राजकिशोर नहीं रहे हमारे बीच, लेकिन उनका लिखा हमेशा अमर रहेगा

Update: 2018-06-04 11:37 GMT

देश की अवाम राजकिशोर को आखिरी दिनों के लेखक के रूप में याद रखेगी। क्या कमाल की जिजीविषा और लगन थी बदलाव के प्रति राजकिशोर में, वह आईसीयू में जाने से पहले तक वह लिखते रहे, लोगों को सचेत होने और एकजुट संघर्ष के लिए उत्साहित करते रहे...

जनज्वार। फेसबुक पर लिखी अंतिम पोस्ट 'वंशवाद बुरा है तो व्यक्तिवाद अच्छा कैसे' में राजकिशोर लिखते हैं, 'कर्नाटक के विधान सभा चुनाव की सब से असुंदर बात यह है कि शुरू से आखिर तक यही लगता रहा कि चुनाव कर्नाटक के राज्य स्तर के नेता नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी लड़ रहे हैं। निश्चय ही इस चुनाव का एक निर्णायक महत्व है। 2019 में क्या हो सकता है, इसकी एक झाँकी इस चुनाव से मिल सकती है। मोदी को उम्मीद है कि कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस पीपीपी (पंजाब, पुड्डुचेरी और परिवार) की पार्टी बन कर रह जाएगी...' पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें....

AMU विवाद में सेक्युलर जिन्ना हार गए, कट्टरपंथी सावरकर जीत गए

'भाजपा को कैसे हटाएँ' में राजकिशोर कहते हैं, भाजपा की कमान में कई तीर हैं, क्योंकि वह पूरे आधुनिक भारत का विपक्ष है। उसका मुकाबला करने के लिए सिर्फ उसके मुद्दों का विरोध करना काफी नहीं है। विपक्ष को अपने मुद्दे उभारने होंगे। पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें...

'हमारे पूँजीपति माँएँ नहीं हैं, दाइयाँ हैं' 'पोस्ट में राजकिशोर ने लिखा है, 'फ्लिपकार्ट से हम लोगों को प्यार रहा है, क्योंकि यह भारतीय कंपनी थी और इसके जरिए हम किताबें तथा अन्य चीजें खरीदते थे। लेकिन इसके मालिकों ने इसे वालमार्ट को बेच दिया, जिसके बदले उन्हें अच्छे-खास रुपए मिले। मेरी नजर में यह एक बछड़ा खरीदने, उसे पालने-पोसने और बड़ा होने के बाद जल्लाद को बेच देना है। ईद के बाजार में पेश किसी हृष्ट-पुष्ट बकरे की कल्पना आप कर सकते हैं।' पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें...

इसी तरह 'जिन्ना हार गए, सावरकर जीत गए' में राजकिशोर कहते हैं, 'स्वतंत्र भारत में भी मुहम्मद अली जिन्ना चर्चा, प्रेम और घृणा के विषय बने हुए हैं, तो इसका मतलब यह है कि जिन्ना का असर अभी तक गया नहीं है। यह हर कोई जानता है कि जिन्ना कट्टरतावादी मुसलमान नहीं थे। वे लगभग उतने ही आधुनिक थे, जितने नेहरू। फिर भी उन्होंने भारत का विभाजन करने की माँग की, तो इसका आधार धर्म था।' पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें...

'नया भारत नहीं जागा, तो पुराना भारत हम सभी को खा जाएगा' में राजकिशोर लिखते हैं, 'देश के सभी सचेतन लोग इस समय कशमकशम में हैं। वे मोदी शासन का अंत चाहते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि यह कैसे होगा। कोई दल ऐसा दिखाई नहीं देता जो अकेले भारतीय जनता पार्टी को पराजय का स्वाद चखा सके। ले-दे कर राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी पर नजर जाती है, लेकिन किसी भी दृष्टि से ऐसा नहीं लगता कि वह 2019 के लिए सचमुच तैयार है।' पूरी पोस्ट यहां पढ़ें....

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राजकिशोर का निधन

'संघ में बुद्धिजीवी क्यों नहीं हैं' में वो लिखते हैं, संघ का प्रतिनिधि दावा करता है कि भारत में हवाई जहाज भी था, अंग प्रत्यारोपण की कला भी थी, दूरदर्शन, कंप्यूटर और इंटरनेट भी था। लेकिन वह नहीं बताता कि कब, किस युग में था और इनका प्रयोग किस काम के लिए होता था। उस युग में इनका नाम क्या था। उसके लिए इच्छाएँ ही तर्क का पर्याय हैं। और ये इच्छाएँ प्रतिक्रियावादी हैं या मनुष्य को आगे ले जाने वाली, इस पर किसी प्रकार की तथ्याधारित बहस उसे स्वीकार्य नहीं है। चिंतन की स्वतंत्रता से ही बौद्धिकता का वातावरण बनता है। और संघ चिंतन की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं। फिर वहाँ बौद्धिकता या बुद्धिजीवी वर्ग का विकास कैसे हो?' आइए पढ़ते हैं पूरा लेख...

'आंबेडकर का रास्ता अंगारों से हो कर जाता है' में राजकिशोर ने लिखा है, मुरदा गांधीवाद को कोई भी अपना सकता है। मुरदा आंबेडकरवाद भी सहज स्वीकार्य हैं। लेकिन उनके जीवंत स्वरूप को वही धारण कर सकता है जिसे अंगारों पर चलने की चाहत हो। आंबेडकर की मूर्ति अस्मिता का प्रतीक है...पूरा लेख यहां पढ़ें...

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