क्या मोदी और जेटली राष्ट्र को बताएंगे कि एनआईए प्रमुख को रिटायर होने के बाद दो वर्ष तक सेवा विस्तार और फिर भारत सरकार के विजिलेंस कमिश्नर के पद से क्यों नवाजा गया? यह समझौता व अन्य कई आतंकी मामलों में असीमानंद और उसके साथियों के विरूद्ध केस कमजोर करने के पुरस्कार स्वरूप नहीं तो और क्या है...
सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ पूर्व आईपीएस वीएन राय का विश्लेषण
जनज्वार। समझौता ट्रेन तो जल गई, लेकिन अपने पीछे सुलगते मुद्दे छोड़ गयी। बारह साल बाद केस में फैसला तो आया, लेकिन मोदी सरकार की जाँच में धांधली के चलते असीमानंद समेत सभी आरोपी बरी हो गये। जांच को मुख्यतः चार चरणों में देखा जा सकता है।
पहले चरण में हरियाणा पुलिस एसआईटी की शुरुआती एक वर्ष की जांच रही, जिसमें स्थापित हुआ कि इस जघन्य अपराध का केंद्र बिंदु इंदौर था और इसके तार पाकिस्तानी संगठनों से नहीं बल्कि उग्र हिन्दुत्ववादी समूहों से जुड़े हुए थे।
संबंधित खबर : मोदी की माया : असीमानंद निर्दोष हो गए और राजेश्वर सिंह प्रमोटेड
दूसरा चरण वह था जब सीबीआई ने करीब दो वर्ष जांच की मॉनिटरिंग की। इस दौरान जांच उपरोक्त लाइन पर ही आगे बढ़ी, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकी।
वर्ष 2010 में आतंकी अपराधों की जांच के लिए केन्द्रीय एजेंसी एनआईए के गठन के बाद जांच उसके पास आ गयी और गिरफ्तारियां शुरू हुयीं। जांच की दिशा वही रही, जो हरियाणा एसआईटी ने निर्धारित की थी। तीन अपराधी गिरफ्तार नहीं किये जा सके, लेकिन नवम्बर 2011 में अदालत में चालान दे दिया गया।
संबंधित खबर : समझौता विस्फोट केस के फैसले से एनआईए पर उठे सवाल
चौथा चरण मई 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के साथ शुरू हुआ। एनआइए चीफ शरद कुमार ने आरएसएस और मोदी सरकार के दबाव में पलटी मारी और एजेंसी की सारी शक्ति केस में आरोपियों को बरी कराने में लग गयी। महत्वपूर्ण गवाह या तो बिठा दिए गए या उनकी गवाहियां ही नहीं कराई गयीं। तीन भगोड़े अपराधियों को पकड़ने के कोई प्रयास ही नहीं हुए। इस सबका लाभ आरोपियों को मिला।
मोदी के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बयान दिया है कि असीमानंद समेत सभी अपराधी निर्दोष थे, इसलिए बरी हो गए, जबकि एनआईए अदालत के जज जगदीप सिंह के फैसले के अनुसार एनआईए ने जान—बूझकर इस केस को खराब किया और इसलिए मजबूरी में उन्हें आरोपियों को बरी करना पड़ा।
संबंधित खबर : मोदी के न्यू इंडिया में पुरोहित का ‘एनआईए इंडिया’ भी
प्रमुख सवाल यह बनता है कि अगर वाक़ई असीमानंद गिरोह निर्दोष था तो मोदी-जेटली की एनआइए ने उन पर मोदी शासन के पाँच वर्षों में भी मुक़दमा क्यों बनाये रखा? अगर कोई नये सबूत आ गये थे जो जाँच को नई दिशा दे रहे थे तो उनके आधार पर, क़ानून अनुसार, आरोपियों को अदालत से आरोप मुक्त क्यों नहीं कराया गया?
क्या मोदी और जेटली राष्ट्र को बताएंगे कि एनआईए प्रमुख को रिटायर होने के बाद दो वर्ष तक सेवा विस्तार और फिर भारत सरकार के विजिलेंस कमिश्नर के पद से क्यों नवाजा गया? यह समझौता व अन्य कई आतंकी मामलों में असीमानंद और उसके साथियों के विरूद्ध केस कमजोर करने के पुरस्कार स्वरूप नहीं तो और क्या है?
संबंधित खबर : मोदी ने चुका दिया आरके राघवन का अहसान
इस तरह परोक्ष रूप से मोदी सरकार ने हाफ़िज़ सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को बचाने के पाकिस्तानी दाव-पेंच का ही समर्थन कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किस मुँह से भारत सरकार आतंक विरोधी ललकार उठाएगी?
(वीएन राय समझौता ट्रेन धमाके में हुई एसआईटी जांच के प्रमुख रहे हैं।)