रोहतक पंचायत ने मुसलमानों के टोपी पहनने, दाढ़ी रखने और नमाज पढ़ने पर लगाई रोक

Update: 2018-09-21 11:05 GMT

Lucknow News : पुलिस की निगरानी में अदा की जाएगी जुमे की नमाज, खुफिया विभाग ने जताई विवाद की आशंका

आश्चर्यजनक तो यह है कि पंचायत का दबाव इतना तगड़ा था कि इस फैसले का स्वागत करते हुए मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखने वाले धोबी समाज ने पंचायत को 11 हजार भेंट कर इस फैसले का स्वागत किया...

जनज्वार, हरियाणा। हरियाणा के रोहतक जिले के टिटौली गांव की पंचायत ने एक ऐसा अमानवीय फैसला सुनाया है, जिसके बारे में सोचकर ही लगता है क्या वाकई हम एक सहिष्णु, लोकतांत्रिक और सभी धर्मों को बराबरी की नजर से देखने वाले समाज में रहते हैं, या फिर हिंदू तालिबान में। पंचायती फरमान को सुन यह भी लगता है कि ऐसे ही फैसले आते रहेंगे तो बीजेपी—संघ के हिंदू राष्ट्र की सोच जल्द ही फलित हो जाएगी।

हिंदू तालिबान की मिसाल पेश करने वाला हालिया फैसला आया है खाप पंचायतों के लिए कुख्यात हरियाणा के रोहतक स्थित टिटोली गांव की पंचायत से, जहां की पंचायत ने 18 सितंबर मुस्लिमों को फरमान सुनाया है कि वे लोग न तो दाढ़ी रखेंगे और न टोपी पहनेंगे। इतना ही नहीं वे लोग सार्वजनिक रूप से नमाज भी नहीं पढ़ेंगे। इसे क्या कहेंगे कि उन्हें अपने बच्चों के नाम उर्दू—अरबी के बजाय हिंदी जुबान में ही रखना होगा। कुल मिलाकर उन्हें अपनी मजहबी पहचान छुपाकर रखनी होगी।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मुस्लिमों के अधिकारों की धज्जियां उड़ाता यह फैसला टिटोली की पंचायत ने 500 लोगों की मौजूदगी में लिया। यही नहीं जब यह फैसला लिया जा रहा था तब पंचायत में कई मुस्लिम धर्म के लोग भी मौजूद थे।

जानकारी के मुताबिक टिटौली गांव के सरकारी स्कूल के पास 22 अगस्त को ईद-उल-अजहा के मौके पर एक बछड़े की हत्या करने की खबर आई, तो ग्रामीणों ने बछड़े को मारने का आरोपी गांव के धोबी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले यामीन खोकर को बताया। इसी संबंध में पिछले मंगलवार को एक पंचायत आयोजित की गई थी, जिस पर यह फैसला सुनाया गया।

खबरों के मुताबिक ही कथित आरोपी यामीन खोकर को पंचायत ने गांव निकाला देकर गांव में प्रवेश पर आजवीन प्रतिबंध लगा दिया है और गांव में रहने वाले मुसलमानों को अपनी मजहबी पहचान छिपाकर रहने का फैसला सुनाया है। ताज्जुब की बात तो यह कि जब पंचायत यह तालिबानी फैसला सुना रही थी तो उसे आम सहमति से मंजूरी भी मिल गई और मुस्लिमों ने भी शायद डरकर इसपर अपनी सहमति दे दी, क्योंकि पंचायत ने जब यह फैसला सुनाया तो जिस समाज धोबी समुदाय से गौकशी का आरोपी यामीन आता है, उसके लोगों ने पंचायत का आभार भी व्यक्त किया, शायद वैमनस्यता और हिंसा फैलने के डर से। पंचायत के इस फैसले के बाद धोबी समुदाय के जयवीर पुत्र रत्न ने तो मौके पर ही गोशाला के लिए 11000 हजार रुपये नकद दे दिए।

सामाजिक—राजनीतिक कार्यकर्ताओं की राय में रोहतक जिले के टिटौली गांव में पंचायत द्वारा मुस्लिम समाज के लोगों को सार्वजनिक जगहों पर नमाज न पढ़ने, टोपी न पहनने, बच्चों के नाम अपनी मर्जी से न रखने की शर्तें थोपने वाला 18 सितंबर को हुआ फैसला गैरकानूनी, असंवैधानिक, मानवाधिकार का हनन करने वाला है। साथ ही यह भारत की संस्कृति व विचार पर भी गहरी चोट है, इसलिए इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

संविधान के अनुसार हमारा देश लोकतांत्रिक, सेक्युलर, बहुलतावाद में विश्वास करने वाला है, जहां हर नागरिक को आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक न्याय मिलना सुनिश्चित किया जाता है। मगर इस घटना के बाद यह सवाल और गहरा गया है कि क व्यवहार में उक्त न्यायप्रिय सिद्धान्त लागू हो पा रहे हैं?

