प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम भाजपा नेता और अन्य पार्टियों के नेता भी आये दिन ऐसी सार्वजनिक टिप्पणियां करते रहते हैं, जिससे साबित होता है कि वो फिर से एक ऐसा भारत निर्मित करना चाहते हैं, जहां इंसान बजाय वैज्ञानिक सोच के जादू—टोना, चमत्कार, गंडा-ताबीज में रह जाये उलझकर...
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से विज्ञान वेदों में समा गया है और इसकी तुलना चमत्कार, अंधविश्वास और जादू-टोना से की जाने लगी है। अब विज्ञान वैज्ञानिकों के हाथ से निकल कर नेताओं के दिमाग की उपज रह गया है, विशेष तौर पर बीजेपी के नेता विज्ञान से सम्बंधित अवैज्ञानिक टिप्पणी करने में माहिर हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हाल में ही बताया की गाय सांस में ऑक्सीजन लेती है और सांस के साथ ऑक्सीजन ही छोड़ती है। उनके अनुसार गाय को सहलाने से सांस के रोग ठीक हो जाते हैं और गाय के पास रहने से टीबी भी ठीक हो जाता है। सांसद सत्यपाल सिंह अनेकों बार डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को सार्वजनिक तौर पर गलत बता चुके हैं, प्रधानमंत्री मोदी भी समय-समय पर विज्ञान पर अपने नए सिद्धांत सार्वजनिक करते रहे हैं। जब बादल छाते हैं तब राडार काम नहीं करता, यह वक्तव्य तो आपको याद ही होगा।
उत्तराखण्ड के सांसद और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के अनुसार यदि किसी महिला को डॉक्टर ने बताया है की सीजेरियन ऑपरेशन कराना पड़ेगा तब यदि उसे गरुड़ गंगा के पत्थर को घिसकर एक कप इसका पानी पिलाया जाए तव शर्तिया नॉर्मल डिलीवरी होगी। संसद को उन्होंने यह भी बताया की पैन्क्रेयास के कैंसर का इलाज दुनिया में कहीं नहीं है, पर उत्तराखंड के एक वैद्य इसका शर्त्तिया इलाज करते हैं। एक दूसरे वैद्य किसी पत्ते को खिलाते हैं, जिससे यदि आप डायलिसिस पर हैं तो वह हट जाता है। अजय भट्ट तो आयुर्वेद को पैत्रिकपैथी बताते हैं।
सांसद सत्यपाल सिंह तो अनेकों बार डार्विन के विकासवाद को कोरी कल्पना बता चुके हैं, क्योंकि उन्होंने बन्दर से आदमी बनते नहीं देखा है। यह बात और है की पूरी दुनिया की मीडिया में उनकी खूब हंसी उड़ाई गयी। पर सत्यपाल सिंह फिर से संसद में अपना ज्ञान उड़ेल गए। इस बार उन्होंने कहा हम बंदरों के नहीं बल्कि ऋषियों की संतानें हैं और मानव प्रकृति की विशेष रचना है। सत्यपाल सिंह को यह जरूर बताना चाहिए था की ऋषि किसकी संतान थे, या वे एकाएक पृथ्वी पर प्रकट हो गए थे।
प्रधानमंत्री मोदी तो सर्वज्ञानी हैं, और विज्ञान के भी बड़े ज्ञाता हैं। पिछले चुनाव जीतने पर डीएनए पर खूब भाषण दिया था। इस बार चुनाव जीतने पर बनारस तक यह संदेश देने गए की अंकगणित को केमिस्ट्री से हरा दिया। पर मजाल है कि देश के किसी वैज्ञानिक की इस वक्तव्य पर कोई आवाज उठे। यह तुलना ठीक वैसे ही है जैसे मुंशी प्रेमचंद की तुलना कोई हरगोविंद खुराना से करने लगे।
पीएमओ के भाषण में प्रधानमंत्री जी कह रहे थे, जैसे ए प्लस बी होल स्क्वायर को आगे लिखते हैं, ए स्क्वायर प्लस 2एबी प्लस बी स्क्वायर, इसमें जो एक्स्ट्रा 2एबी है...राडार और बादलों के बाद पता नहीं क्यों मोदी जी गणित के पीछे पड़ गए हैं।
