अंदाजा भी है गुजरात जीतने के लिए क्या कर रही है भाजपा

Update: 2017-11-19 21:23 GMT

सोशल मीडिया में वायरल हो रहे एक वीडियो के बारे में बताया है कि कैसे भाजपा उसमें लोगों को बता रही है कि अगर वे कांग्रेस को वोट देंगे और कांग्रेस की सरकार आ गई तो उनकी लड़कियों को मुसलमान लड़के छेड़ने लगेंगे...

सुंदर चंद ठाकुर
संपादक, नवभारत टाइम्स

एक समय था जब टीएन शेषन निर्वाचन आयोग के मुखिया हुआ करते थे। 1990 से 1996 तक। उन दिनों पहली बार मुख्य निर्वाचन आयुक्त जैसे थके हुए पद पर आसीन कोई अधिकारी नेशनल सिलेब्रिटी बना था।

आम जनता के बीच टीएन शेषन बड़े-बड़े नेताओं से ज्यादा लोकप्रिय हो गए थे। अखबारों में चुनाव के बारे में छपे न छपे, पर मुख्य चुनाव आयुक्त के बारे में जरूर छपता था। सामान्य ज्ञान की परीक्षाओं में अब केंद्रीय मंत्रियों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के नाम के अलावा 'निर्वाचन आयोग के वर्तमान मुख्य आयुक्त का नाम क्या है' जैसा प्रश्न भी पूछा जाने लगा था।

टीएन शेषन की इस लोकप्रियता और अलोकप्रियता की वजह यह थी कि उन्होंने ताक पर रख छोड़ दिए गए चुनाव संबंधी कानूनों को बेरहमी के साथ लागू करवाया। तब टीवी पर 'शेषन बनाम नैशन' शीर्षक से बहस चलती थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में चार बड़े काम किए।

पहला यह कि चुनावी आचार संहिता सिर्फ कागजों तक न सीमित रहे, इसका अक्षरश: पालन हो। दूसरा, उन्होंने वोटर कार्ड शुरू करवाया, वरना पहले फर्जी वोटरों की भरमार हुआ करती थी। उन्होंने उम्मीदवारों द्वारा चुनावी प्रचार में खर्च को सीमित किया और चुनाव की ड्यूटी पर बाहर से चुनाव अधिकारियों को तैनात करना शुरू किया। उन्होंने पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा चुनाव से पहले पैसा और शराब बांटने जैसे चलन को बंद करवाया। चुनाव प्रचार में सरकारी सुविधाओं के इस्तेमाल पर रोक लगवाई और हर तरह के सांप्रदायिक प्रचार को भी बंद करवाया।

यह टीएन शेषन की ही मेहरबानी है कि चुनाव के दिनों में निर्धारित समय बाद अब हमें लाउडस्पीकरों पर भोंडा प्रचार सुनने को नहीं मिलता। पर शेषन के जाने के बाद निर्वाचन आयोग के दूसरे लगभग अकर्मण्य आयुक्तों की मेहरबानी है कि नेताओं की प्रजाति में जो खौफ शेषन ने अपने कार्यकाल में पैदा किया था, वह खत्म हो चुका और अब हमें चुनावों के दौरान फिर से हैरान परेशान करने वाले वाकये सुनाई-दिखाई देने लगे हैं।

कुछ दिनों पहले एक ऐसा वाकया फेसबुक पर पढ़ने को मिला। किसी पत्रकार गौरव सगवाल की पोस्ट थी। उन्होंने हिमाचल में चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान भाजपा नेताओं द्वारा उनकी मॉब-लिंचिंग की कहानी लिखी है और अपनी चोटग्रस्त तस्वीर भी लगाई। उनकी गलती सिर्फ इतनी ही थी कि उन्होंने भाजपा कार्यालय में नेताओं को ग्रामीण लोगों को पर्ची बांटते हुए देखा।

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इन पर्चियों को दिखाकर लोकल दुकानों से शराब ली जा रही थी। शेषन साहब होते तो शायद ये सभी नेता जेल की सलाखों के पीछे होते, पर यहां हुआ उलटा। जैसा कि गौरव ने लिखा है कि शराब बांटने के लिए नेताओं को तो कुछ नहीं कहा गया, पर पत्रकार को युद्धवीर सिंह नामक गुन्नूघाट (नाहन) के थाना प्रभारी ने जरूर कुछ आशीष वचन दिए। इनमें से एक को गौरव ने उद्धृत भी किया है- 'तुम साले पत्रकार हो जुत्ती खाने लायक।'

हिमाचल में अगर खुलेआम शराब बांटी जा रही है, तो सोचिए गुजरात में क्या जो नहीं हो रहा होगा। वह तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गढ़ है। वहां चल जो भी रहा हो, पर निर्वाचन आयोग के मुखिया अचल कुमार ज्योति, जो खुद भी गुजरात में लंबा कार्यकाल गुजार चुके हैं और गुजरात सरकार में मुख्य सचिव रहे हैं, अब तक खामोश बने हुए हैं।

मीडिया में उनके ज्यादा बयान नहीं दिखाई-सुनाई पड़ रहे, क्योंकि कहीं कार्रवाई होती नहीं दिख रही। आयोग चुप है, पर लोगों की नजर है कि कहां क्या चल रहा है। अहमदाबाद के एक वकील ने आयोग को शिकायत की है कि भाजपा सोशल मीडिया में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली सामग्री डाल रही है।

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उन्होंने सोशल मीडिया में वायरल हो रहे एक वीडियो के बारे में बताया है कि कैसे भाजपा उसमें लोगों को बता रही है कि अगर वे कांग्रेस को वोट देंगे और कांग्रेस की सरकार आ गई तो उनकी लड़कियों को मुसलमान लड़के छेड़ने लगेंगे। अब देखना यह है कि निर्वाचन आयोग इस शिकायत पर क्या कार्रवाई करता है।

असल में जो काम अहमदाबाद के वकील ने किया है, वह काम निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को करना चाहिए था। इस वक्त जबकि गुजरात में आचार संहिता लागू है, आयोग को राज्य के चप्पे-चप्पे पर नजर रखनी चाहिए थी, मगर क्या ऐसा किया जा रहा है? अभी तक लोगों को आचार संहिता के उल्लंघन के लिए नोटिस दिया गया हो, ऐसी खबरें पढ़ने को नहीं मिली हैं।

शेषन अपने समय में सुनिश्चित करते थे कि सत्तारूढ़ सरकार का कोई मंत्री चुनाव में अपनी पार्टी के प्रचार के लिए सरकारी सुविधाओं का उपयोग न कर पाए, पर यहां तो अपना काम छोड़कर न सिर्फ केंद्र से, बल्कि राज्यों से भी मंत्रीगण चुनाव प्रचार के लिए गुजरात पहुंचे हुए हैं। उनके वहां पहुंचने में तकनीकी अड़चन न सही और यह कानूनन भी भले ही सही हो, पर क्या जनता के साथ बेवफाई नहीं।

जनता ने उन्हें अपने राज्य में काम करने के लिए चुना है, पराए राज्य में चुनाव प्रचार के लिए नहीं। यह नैतिकता का तकाजा है कि पार्टी स्वयं इस तरह दूसरे राज्यों से पदस्थ मंत्रियों को न बुलाए। पर जहां कानून सम्मत चुनावी आचार संहिता को ही ठीक से लागू करने वाला कोई नहीं, वहां नैतिक तकाजों की ख्वाहिश रखना भी बेमानी है।

(नवभारत टाइम्स मुंबई के संपादक सुंदर चंद ठाकुर ने यह पोस्ट फेसबुक पर साझा की है।)

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