निर्भया केस के चारों दुष्कर्मियों को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी पर लटकाने का आदेश

Update: 2020-01-07 17:50 GMT

अभी भी दया याचिका, क्यूरेटिव पिटीशन के विकल्प खुले

16 दिसंबर 2012 को निर्भया गैंगरेप का शिकार हुई थी। नौ महीने बाद यानी सितंबर 2013 में निचली अदालत ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। मार्च 2014 में हाईकोर्ट और मई 2017 में उच्चतम न्यायालय ने फांसी की सजा बरकरार रखी थी...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

वैसे तो दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा ने निर्भया के दुष्कर्मियों का डेथ वॉरंट जारी कर दिया है। निर्भया के माता-पिता की याचिका पर मंगलवार को फैसला सुनाते हुए पटियाला हाउस कोर्ट ने कहा कि चारों दोषियों अक्षय कुमार सिंह (31), पवन गुप्ता (25), मुकेश (32) और विनय शर्मा (26) को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी जाए। दरअसल जिन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जाती है, उनका डेथ वॉरंट अदालत ही जारी करती है। डेथ वॉरंट को ब्लैक वॉरंट भी कहते हैं। इसमें फॉर्म नंबर-42 होता है। इसमें फांसी का वक्त, जगह और तारीख का जिक्र होता है। फांसी पाने वाले सभी अपराधियों के नाम भी लिखे जाते हैं। ये भी लिखा होता है कि दोषी को फांसी पर तब तक लटकाया जाएगा, जब तक उसकी मौत न हो जाए। लेकिन अभी भी निर्भया के दोषियों के सामने दया याचिका, क्यूरेटिव पिटीशन के विकल्प खुले हुए हैं,जिससे डेथ वॉरंट के अमल पर रोक लग सकती है।

निर्भया के केस में वारदात के 2578 दिन बाद डेथ वॉरंट जारी हुआ है। 16 दिसंबर 2012 को निर्भया गैंगरेप का शिकार हुई थी। नौ महीने बाद यानी सितंबर 2013 में निचली अदालत ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। मार्च 2014 में हाईकोर्ट और मई 2017 में उच्चतम न्यायालय ने फांसी की सजा बरकरार रखी थी।

दोषियों के पास 14 दिन का वक्त और 4 तरह की मोहलत है। जेल मैनुअल के मुताबिक, दोषी डेथ वॉरंट के खिलाफ 14 दिन में हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं, नहीं तो दोषियों को तय तारीख पर फांसी दे दी जाएगी। हाईकोर्ट भी डेथ वॉरंट बरकरार रखे, तो दोषी उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं। दोषी मई 2017 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ भी क्यूरेटिव पिटीशन लगा सकते हैं, जिसमें फांसी की सजा बरकरार रखी गई थी। दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा भी है कि हम एक-दो दिन में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करेंगे। 5 जजों की बेंच इस पर सुनवाई करेगी।दोषी राष्ट्रपति के पास दया याचिका भी लगा सकते हैं।

रकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि जेल प्रशासन के दिए नोटिस पीरियड में कोई याचिका दायर नहीं हुई और कोई याचिका कोर्ट में लंबित नहीं है। ये याचिका 2018 से लंबित है। ऐसे में बचाव पक्ष ये नहीं कह सकता कि उन्हें बचाव का मौका नहीं मिला। अब ये अचानक से जागते हैं और कहते हैं कि उन्हें क्यूरेटिव याचिका दायर करनी है। ये मामले को लंबा खींचना चाहते हैं। अगर रिव्यू पिटीशन खारिज की जाती है तो क्यूरेटिव पिटीशन निश्चित समय में ही दायर की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ओपन कोर्ट में रिव्यू पिटीशन खारिज की थी। दोषियों को कानूनी विकल्प अपनाने का भरपूर मौका दिया जा चुका है। अगर बचाव पक्ष को समय चाहिए तो कोर्ट डेथ वॉरंट जारी कर 14 दिन का वक्त दे दे। कोर्ट को डेथ वॉरंट जरूर जारी करना चाहिए। याचिका 2018 से लंबित है। बचाव पक्ष यह नहीं कह सकता कि उन्हें मौका नहीं मिला।