पिछले वर्ष प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर ने एक लेख में नागरिकों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति विकसित करने पर जोर दिया। पर जब हम समाज में आपने आसपास देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि हम भारतीयों को जिसमें राजनेता भी सम्मिलित हैं, आधुनिक विज्ञान पर आधारित उपकरणों के उपयोग में कोई समस्या नहीं है, जबकि उसके सिद्धांत को मानने से परहेज करते हैं। समस्या यह है कि एक बड़ी जनसंख्या के साथ साथ पूरी सरकार का मत है कि वेदों के बाहर कोई विज्ञान नहीं है। पिछले वर्ष मानव संसाधन मंत्रालय ने इंजिनियरिंग के कोर्स में वेदों और पुराणों के अध्ययन को अनिवार्य कर दिया है।
पिछली सरकार में तत्कालीन मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को पाठ्यक्रमों से निकालने की वकालत कर डाली। उनके अनुसार किसी प्राचीन भारतीय ग्रंथ में इसका उल्लेख नहीं है और किसी ने बंदर से मनुष्य बनते नहीं देखा। उनके इस बयान का मजाक अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी बनाया गया। आश्चर्य की बात है कि जिस उदाहरण को उन्होंने दिया, लगभग वैसा ही उदाहरण हनुमान का है, जो कपीश भी हैं और पवनसुत भी हैं।
डॉ. नार्लीकर ने अपने लेख में लिखा है कि डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत विकास के हरेक जवाब देने में सक्षम हो या न हो, पर आज की तारीख में विकास पर सबसे ज्यादा जवाब देने वाला सिद्धांत यही है और तथ्यों पर आधारित है।
यदि प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में होना और किसी के देखने से ही विज्ञान के किसी सिद्धांत का होना या ना होना निर्भर करता है तब तो मंत्री जी को डायनासोर सरीखे जानवरों का अस्तित्व भी पाठ्यक्रम से बाहर करा देना चाहिये। जब डायनासोर पृथ्वी पर थे तब मनुष्य पृथ्वी पर नहीं था, इसलिये किसी ने देखा नहीं होगा और इनका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी नहीं है।
सत्यपाल सिंह पहले भी विज्ञान के तथ्यों को झुठला चुके हैं। करीब तीन साल पहले दिल्ली में इंजिनियरिंग के विद्यार्थियों के सामने वे बता चुके हैं कि हवाई जहाज का आविष्कार राईट बंधुओं से आठ साल पहले ही शिवाकर बालाजी तलपड़े नामक भारतीय ने किया था। समस्या यहीं खत्म नहीं होती, सिंह साहब यह बताना भी नहीं भूलते कि रामायण में पहली बार हवाई जहाज का जिक्र किया गया है।
एक सेवानिवृत्त पायलट और पायलट ट्रेनिंग केन्द्र में कार्यरत कैप्टन आनंद बोडस तो और भी आगे हैं, उनके अनुसार ॠषि भारद्वाज ने 7000 वर्ष पहले ही हवाई जहाज ही नहीं, बल्कि राकेट और राडार भी बना लिया था। डॉ नार्लीकर के अनुसार यदि इतने पहले हवाई जहाज थे तो ये लोग इसका सिद्धांत क्यों नहीं बताते? आनंद साहब ने यह नहीं बताया कि 7000 साल पहले और कितने देशों में हवाई जहाज थे, यदि नहीं थे तो राडार क्यों बना था।
प्रधानमंत्री भी ऐसी बातें खूब करते हैं। 2014 में मुंबई के एक अस्पताल के किसी कार्यक्रम में उन्होंने गणेश को कास्मेटिक सर्जरी का जन्मदाता बताया था और कर्ण को जेनेटिक इंजिनियरिंग की देन। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा था, राम ने पहला पुल बनाया था।
