्माताओं ने बताया कि एंटी-मलेरिया ड्रग हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) की बढ़ती मांग के कारण एपीआई की कीमत में कई गुना वृद्धि हुई है। यह घरेलू बाजार में इसका कच्चा माल है।
दवा निर्माताओं ने बताया कि पहले इसकी कीमत 7,000 रुपये प्रति किलो थी, लेकिन अब बढ़ कर कीमत 50,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। स्मॉल स्केल दवा निर्माता संघ के प्रवक्ता अश्वनी ठाकुर ने बताया कि अचानक कीमतों में वृद्धि होने से खासी दिक्कत आ रही है। उन्होंने बताया कि इस स्थिति में अब राज्य सरकार ही हस्तक्षेप कर उनकी मदद कर सकती है। क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो आने वाले समय में उन्हें खासी दिक्कत आ सकती है।
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दवा निर्माताओं ने बताया कि राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी को कीमत अचानक से इतनी ज्यादा होने की जांच करनी चाहिए। उनकी यह भी मांग है कि लघु उद्योग के लिए कोई कोटा तय होने चाहिए।
हिमाचल ड्रग कंट्रोलर विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि 51 निर्माताओं को राज्य में इस दवा के निर्माण की मंजूरी मिली थी। केवल 14 को ही लगभग 1,600 किलोग्राम एपीआई यानी कच्चा माल मिला। अब साफ है जिन कंपनियों को कच्चा माल ही नहीं मिला तो वह दवा का निर्माण कैसे करेंगे। इस बारे में केंद्र को कोई नीति तय करनी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि ऐसा लग रहा कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्माण में कुछ बड़ी कंपनियां अपना वर्चस्व बनाये रखना चाह रही है। इस वजह से उन्होंने इस तरह की स्थिति बना दी कि छोटी इकाईयों को कच्चा माल ही न मिल पाये। अब जबकि विश्व कोरोना वायरस से दो चार हो रहा है। ऐसे में छोटी कंपनियों को लगता है ऐसे मौके पर उन्हें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन निर्माण से जानबूझ कर अलग किया जा रहा है।
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ऐसा लग रहा है कि कुछ कंपनियां हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन खुद ही तैयार करना चाह रही है। उन्होंने कहा कि दिक्कत तो यह है कि केंद्र या राज्य सरकार की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है। होना तो यह चाहिए कि इस मामले में सरकार की ओर से दखल दिया जाये। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार भी इस ओर ध्यान देने की बजाय मामले को टाल रही है। उन्होंने कहा कि अब यदि दवा की मांग अचानक बढ़ गयी तो क्या होगा? तब या तो देश में दवा की कमी हो सकती है, या फिर इसके दाम इतने ज्यादा हो जायेंगे कि आम आदमी की पहुंच से बाहर।