बिहार में सफल हुआ यह समाज सुधार तो बदल जाएगी बिहारी छवि

Update: 2017-10-02 09:42 GMT

अगर बिहार सरकार इस समाज सुधार के आंदोलन में सफल रही तो बिहार की न सिर्फ सामाजिक संरचना मजबूत होगी बल्कि इससे राज्य की छवि बदलेगी और राज्य में स्त्री उत्पीड़न का ग्राफ गिरेगा...

जनज्वार, पटना। दहेज के लिए लड़के को उठाना, दहेज के डर से लड़के को कैद कर दबंगई से शादी कराना आदि की चर्चाएं दशकों से बिहारी समाज में होती रही हैं, लेकिन इस अपराध की जड़ में जो असली अपराध है 'दहेज', उस पर कभी कोई गंभीर पहल किसी सरकार ने नहीं ली है। औरतों के खिलाफ होने वाले इस अपराध में समाज का हर तबका परंपरा के नाम पर शामिल रहा है।

पर बिहार की नीतीश सरकार दहेज लेन—देन और बाल विवाह पर 2 अक्तूबर को प्रदेश की जनता को सौगंध दिला रही है कि लोग न दहेज लें, न दें और न ही दहेज की शादियों में जाएं। इसके अलावा संकल्प लें कि वह 18 से कम में लड़की की और 21 से कम में लड़के की शादी नहीं करेंगे।

दहेज और बाल विवाह के खिलाफ आज यह सौगंध खुद मुख्यमंत्री पटना के गांधी मैदान के पास बने सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर में दिलाएंगे। आज से ही प्रदेशभर में इस सामाजिक आंदोलन की शुरुआत हो रही है। सरकार ने शपथ का कार्यक्रम प्रदेशभर के सरकारी, गैर सरकारी स्कूलों और सरकारी व गैरसरकारी कार्यालयों में करने का आदेश दिया है।

आजादी के बाद सबसे पहले दहेज के खिलाफ कानून बिहार में बना था। 1950 में ही राज्य ने दहेज निरोध कानून लागू कर दिया था, जबकि भारत सरकार ने 1961 में दहेज निरोधक कानून पास किया। बावजूद इसके बिहार दहेज हत्या और उत्पीड़न करने वाले राज्यों में सबसे उपर है। 2015 में दहेज हत्या के 1154 मामले दर्ज हुए थे और दहेज हत्या के मामलों में 15% अकेले बिहार की भागीदारी बनी हुई है।

सरकार ने यह सामाजिक पहल कानूनी असफलता के बाद ली है, जिसका असर दिखने की उम्मीद है। अब दहेज विरोधी आंदोलन और ताकतें समाज में मुखर और प्रखर होंगी क्योंकि अब तक उनको कोई सरकारी पहल कदमी नहीं मिलती थी। सरकारी सहयोग नहीं होने से ऐसी ताकतें जगहंसाई का पात्र बन जाती थीं।

ऐसे में अगर लोग दहेज की शादियों में जाना—आना बंद कर दें और बाल विवाह के खिलाफ सामूहिक रूप से खड़े होने लगें तो सरकार की इस पहल के बड़े परिणाम आ सकते हैं, जिसकी शुरुआत हमें अपनी से करनी होगी, अपने घर और परिजनों से।

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