मोदी सरकार में मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखलियाल निशंक बताते हैं, कनड नामक योगी ने पहला परमाणु टेस्ट ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में किया था। डॉ नार्लीकर ने उदहारण दिया कि तथाकथित ब्रह्मास्त्र को लोग परमाणु हथियार मानते हैं, यदि उस समय परमाणु हथियार बनाये गए तो चुम्बकीय शक्ति और विद्युत् का विस्तृत अध्ययन किया गया होगा, पर इसके कोई सबूत नहीं हैं। गाय सांस के साथ आक्सीजन छोड़ती है, यह बताने वाले नेताओं की भरमार है।
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने तो महाभारत काल में इन्टरनेट खोज लिया है। यही नहीं, उनके अनुसार उनके वक्तव्य का मजाक उड़ानेवाले पूरे त्रिपुरा का मजाक उड़ायेंगे। बिप्लब देब को यह मालूम होना चाहिए कि मुख्यमंत्री के बेवक़ूफ़ होने का मतलब यह नहीं है कि पूरी जनता बेवक़ूफ़ होगी। बिप्लब देब ने शायद सोचा ही नहीं होगा कि आज इंटरनेट है, इसीलिए वो यह बयान देने के काबिल हुए हैं।
आंध्र यूनिवर्सिटी के तत्कालीन उपकुलपति जी नागेश्वर राव ने पिछले साइंस कांग्रेस के एक अधिवेशन में बताया कि स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब बेबी का विज्ञान तो महाभारत काल से चला आ रहा है, और 100 कौरवों का जन्म इसी विधि से हुआ था। उन्होंने बच्चों के इस अधिवेशन में बताया कि किस तरह से अंडे को निषेचन के बाद मिट्टी के बर्तनों में रखा गया और इनसे कौरव पैदा हुए। नागेश्वर राव ने आगे ज्ञान देते हुए कहा कि रावण के पास 24 प्रकार के वायुयान थे और श्रीलंका में आज भी वायुयान उतरने की हवाई पट्टी मौजूद है। राम गाइडेड मिसाइल का उपयोग करते थे और विष्णु के पास मल्टी-वारहेड्स थे।
एक दूसरे वक्ता और तथाकथित वैज्ञानिक, तमिलनाडु के डॉ केजे कृष्णन ने इसी साइंस कांग्रेस में महान वैज्ञानिकों आइजाक न्यूटन और अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में नयी जानकारी उजागर की कि इन लोगों को भौतिक विज्ञान की जरा भी जानकारी नहीं थी। इनसे बड़े वैज्ञानिक तो प्रधानमंत्री मोदी और तत्कालीन विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन हैं। कृष्णन तो इन दोनों के विज्ञान के प्रति समर्पण से इतने प्रभावित हैं कि यह सुझाव भी दे डाला, गुरुत्वाकर्षण तरंगों को 'नरेंद्र मोदी तरंग' और चंद्रशेखर वेंकट रमन के नाम पर रखे गए 'रमन प्रभाव' को 'हर्षवर्धन प्रभाव' का नाम देना चाहिए।
मई 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने एक ऐसा ज्ञान दिया जिसे सुनकर यह यकीन करना आसान हो जाता है कि अपने देश में लोगों को न्याय क्यों नहीं मिलता। न्यायाधीश महेश चन्द्र शर्मा के अनुसार मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है और मोरनी तब गर्भ धारण करती है जब वह मोर के आंसू पीती है। गायों पर भी उनकी विशेष टिप्पणी थी। गायों में 33 करोड़ देवी देवता वास करते है और गौ-मूत्र सेवन बुढापे को भगाने का सबसे आसान तरीका है। गायें सांस छोड़तीं हैं तब भी ऑक्सीजन गैस उत्सर्जित होती है। न्यायाधीश शर्मा के अनुसार गायें इतने रोगों का इलाज करती हैं कि इन्हें मोबाइल क्लिनिक कहा जा सकता है।
विज्ञान के सरकारी प्रसार का आलम यह है कि अब तो साईंस कांग्रेस में भी वैज्ञानिक नहीं, बल्कि राजनेता विज्ञान का पाठ पढ़ाते हैं। इस सरकार के आने के बाद से बहुत हद तक चमत्कार को ही विज्ञान मान लिया गया है, और विज्ञान अनुसन्धान की दिशा भी इसी ओर मोड़ी जा रही है।