कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखा उत्तराखण्ड के इस गांव में हो रहा सड़क निर्माण, विरोध कर रहे ग्रामीण जान देने पर उतारू

Update: 2020-03-18 05:00 GMT

सड़क निर्माण के लिए ठेकेदार अपनी मशीनें चलवा रहे हैं और ग्रामीण अपनी नाप की जमीनों को बचाने के लिए मशीनों के आगे जान देने तो तैयार बैठे हैं। मगर इस सबसे इतर प्रशासनिक अधिकारी कर रहे हैं किसी बड़े हादसे का इंतजार...

संजय रावत की रिपोर्ट

जनज्वार। तकनीकी युग में विकास की पहली सीढ़ी यातायात के साधनों का सुलभ होना है, जिसके बिना शासन की विकास और कल्याणकारी योजनाओं का कोई औचित्य नहीं रह जाता। यह तब और प्रासंगिक हो जाता है जब मामला सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों का हो, खासकर पहाड़ी क्षेत्र का मामला हो।

त्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखण्ड को 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं। यहां खासकर ग्रामीण इलाकों में जरूरतभर की भी सड़कें नहीं हैं, जो बन भी रही हैं वो डूबते को तिनके का सहारा की तरह हैं। उस पर भी शासन सत्ता का खेल ऐसा चल रहा कि ग्रामीण उससे और भी ज्यादा तकलीफ में जा रहे हैं।

सा ही एक मामला सामने आया है अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट ब्लॉक में। यहां जमिनीपार गांव जोकि ईड़ा बारखाम और तिपौला के बीच के पड़ता है, में बनघट- सेलापानी-मारचूला-धारचूला के नाम से वर्ष 2003 में एक सड़क बनाने की स्वीकृति मिली थी। वर्ष 2011 में इसकी शुरूआत ही विवादों से हुई, क्योंकि इस सड़क का निर्माण ग्रामप्रधान ने बिना ग्रामवासियों की अनापत्ति लिए उनके जाली हस्ताक्षरों के जरिए शुरू करा दिया था। जब तक ग्रामवासियों को इस बात का पता चलता, तब तक 2 किलोमीटर की दूरी तक सड़क कट चुकी थी। ग्रामीणों ने जाली हस्ताक्षरों के माध्यम से सड़क की अनापत्ति लिये जाने पर आपत्ति दर्ज की तो निर्माण कार्य रुकवा दिया गया था।

र्ष 2019 के अक्टूबर महीने में फिर से इस काम के लिए टैण्डर पड़े और 5 नवंबर को आचार संहिता लगी होने के बावजूद धारा 144 का उल्लंघन करते हुए यहां भारी भीड़ के साथ कटान कार्य शुरू करा दिया गया। जब जमीनीपार के ग्रामीणों ने इसका विरोध किया तो ठेकेदारों ने उन्हें डराया—धमकाया। मगर धमकाने के बावजूद ग्रामीण डरे नहीं और अपना विरोध जारी रखा।

स घटना के बाद उपजिलाधिकारी द्वाराहाट की मध्यस्थता में तय किया गया कि जमिनीपार के ग्रामीण जिस तरह चाहते हैं सड़क वैसे ही काटी जाएगी। ग्रामीणों की मांग थी कि इस सड़क को बाराखाम-जामिनीपार से ही आगे बढ़ाते हुए विस्तार दिया जाए, न कि बनघट, सेलापानी को जबरदस्ती काटा जाए, और वृहद जनहित को ध्यान में रखकर कल्याणकारी योजना को अमल में लाया जाए। इसी पर विवाद भी शुरू हुआ था।

ग्रामीणों की मांग के मुताबिक जुड़ने वाले गांवों में जामिनीपार, ईड़ा, भटकोट, पैठानी, बेडूली एवं समस्त विकास खण्ड द्वाराहाट शामिल था। आपत्ति करने वाले ग्रामवासियों का तर्क यह भी था कि जहां से सड़क काटी जा रही है वहां एक भी घर नहीं बना है, जबकि जहां से सड़क काटने पर ग्रामीण जोर दे रहे हैं, वहाँ गांव के गांव बसे हैं। ऐसे में जबरदस्ती नियम विरुद्ध सड़क काटना न तो ग्रामीणों के हित में होगा और न ही उसका किसी को लाभ मिल पायेगा।

जमीनीपार के ग्रामीणों ने लगायी अपनी नापभूमि बचाने की गुहार

ग्रामीणों और ठेकेदारों की बहस और लड़ाई—झगड़े के बाद यह मामला कोर्ट तक जा पहुंचा। भुक्तभोगी ग्रामीणों का कहना है कि चूंकि जनहित के मामले में शासन सत्ता का स्वार्थ सिद्ध नहीं हो पा रहा था तो सड़क निर्माण में शामिल लोगों ने न्यायालय को भी गुमराह कर अपने हित में जांच रिपोर्ट पेश कर दी। ऐसे में फैसला भी जनभावनाओं के खिलाफ आया।

अपनी मांग के विपरीत फैसले को देखकर ग्रामीणों ने चुप्पी साध ली, मगर शासन सत्ता की दबंगई जारी रही। सड़क निर्माण में नियमों के विरूद्ध न्यायालय के फैसले का भी उल्लंघन शुरू हो गया। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि सड़क फैसलानुसार ही बनेगी, पर नाप की भूमि छोड़ बेनाप की भूमि पर सड़क निर्माण किया जायेगा। कोर्ट के आदेश की भी अनदेखी होते देख एक बार फिर ग्रामीण विरोध पर ​उतारू हो गये।

ड़क निर्माण का विरोध कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि जिला प्रशासन, लोक निर्माण विभाग और ठेकेदार मिलक​र हम ग्रामवासियों को झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे रहे हैं।

स बाबत जब उपजिलाधिकारी द्वाराहाट राजकुमार पांडेय से बात करनी चा​ही तो उनका कहना था कि सबकुछ नियमानुसार ही हो रहा है। क्या वन पंचायत और ग्राम पंचायत से अनापत्ति ली गई है? सवाल पूछने पर उनका फोन कट गया, जो कई बार लगाने के बाद भी नहीं उठा।

स बारे में जब सड़क का निर्माण कर रहे ठेकेदार राम सिंह रावत से बात की तो उन्होंने कहा कि मैं जो कर रहा हूँ वो लोक निर्माण विभाग और उपजिलाधिकारी के आदेशानुसार कर रहा हूं।

माचार लिखे जाने तक सड़क निर्माण के लिए ठेकेदार अपनी मशीनें चलवा रहे हैं और ग्रामीण अपनी नाप की जमीनों को बचाने के लिए मशीनों के आगे जान देने तो तैयार बैठे हैं। मगर इस सबसे बेखबर प्रशासनिक अधिकारी जैसे किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।

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