रामजन्मभूमि विवाद पर कोर्ट बोला किसी पक्ष के पास नहीं हैं मालिकाना हक को लेकर प्रत्यक्ष सबूत
जस्टिस बोबड़े ने कहा हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों के पास अयोध्या की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर नहीं है कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य, सभी पक्ष का मामला टिका हुआ है पुरातत्व रिपोर्ट के नजरिये पर...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
अयोध्या भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष 33वें दिन की सुनवाई में 28 सितंबर को जस्टिस बोबडे ने एक अहम टिप्पणी में जहां कहा कि किसी पक्ष के पास कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं हैं। वहीं जस्टिस अब्दुल नज़ीर का कहना था कि पुरातत्व नतीजों को भी पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस बोबड़े ने कहा कि ये काफी प्राचीन दौर की बात है, इसलिए कोई राय बनाना कठिन है। दोनों पक्षों के तर्क अनुमानों पर आधारित हैं। हमें इन अनुमानों की पुष्टि करने की जरूरत है।
मुस्लिम पक्षकारों की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआई रिपोर्ट के मुख्य भाग और निष्कर्ष के बीच कोई समानता नहीं है। एएसआई ने माना है कि गुप्तकाल तक जगह की प्रकृति की पहचान नहीं की जा सकती थी। यह कहना गलत है कि मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसे "दिव्य" कैसे कहा जा सकता है? दिव्य युगल का नाम कैसे दिया जा सकता है? गोल गुंबद के पास अष्टकोणीय आकृति थी।
एएसआई की रिपोर्ट सिर्फ एक राय है। इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2003 की रिपोर्ट कोई ‘साधारण राय’ नहीं है। पुरातत्ववेत्ताओं ने खुदाई में मिली सामग्री के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा सौंपे गए काम पर अपनी राय दी थी।सुशिक्षित एवं अध्ययनशील विशेषज्ञों द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट से निष्कर्ष निकाला गया है।
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट अलग-अलग विशेषज्ञों की अलग-अलग राय वाली है। लिहाजा वैज्ञानिक कम और कल्पना पर ज़्यादा आधारित है। रिपोर्ट से कहीं साबित नहीं होता कि वहां गुप्तकाल का भी निर्माण था। जिस महल की बात की जा रही है, उसका निर्माण मध्यकाल का है। ऐसे में उसे 12वीं सदी का मंदिर बताना गलत है। उसे दिव्य कहना भी उचित नहीं। ढांचे पर बना गोल गुंबद भी छह पहलुओं वाला था।
संबंधित खबर : रामजन्मभूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर सवाल खड़े करने के लिए मुस्लिम पक्ष ने मांगी माफी
अयोध्या मामले में एएसआई की रिपोर्ट पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने कहा कि पुरातत्व भी पूरी तरह से विज्ञान नहीं है। सेक्शन 45 इस पर लागू नहीं होता है। एएसआई रिपोर्ट की जांच की गई थी और आपत्तियों पर विचार भी किया गया। जस्टिस नज़ीर ने मुस्लिम पक्षकारों की दलील पर टिप्पणी की कि आप रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर सवाल नहीं उठा सकते। कोर्ट की ओर से नियुक्त उस कमिश्नर ने यह रिपोर्ट दी है जो जज के समान थे।
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व विभाग के हरेक पुरातत्व अधिकारी ने अपनी सोच के हिसाब से तस्वीर तैयार की है। उसी के आधार पर वह निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश करता है। पुरातत्व विज्ञान बिल्कुल हैंडराइटिंग विज्ञानी कि तर्ज पर अंदाजे से काम करते हैं। एक पुरातत्व विज्ञानी की राय दूसरे से आमतौर पर नहीं मिलती। गौर करने वाली बात ये है कि फिंगरप्रिंट कि जांच बिल्कुल सटीक होती है, क्योंकि मिलान का प्रतिशत कहीं ज्यादा होने पर सही माना जाता है।
जस्टिस बोबडे ने कहा कि क्या आपके पास कोई ऐसा पुरातत्व विज्ञानी है जो एएसआई की रिपोर्ट को नकार सके जैसे आप नकार रही हैं। इस पर मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि हिन्दू पक्ष कि ओर से पेश हुए गवाहों कि राय भी पुरातत्व विभाग से इतर थी। जयंती प्रसाद श्रीवास्तव, रिटायर्ड पुरातत्व अधिकारी ने विभाग कि रिपोर्ट से इतर राय रखी।
जस्टिस बोबड़े ने कहा कि दोनों ही पक्षों के पास मालिकाना हक को लेकर कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। सभी पक्ष का मामला पुरातत्व रिपोर्ट के नजरिये पर टिका हुआ है। इस पर मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व विभाग कि रिपोर्ट में कहीं नहीं कहा गया कि अमुक स्थान राम मंदिर है, जबकि राम चबूतरे को वॉटर टैंक बताया गया है।
जस्टिस बोबडे ने कहा कि एक बात तो साफ है कि वह पर कब्ज़े को लेकर विवाद था, लेकिन क्या ये विवाद सिर्फ राम चबूतरे का था या पूरे जन्मस्थान का? मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश शेखर नाफडे ने कहा कि हिन्दू वहां पर कुछ जमीन पर पूजा करते थे। उनका सिर्फ राम चबूतरे पर नियंत्रण था, वे स्वामित्व हासिल करने की कोशिश कर रहे थे जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। उन्होंने अतिक्रमण करने के लिए लगातार प्रयास किया।
नाफडे ने कहा कि वहां पर हिंदुओं का सीमित अधिकार था और वो उसको बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने कहा कि न्यायिक कमिश्नर ने माना था कि वहां पर हिंदुओं का सीमित अधिकार था और वो उसको बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हिंदुओं के सीमित अधिकार को स्वीकार किया था उनका स्वामित्व स्वीकार नहीं किया था।
नाफडे ने कहा कि 1885 के सूट पर फैजाबाद की अदालत का फैसला हिंदुओं पर बाध्यकारी है। इस फैसले में अदालत ने मंदिर के निर्माण और अन्य अधिकारों से इनकार कर दिया था। नाफडे ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत के आधार पर अपनी दलीलें पेश कीं। दीवानी कानून के तहत यह सिद्धांत इस तथ्य के बारे मे है कि एक ही तरह के विवाद का अदालत में दो बार निर्णय नहीं हो सकता है।
नाफडे के मुतातबक 1885 में महंत रघुवर दास ने विवादित परिसर के दायरे में राम मंदिर के निर्माण की अनुमति मांगी थी, लेकिन अदालत ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। नाफडे ने पूर्व निर्णय के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि उसी विवाद को कानून के तहत हिंदू पक्षकार फिर से नहीं उठा सकते हैं।