राष्ट्रपति की सुरक्षा में हरिद्वार में दिखी ये भारी चूक

Update: 2017-09-27 09:42 GMT

राष्ट्रपति की सुरक्षा में चूक का जो मामला सामने आया है, वो सुरक्षा प्रणाली के साथ ही कई अन्य तरह के सवाल भी खड़े कर रहा है...

जगमोहन रौतेला, वरिष्ठ पत्रकार

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द 23-24 सितम्बर, 2017 को उत्तराखण्ड के दौरे पर थे, जिसमें पहले दिन उन्होंने हर की पैड़ी पर परिवार सहित गंगा पूजन करने के अलावा दिव्य प्रेम सेवा मिशन के अभिनन्दन कार्यक्रम में भागीदारी की।

अगले दिन 24 सितम्बर को राष्ट्रपति ने बदरीनाथ व केदारनाथ धामों के दर्शन किए। देश में राष्ट्रपति सर्वाधिक सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों में हैं। इसके बाद भी उनकी सुरक्षा में चूक का मामला सामने आया है, जो सुरक्षा प्रणाली के साथ ही कई तरह के सवाल भी खड़े कर रहा है।

राष्ट्रपति कोविन्द जब दिव्य प्रेम सेवा मिशन का कार्यक्रम समाप्त होने के बाद देहरादून लौट रहे थे तो उनके बेटे प्रशान्त कार्यक्रम स्थल पर ही छूट गए और राष्ट्रपति का काफिला सड़क मार्ग से देहरादून के लिए रवाना हो गया। मौसम खराब होने के कारण राष्ट्रपति सड़क मार्ग से ही देहरादून से हरिद्वार और फिर हरिद्वार से देहरादून लौटे।

पर हरिद्वार से देहरादून को चलते समय उनके बेटे का कार्यक्रम स्थल पर ही छूट जाना गम्भीर लापरवाही का ही परिणाम है। राष्ट्रपति के काफिले के देहरादून को रवाना होने से कुछ क्षण पहले ही उनके बेटे प्रशान्त वॉशरूम चले गए और राष्ट्रपति का काफिला बिना उन्हें लिए ही देहरादून को चल पड़ा। जब प्रशान्त वॉशरूम से बाहर निकले तो उन्होंने राष्ट्रपति के बारे में पूछा। उन्हें बताया गया कि वे तो चले गए हैं। जब उन्होंने खुद को राष्ट्रपति का बेटा बताया तो वहां मौजूद प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए।

आनन-फानन में हरिद्वार के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) मणिकान्त मिश्रा उन्हें अपनी गाड़ी में लेकर देहरादून की ओर चले और हरिद्वार से लगभग 35 किलोमीटर दूर जाकर डोईवाला में उन्हें राष्ट्रपति के काफिले में शामिल गाड़ी में बैठाया गया। इस तरह की गम्भीर लापरवाही ने हालांकि ज्यादा तूल नहीं पकड़ा, लेकिन राष्ट्रपति की सुरक्षा की दृष्टि से यह कोई छोटी घटना नहीं है।

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के काफिले में कितनी गाड़ियां होंगी और उनमें कौन-कौन बैठेगा? यह सब पहले से ही तय होता है। इसमें किसी तरह का हेर-फेर सम्भव नहीं है। अगर कुछ बदलाव भी करना पड़ा और पहले से तय किसी और व्यक्ति को बैठाना भी पड़ा तो इसकी जानकारी सुरक्षा चक्र के जिम्मेदार सभी अधिकारियों को दी जाती है, ताकि किसी तरह की परेशानी न हो।

सवाल खड़ा होता है कि जिस गाड़ी में वे हरिद्वार आए थे, उसके सुरक्षाकर्मी, ड्राइवर और उनके साथ आए दूसरे लोगों ने इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया? वे बिना उन्हें लिए ही देहरादून के लिए कैसे चल दिए? क्या राष्ट्रपति के साथ चलने वालों और उनके परिवार के सदस्यों की कोई सूची बनाई ही नहीं गई थी?

