बच्चों के साथ यौन अपराधों पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

Update: 2019-07-26 06:16 GMT

इस साल के पहले छह महीने में पॉक्सो के तहत 24,212 एफआईआर दर्ज हुई हैं। इनमें से अब तक सिर्फ 6,449 में मुकदमा शुरू हो पाया है। पिछले सालों में दर्ज मुकदमों की संख्या को जोड़ दें, तो लंबित मामलों की संख्या लाखों में है...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

देश में बच्चों के साथ यौन अपराध के बढ़ते मामलों पर उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा है कि जिन जिलों में इस तरह के लंबित मामलों की संख्या 100 से ज्यादा है, वहां 60 दिनों के भीतर विशेष पॉक्सो कोर्ट बनाए जाएं। इन अदालतों के गठन का खर्चा केंद्र सरकार उठाएगी। ये अदालतें सिर्फ बच्चों के साथ यौन अपराध के मामलों की सुनवाई करेंगी।

गौरतलब है कि बच्चों के साथ हुए यौन अपराध पर कार्रवाई के लिए 2012 में संसद ने विशेष कानून 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस' यानी पॉक्सो पारित किया था। इसके तहत इस तरह के मामलों की जांच के लिए विशेष पुलिस टीम बनाने, हर जिले में विशेष कोर्ट के गठन जैसे प्रावधान हैं। लेकिन देश के ज़्यादातर जिलों में इन पर अमल नहीं हो पाया है। अब उच्चतम न्यायालय ने ज़्यादा अपराध वाले जिलों में विशेष पॉक्सो अदालतों के गठन का आदेश दिया है।

च्चों से बलात्कार और यौन शोषण की बढ़ती घटनाओं पर उच्चतम न्यायालय खुद ही संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है। पीठ ने मसले पर सुझाव देने के लिए वरिष्ठ वकील वी. गिरी को न्याय मित्र नियुक्त किया था। साथ ही पीठ की रजिस्ट्री से देश के हर जिले में लंबित पॉक्सो मामलों का ब्यौरा मांगा था।

जिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार इस साल के पहले छह महीने में पॉक्सो के तहत 24,212 एफआईआर दर्ज हुई हैं। इनमें से अब तक सिर्फ 6,449 में मुकदमा शुरू हो पाया है। पिछले सालों में दर्ज मुकदमों की संख्या को जोड़ दें, तो लंबित मामलों की संख्या लाखों में है।

मुकदमे के दौरान आरोप साबित होने को लेकर भी स्थिति बेहद खराब है। ओडिशा में तो महज 12 फीसदी मामलों में ही दोष साबित हो सका है। कुल दर्ज मामलों में से केवल 4 फीसदी में आया है फैसला। इनमें से 11981 मामलों में जांच चल रही है, जबकि 12231 केस में पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है, लेकिन 6649 मामलों में ही ट्रायल शुरू हो पाया है। अभी ट्रायल कोर्ट 911 मामलों में ही फैसला दे पाया है यानी कुल मामलों का 4 फीसदी।

स सूची में उत्तर प्रदेश 3457 मुकदमों के साथ पहले स्थान पर है, जबकि 9 मुकदमों के साथ नगालैंड सबसे निचले पायदान पर है। उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत से ज्यादा 1779 मामलों की जांच ही पूरी नहीं हो पाई है। इन मामलों में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल नहीं हो पाई है। सूची में मध्य प्रदेश दूसरे नम्बर पर है। 2389 मामले तो हुए, लेकिन पुलिस ने 1841 मामलों में जांच पूरी कर चार्जशीट भी दाखिल की। राज्य की निचली अदालतों ने 247 मामलों में तो ट्रायल भी पूरा कर लिया है।

न्याय मित्र वी. गिरी ने हालात बेहतर करने के लिए कई सुझाव कोर्ट में रखे हैं। उन्होंने कहा है कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधान के मुताबिक बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की जांच के लिए हर जिले में विशेष पुलिस टीम का गठन हो। हर ज़िले में विशेष पॉक्सो अदालत बनाई जाए। कोर्ट का माहौल बच्चों के अनुकूल रखा जाए।

पॉक्सो मामलों को देखने के लिए अलग से सरकारी वकीलों की नियुक्ति हो। ये वकील बच्चों के प्रति संवेदनशील हों। उन्हें विशेष प्रशिक्षण मिले। पॉक्सो कोर्ट में सपोर्ट स्टाफ हो जो बाल मनोविज्ञान को समझता हो। ये स्टाफ कोर्ट परिसर में अलग से बने कमरे में पीड़ित बच्चे से बयान ले। जज और वकील वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए इसे देखें। जांच में तेज़ी लाने के लिए हर जिले में फॉरेंसिक टेस्ट लैब हो। ये लैब सिर्फ बच्चों के यौन शोषण से जुड़े सबूतों की जांच करे। मुकदमों का निपटारा साल भर के भीतर हो।

पीठ ने इन अदालतों का माहौल बच्चों के मुताबिक रखने और प्रशिक्षित सपोर्ट स्टाफ रखने को कहा है। आदेश में ये साफ किया गया है कि इन अदालतों के गठन का खर्चा केंद्र सरकार उठाएगी। इस विषय पर जागरूकता फैलाने के लिए वीडियो क्लिप देश के सभी सिनेमा हॉल और टीवी चैनलों में दिखाने का निर्देश भी सरकार को दिया है।

पीठ ने कहा है कि इस क्लिप में बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ बने कानून, मुकदमा दर्ज कराने की प्रक्रिया और विशेष कोर्ट जैसी बातों की जानकारी लोगों को दी जाए।क्लिप में चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर को भी प्रदर्शित किया जाए। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा है कि वो इस दिशा में हुई प्रगति का ब्यौरा 4 हफ्ते में पीठ को दें।

पॉक्सो संशोधन विधेयक पारित

इस बीच राज्यसभा ने बुधवार 24 जुलाई को पॉक्सो संशोधन विधेयक पारित कर दिया, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी को परिभाषित करते हुए बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में मृत्यु दंड का भी प्रावधान किया गया है। उच्च सदन में लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण संशोधन विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध और दुष्कर्म के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने 1023 विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें गठित करने को मंजूरी दी है। उन्होंने कहा कि अभी तक 18 राज्यों ने ऐसी अदालतों की स्थापना के लिए सहमति जताई है।

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