न्याय मित्र वृंदा ग्रोवरने कहा कि हमें कुछ वक्त चाहिए। मैं जेल में मुकेश और विनय से मिली थी। मुझे कोर्ट ने दोषियों के वकील की मदद के लिए नियुक्त किया है। मुझे दोषियों के बचाव का पूरा मौका मिलना चाहिए। अगर कोर्ट ऐसा नहीं करती है तो मुझे केस से डिस्चार्ज कर दिया जाए। दोषी अक्षय ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान जज से बोलने की इजाजत मांगी। उसने कहा कि मीडिया खबरें लीक कर रहा है। इसके बाद मीडिया को कोर्ट रूम से बाहर कर दिया गया। जब जज ने पूछा कि क्या जेल प्रशासन ने नोटिस दिया था तो सभी दोषियों ने कहा कि हमें नोटिस दिया गया था। इसके बाद अक्षय ने कहा कि हम सभी अपने कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

पिछले महीने कोर्ट ने तिहाड़ प्रशासन को निर्देश दिया था कि कैदियों को एक बार फिर नोटिस दिया जाए। इसके बाद जेल प्रशासन ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने के लिए इन्हें दाेबारा से 7 दिन का नोटिस दिया था। इसमें से तीन दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन भी दायर करने की बात कही थी।

तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने कहा कि हमें मेरठ से एक जल्लाद की जरूरत है। इस संबंध में हम उत्तर प्रदेश को जल्द ही पत्र लिखेंगे। हमारे पास तिहाड़ में चारों दोषियों को फांसी देने के सभी इंतजाम हैं। तिहाड़-प्रशासन ने फांसी की सभी तैयारी पूरी कर ली हैं। चारों दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाने के लिए तिहाड़ में करीब 25 लाख रु. की लागत से एक नया फांसी घर तैयार किया गया है।

गौरतलब है कि 16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा से 6 लोगों ने चलती बस में दरिंदगी की थी। गंभीर जख्मों के कारण 26 दिसंबर को सिंगापुर में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी। इस मामले में पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को फांसी की सजा सुनाई गई । ट्रायल के दौरान मुख्य दोषी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। एक अन्य दोषी नाबालिग होने की वजह से 3 साल में सुधार गृह से छूट चुका है।

निचली अदालत, हाईकोर्ट से लेकर उच्चतम न्यायालय तक ने फांसी दी, क्योंकि 4 बातें पुख्ता सबूत बनीं।निर्भया ने मौत से पहले बयान दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गंभीर हालत में भी उसने बयान दिया। उस पर संदेह नहीं किया जा सकता।पीड़िता के शरीर से मिले नमूनों के साथ दोषियों की डीएनए प्रोफाइलिंग मैच हुई। शरीर पर काटने के निशान भी मैच हुए।पुलिस ने अक्षय, मुकेश, पवन और विनय का साजिश का गुनाह साबित किया। ये दुष्कर्मी पीड़िता और उसके दोस्त पर बस चढ़ाना चाहते थे।पीड़िता के साथ बस में यात्रा करने वाले उसके दोस्त ने दुष्कर्मियों के खिलाफ गवाही दी। इस गवाही को कोर्ट ने सबसे भरोसेमंद माना था।

निर्भया केस में चारों दोषियों के पास कुछ कानूनी विकल्प अब भी बचे हुए हैं। यदि दोषी इनका इस्तेमाल नहीं करते हैं तो उन्हें 22 जनवरी को सुबह फांसी दे दी जाएगी, लेकिन यदि वे राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करते हैं तो इसके निपटारे तक डेथ वॉरंट होल्ड पर चला जाएगा। राष्ट्रपति के सामने उसके निपटारे की कोई समय सीमा है। दरअसल इस मामले में सभी मुजरिमों ने अभी तक दया याचिका दाखिल नहीं की है, इसलिए वह चाहें तो इस विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं।

या याचिका दाखिल करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। इस मामले में अब क्यूरेटिव पिटिशन का रास्ता बंद सा दिखता है। दरअसल उच्चतम न्यायालय के रूल और ऑर्डर के तहत प्रावधान है कि क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के दौरान ये अर्जी में बताना होता है कि चूंकि उनके ग्राउंड को रिव्यू पिटिशन पर विचार के दौरान नहीं देखा गया ऐसे में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जाती है।

निर्भया मामले में रिव्यू पिटिशन ओपन कोर्ट में सुना गया और फिर खारिज हो चुका है। ऐसे में ज्ञानंत सिंह के मुताबिक क्यूरेटिव पिटिशन नहीं बनता है। साथ ही क्यूरेटिव पिटिशन में सीनियर वकील का रेफरेंस चाहिए। उधर, दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा है कि वे उच्चतम न्यायालय में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करेंगे। साथ ही कोई भी मुजरिम मानवाधिकार के नाम पर कभी भी रिट दाखिल कर सकता है लेकिन अब कोर्ट में केस की मेरिट पर कोई अर्जी दाखिल नहीं हो सकती है।

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