पिछले कुछ दिनों से कृष्णा सोबती चल रही थीं बीमार, आधी आबादी की आजादी, बराबरी और न्याय की पैरोकारी करने वाली कृष्णा ने हमेशा अपनी रचनाओं के केंद्र में रखा था स्त्री को...
जनज्वार। 'मित्रो मरजानी' जैसी ख्यात कृति से साहित्य को समृद्ध करने वाली सुप्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती का आज 25 जनवरी की सुबह निधन हो गया। उन्हें उनके साहित्यिक योगदान के लिए सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
पाकिस्तान में चिनाब नदी के किनारे छोटे से पहाड़ी कस्बे में 18 फरवरी 1925 को जन्मी कृष्णा सोबती फिलहाल हिंदी में जीवित सबसे वयोवृद्ध महिला रचनाकारों में शामिल थीं। हालांकि पिछले कुछ समय से वे बीमार चल रही थीं, मगर उनकी सक्रियता सदैव बनी हुई थी। कुछ दिन पहले उनका आत्मकथात्मक उपन्यास "गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिन्दोस्तान तक” आया है, जिसमें कृष्णा सोबती ने विभाजन की यातना और जमीन से अलग होने की त्रासदियों के बीच अपने युवा दिनों के संघर्ष की दास्तान लिखी है।
94 वर्षीय कृष्णा सोबती को श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी लिखते हैं, हिन्दी की शिखर-गद्यकार, अन्याय के विरुद्ध सदा जुझारू और सशक्त आवाज़ कृष्णा सोबती सुबह नहीं रहीं। हाल में जब उनसे अस्पताल में मिलकर आया, बोली थीं कि आज ‘चैस्ट’ में दर्द उठा है। हालांकि तब भी देश के हालात पर अपनी व्यथा ज़ाहिर करती रहीं। हम ही उन्हें छोड़कर उठे। कहते हुए कि दर्द ठीक हो जाएगा। आपको सौ साल पूरे करने हैं। उस दशा में भी वे मुस्कुरा दी थीं। जबकि सच्चाई हम सबके कहीं क़रीब ही थी। शायद यही सोच मैंने कुछ तसवीरें लीं। शायद उनकी आख़िरी छवियाँ। वे 94 की थीं। पर हज़ार साल जी कर गई हैं।'
कृष्णा सोबती की ख्यात रचनाओं में 'सूरजमुखी अंधेरे के', 'दिलोदानिश', 'ऐ लड़की', 'समय सरगम', 'जैनी मेहरबान सिंह', 'हम हशमत' जैस उपन्यास शामिल हैं। थोड़े समय पहले उन्होंने 'बुद्ध का कमंडल लद्दाख' और 'गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान' खासी चर्चा का केंद्र बने थे।
उन्होंने पचास के दशक से लेखन शुरू किया था। 'बादलों के घेरे', 'डार से बिछुड़ी', 'तीन पहाड़' और 'मित्रों मरजानी' कहानी संग्रहों में कृष्णा सोबती ने नारी स्वतंत्रता का बेहद सशक्त चित्रण किया है। ख्यात कहानियों में 'सिक्का बदल गया' और 'बदली बरस गई' अविस्मरणीय हैं। 1950 में कहानी 'लामा' से उन्होंने अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत की थी। आधी आबादी की आजादी, बराबरी और न्याय की पैरोकारी करने वाली कृष्णा ने हमेशा अपनी रचनाओं के केंद्र में स्त्री को रखा है।