पूर्व IPS ने कहा- कोरोना संकट की आड़ में तानाशाही और मनमानी की ओर बढ़ रही सरकार

Update: 2020-05-09 17:45 GMT

पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने कहा कि हाल में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने महामारी रोग अधिनियम 1897 में संशोधन करके इसे अति कठोर बना दिया है...

जनज्वार ब्यूरो। पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने कहा कि पुलिस महकमें से आने की वजह से बहुत साफ देख पा रहा हूं कि कोरोना संकट की आड़ में सरकारें तानाशाही और मनमानी की ओर बढ़ रही हैं। यह सही है कि कोरोना से लड़ने के लिए सरकारों को कुछ विशेष व्यवस्थाएं एवं नियम कानून लागू करने पड़ते हैं ताकि इस में किसी प्रकार की अनावश्यक बाधा उत्पन्न न हो। परन्तु इसकी आड़ में सरकारें कड़े कानून बना कर तानाशाही को ओर बढ़ रही हैं।

क बयान में उन्होंने कहा कि हमारे देश में महामारी से लड़ने हेतु एक कानून अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है जिसे 'द एपिडेमिक डिज़ीज़ज़ एक्ट- 1897' अर्थात ‘महामारी रोग अधिनियम 1897’ के नाम से जाना जाता है। इस एक्ट के अंतर्गत पारित आदेशों का उलंघन धारा 188 आईपीसी में दंडनीय है जिसमें 1 महीने की साधारण जेल और 200 रुo जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

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'लेकिन हाल में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने महामारी रोग अधिनियम 1897 में संशोधन करके इसे अति कठोर बना दिया है। इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करता है और उसे साधारण चोट पहुंचाता है तो दोषी पाए जाने वाले को 3 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल और 50,000 से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना और गंभीर चोट पहुंचाने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल की सजा और 1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगेगा। इस सजा के अतिरिक्त उसे किसी भी प्रकार की संपत्ति की क्षति की पूर्ती हेतु क्षति के बाज़ार पर मूल्य का दुगुना हर्जाना भी देना होगा।'

Full View ने आगे कहा कि इसी तरह 6 मई 2020 को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसे विस्तार देने के साथ साथ और भी कठोर बना दिया है। यूपी लोक स्वास्थ्य एवं महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश द्वारा के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी को जानबूझकर बीमारी से संक्रमित करता है और उसकी मौत हो जाती है तो आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति किसी को संक्रामक रोग से जानबूझकर उत्पीड़ित करता है तो उसे 2 से 5 साल तक की जेल और 50 हजार से 2 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।

'अगर जानबूझकर कोई 5 या अधिक व्यक्तियों को संक्रमित कर उत्पीड़ित करता है तो उसे 3 से 10 साल तक जेल हो सकती है। साथ ही 1 लाख से 5 लाख तक जुर्माना भी है। अगर इस उत्पीड़न की वजह से मौत हुई तो तो कम से कम 7 साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकता है। वहीं 3 लाख से 5 लाख रुपये जुर्माने की भी सजा तय की गई है। इसमें स्वास्थ्य कर्मियों के अतिरिक्त सफाई कर्मियों, पुलिस कर्मचारियों तथा कोरोना कार्य में लगे अन्य सभी कर्मचारियों को भी शामिल कर दिया गया है।'

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पूर्व आईपीएस अधिकारी ने कहा कि अध्यादेश में यह भी शक्ति दी गई है कि सरकार पीड़ित व्यक्तियों के मृत शरीरों के निस्तारण या अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी निर्धारित कर सकती है। अगर किसी व्यक्ति या किसी संगठन के जानबूझकर या उपेक्षापूर्ण आचरण से नुकसान होता है तो उसकी वसूली भी उसी से की जाएगी। अगर इस कृत्य से किसी की मौत हो जाती है तो दोषी से सरकार के दिए गए मुआवजे के बराबर वसूली की जा सकेगी।

न्होंने कहा कि ऐसे में बहुत साफ है कि कोरोना संकट की आड़ में सरकारें अति कठोर कानून बनाकर अपनी पकड मज़बूत करने में लगी हैं जो कि लोकतंत्र के लिए खतरा है। यह भी सर्वविदित है कि इन कानूनों के पूर्व की भांति दुरूपयोग की भी पूरी सम्भावना रहती है।

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