पुणे मेट्रो सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर डाका डाल रही सुरक्षा एजेंसी एटीआईटी

Update: 2018-05-20 12:13 GMT

पुणे मेट्रो की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा ऐसी एजंसियों पर, जो सुरक्षाकर्मियों की भविष्य निधि के साथ कर रही हैं खिलवाड़, नहीं मुहैया करा रहीं पीएफ नम्बर

पुणे से रामदास तांबे की रिपोर्ट

मजदूर दिवस पर मजदूरों का हितैषी दिखाने की होड़ में तमाम संगठन, सरकार दिखावे में तमाम तरह के वादों के साथ फोटो जरूर खिंचवा लेती है, ताकि मीडिया में लाइमलाइट मिल सके। मगर असल में कामगारों की असल हालातों और जद्दोजहद से किसी को कोई सरोकार नहीं है।

दिखावे के मजदूर दिवस के बाद आइए बात करते हैं जमीनी सच्चाई की। बात करते हैं उन सिक्योरिटी गार्डों की जो पुणे के मेट्रो रेल लाइन के प्रथम चरण में काम कर रहे हैं। हर समय अपनी जान हथेली पर लेकर काम करने वाले इन गार्डों की सुरक्षा तक की कोई गारंटी नहीं है। मेट्रो में बतौर सुरक्षाकर्मी काम करने वाले सिक्योरिटी गार्डों को उनकी ही भविष्य निधि (प्रोविडेंट फंड) नम्बर एटीआईटी (ATIT) मैनेजमेंट सर्विस प्राइवेट लिमिटेड सुरक्षा एजेंसी द्वारा नहीं दिया गया है।

जब जनज्वार संवाददाता ने मेट्रो सिक्योरिटी गार्डों से इस बाबत बात की तो उन्होंने अपनी कहानी बयां की। सुरक्षाकर्मी के बतौर काम कर रहे मजदूर कहते हैं अभी तक मन में यह डर है कि अगर सुरक्षा एजेंसी को पता चला, तो हम सबको एक-एक करके काम से निकाल देंगे। हर दिन बारह घण्टे सुरक्षा का काम करने के बावजूद महीने में एक दिन की भी छुट्टी नहीं दी जा रही है। अगर छुट्टी लिया तो उस दिन की मजदूरी नहीं मिलती। ऐसे में आप भी सोच सकते हैं कि ये सुरक्षाकर्मी सुरक्षा व्यवस्था किस तरीके से करते होंगे, क्योंकि दिमाग में लगातार चलता होगा कि हमारी नौकरी कभी भी जा सकती है, कभी भी हम सड़क पर आ जाएंगे। पुणे मेट्रो प्रशासन ने ऐसी सुरक्षा एजंसियों को ही सुरक्षा की जिम्मेदारी क्यों सौंपी है, जिसे अपने कर्मचारियों की सुरक्षा से तक कोई वास्ता नहीं है, यह सवाल लगातार उपस्थित हो रहा है।

गौरतलब है कि इससे पहले बहुत सारे सिक्योरिटी गार्डों को भविष्य निधि राशि न दिए जाने के कारण वे लोग काम छोड़ चुके हैं। उनको भविष्य निधि नम्बर मैनेजमेंट सर्विस प्राइवेट लिमिटेड सुरक्ष एजेंसी द्वारा नहीं दिया है। सिक्योरिटी गार्डों से इस बारे में पूछने पर बताते हैं हमारे पास भविष्य निधि नम्बर है। फिर सवाल यह है कि अब तक सुरक्षा एजेंसी द्वारा सुरक्षाकर्मियों का यह नंबर मेट्रो को क्यों नहीं दिया जा रहा है। मेट्रो सुरक्षाकर्मियों के साथ की जा रही इस ज्यादती की तरफ मेट्रो प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है, क्योंकि उन्हें तो सिर्फ मेट्रो के जगह पर सुरक्षा सेवा से मतलब है।

सुरक्षाकर्मियों को कई महीनों बाद पहचान कार्ड दिया गया है और उस पर भी तारीख सही नहीं डाली गई है। हमारे देश में ऐसी बहुत सी सुरक्षा एजेंसियां हैं, जो सुरक्षा कर्मियों से पैसे लेकर उन्हें काम पर लगाती हैं। बाद में उन्हें भविष्य निधि (प्रोविडेंट फंड) जैसी सुविधाएं मुहैया कराई नहीं जाती। सुरक्षा कर्मचारियों ने यह बात मजदूर नेताओं/यूनियनों को बताई, मगर वो भी इनकी बातों की तरफ कान नहीं दे रहे। मेट्रो सुरक्षाकर्मी के बतौर काम कर रहे मजदूर कहते हैं सुरक्षा एजेंसी और मजदूर नेताओं के बीच मिलीभगत होने से हमारे मसलों पर कुछ नहीं किया जाता है।

सुरक्षा कर्मचारी भविष्य निधि जैसी कई कई अन्य सुविधाओं से वंचित रहने को मजबूर हैं, क्योंकि कोई भी उनकी सुनने वाला नहीं है और मेट्रो को तो जैसे इससे कोई वास्ता ही नहीं है। मेट्रो सुरक्षाकर्मी कहते हैं कि काश हम लोगों को भी इन सुविधाओं का लाभ मिल पाता। मगर तमाम सरकारें आती जाती रहती हैं, मजदूर यूनियनें मजदूर हितों की लंबी—चौड़ी बातें करती रहती हैं, मगर हकीकत कुछ और ही होती है। हर सरकार पिछली सरकारों पर दोष मढ़कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करती है। पर होता वही ढाक के तीन पात।

मेट्रो सुरक्षाकर्मी कहते हैं हमारे हित में सरकार की तरफ से पीएफ के अलावा अन्य कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं, मगर प्राइवेट सुरक्षाकर्मी मुहैया कराने वाली एजेंसियां हमारी कमजोरी और अज्ञानता का फायदा उठा हमें इन सुविधाओं से महरूम करती हैं। नेताओं का मुंह तो हमारे मुद्दों पर तब खुलता है जबकि चुनाव नजदीक हो। हमें शासन—प्रशासन, मजदूर नेताओं, यूनियनों किसी से कुछ उम्मीद बंधती नहीं दिखती, क्योंकि हर किसी के अपने—अपने स्वार्थ हैं।

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