इस फैसले पर गांव के धोबी समाज के एक व्यक्ति ने कहा कि उन्हें यह राजीनामा मंजूर है। गांव में किसी तरह के तनाव की खबर भी नहीं है, मगर प्रशासन नजर बनाए हुए है।

इस तुगलकी फरमान पर स्वराज अभियान के ​हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष राजीव गोदारा कहते हैं, यदि प्रशासन को उक्त फैसले की खबर थी तो खबर का संज्ञान लेकर क्या कार्रवाई की? यदि खबर झूठी है तो क्या सरकार ने अखबार से कहा कि वे खबर का खंडन छापे? क्योंकि इस खबर से समाज में वैमनस्य बढने की भरपूर संभावना है। अगर किसी पंचायत ने इस तरह का फैसला किया है तो सरकार ने उस पंचायत में शामिल होने वाले लोगों की पहचान करके उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।

राजीव गोदारा आगे कहते हैं, हरियाणा राज्य सरकार का फर्ज है कि खबर में छपी घटना की तुरन्त से जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करे। जिस समाज पर शर्तें थोपकर उनके संवैधानिक अधिकारों को छीनने की कोशिश की गई है, यदि वह पूरा समाज भी इस फैसले को स्वीकार कर ले तब भी इस तरह के अमानवीय व गैर संवैधानिक फैसले को लागू करने की छूट नहीं दी जा सकती, बल्कि फैसला करने वालों के खिलाफ तुरन्त फौजदारी कार्रवाई की जानी बनती है।

भारत का संविधान देश के हर नागरिक को अपना धर्म अपनाने व उसके अनुरूप जीने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। संविधान व कानून के अनुसार व्यक्तियों का कोई भी समूह व्यवस्था का संचालक बन कर कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकता। न ही किसी नागरिक या समूह पर अपने फैसले थोप सकता।

सामाजिक—राजनीतिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक किसी ताकतवर समूह द्वारा किसी व्यक्ति या समूह पर शर्तें लगाना अपराध है। किसी भी तरह की पंचायत द्वारा लिये गए गैरकानूनी फैसले से समाज के हिस्से में डर का भाव पैदा होता है तब वह वर्ग अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी असंवैधानिक व गैर कानूनी निर्णय को मानने की बात कह कर सुरक्षित होने की राह खोजता है। यह शासन—प्रशासन का असफलता को ही उजागर करता है।

सवाल यह भी उठता है कि सार्वजनिक जगह का प्रयोग न करने की कार्यवाही एकतरफा क्यों व कैसे की जा सकती है? धर्म को मानने का मौलिक अधिकार सुरक्षित करने के लिए सार्वजनिक जगह पर नमाज अदा करने की छूट क्यों नहीं दी जा सकती? यदि बार बार धार्मिक उद्देश्यों के लिय सार्वजनिक जगह प्रयोग की जाती है तो मुस्लिम नमाज को वही इजाजत क्यों नहीं?

गौरतलब है कि हरियाणा में मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव की घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है। कई साल पहले कैथल में मस्जिद में तोड़फोड़ की कई घटनाए हुई थीं, तो तीन महीने पहले गुरुग्राम में खुली जगह पर नमाज पढ़ने को लेकर खासा विवाद हुआ था।

तीन महीने पहले हुए विवाद के बाद राज्य की भाजपानीत खट्टर सरकार के खुली जगहों पर नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद कई और जगहों पर भी नमाज पढ़ने के लेकर विवाद पैदा हुआ था। इसी साल जुलाई में करनाल में मस्जिद में नमाज पढ़ते हुए हमला किया गया था।

यही नहीं एक युवक की दाढ़ी कटवाने का मामला भी हरियाणा में ही सामने आया था। यह वही हरियाणा है जहां जुलाई महीने में ही अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले के विरोध में हुए बजरंग दल के विरोध प्रदर्शन के दौरान भारत माता की जय नहीं बोलने के आरोप में एक मुस्लिम व्यापारी को सार्वजनिक रूप से बुरी तरह पीटा गया था।

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