अगर ऐसा था तो यह राष्ट्रपति की सुरक्षा में हुई गम्भीर चूक है। अगर सूची बनी थी तो फिर उनके बेटे प्रशान्त समारोह स्थल पर ही कैसे छूट गए? क्या राष्ट्रपति के सुरक्षा चक्र को उनके बेटे की गतिविधि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी? जब वे वॉशरूम गए तो किसी ने उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया? राष्ट्रपति के बेटे समारोह स्थल से कहॉ गए हैं? इसकी जानकारी तक किसी को न होना भी सुरक्षा में गम्भीर चूक का मामला है।

इतना ही नहीं अभिनन्दन समारोह में राष्ट्रपति के साथ मंच पर एक ऐसा व्यक्ति भी मौजूद था, जिसके खिलाफ जाली दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिकता प्राप्त करने, जाली जन्म प्रमाणपत्र बनवाने, फर्जी डिग्री हासिल करने और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट बनाने का मुकदमा सीबीआई जांच के बाद देहरादून की सीबीआई अदालत में चल रहा है।

उस व्यक्ति को इस मामले में सीबीआई जांच के बाद जेल भी जाना पड़ा था और नैनीताल उच्च न्यायालय से कुछ शर्तों के आधार पर जमानत मिली थी। सीबीआई ने उस व्यक्ति के विदेश भाग जाने की आशंका में पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था। वह भी उच्च न्यायालय ने कुछ कड़ी शर्तों के साथ वापस किया था।

आज जब देश में कई कथित धर्मगुरु अपने विभिन्न तरह के अपराधों के कारण जेल जा चुके हैं और उनके देश के सम्मानित नेताओं के साथ कई तरह के फोटो सामने आ रहे हैं तो देश के नेताओं के चाल और चरित्र पर सवाल उठ रहे हैं। नेता वोट बैंक की राजनीतिक मजबूरियों की वजह से हर तरह के लोगों से हाथ मिलाते हैं और वे यह कहकर बच निकलते हैं कि किसी समारोह में मिल गए थे फोटो खींच लिया तो हमारा गुनाह कैसे हुआ?

अब हमें कैसे पता होगा कि कौन व्यक्ति कैसा है? पर राष्ट्रपति के किसी भी समारोह में उनके साथ मंच पर कौन बैठेगा? उन्हें कौन गुलदस्ता भेंट करेगा? इस बारे में हर तरह की पूरी छानबीन के बाद ही सम्बंधित लोगों के बारे में तय किया जाता है।

राष्ट्रपति के समारोह में भी उनके साथ जो लोग बैठे हैं, उनका चाल और चरित्र किस तरह का है? इस बारे में राष्ट्रपति के सुरक्षा चक्र से जुड़े अधिकारियों से चूक कैसे हुई? क्या उन्होंने जिला प्रशासन से अच्छी तरह से जानकारी नहीं ली या हरिद्वार के जिला प्रशासन ने उन्हें अँधेरे में रखा? या फिर हरिद्वार का जिला प्रशासन सम्बंधित व्यक्ति के इतने प्रभाव में था कि उसने उस व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी से राष्ट्रपति के सुरक्षा अधिकारियों से छुपाया?

इन सवालों का जवाब यदि हां में भी मान लिया जाय तो खुफिया तंत्र इससे लापरवाह क्यों बना रहा? उसके पास तो सम्बंधित विवादित व्यक्ति की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी। उसने भी हरिद्वार के जिला प्रशासन व राष्ट्रपति के सुरक्षा अधिकारियों को अवगत क्यों नहीं कराया?

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की सुरक्षा को लेकर इस तरह की गम्भीर लापरवाही किस स्तर से और क्यों हुई? क्या इसकी उच्च स्तरीय जांच नहीं की जानी चाहिए? आखिर यह देश के प्रथम नागरिक की सुरक्षा से जुड़ा सवाल है। इस तरह की गम्भीर चूक भविष्य में न हो, इसकी जांच इसलिए भी आवश्यक है। क्या राष्ट्रपति भवन इस बारे में कोई कदम उठायेगा?

(लेखक उत्तराखण्ड में जनसरोकारों से जुड़े वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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