हेमंत सरकार क्या पत्थलगड़ी आरोपियों से राजद्रोह का केस लेना चाहती है वापस : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-01-27 04:38 GMT

खूंटी क्षेत्र में जहां इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, वहां लोग अब इसकी वर्षगांठ मनाने की तैयारियां कर रहे हैं। ऐसे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत और हिंसक न हो जाये...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

च्चतम न्यायालय ने झारखंड की नवनिर्वाचित हेमंत सोरेन सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या वह उन चार आदिवासी कार्यकर्ताओं के खिलाफ राज्य में पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थन में कथित तौर पर फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए राजद्रोह के आरोप में दर्ज मामले वापस लेना चाहती है। उच्चतम न्यायालय को आरोपियों की ओर से सूचित किया गया कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के कैबिनेट के पहले निर्णयों में यह घोषणा भी शामिल थी कि वह आंदोलन से जुड़े सभी आपराधिक मामले वापस लेगी।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने झारखंड के स्थायी अधिवक्ता तापेश कुमार सिंह से कहा कि वह इस बारे में हेमंत सरकार से निर्देश लें कि क्या राज्य सरकार याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर आगे बढ़ना चाहती है। पीठ ने हाल में अपलोड किए गए अपने आदेश में कहा कि इस मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करें।

गौरतलब है कि पत्थलगड़ी आदिवासियों के उस आदिवासी आंदोलन का नाम है, जो ग्राम सभाओं को स्वायत्तता की मांग को लेकर किया गया। पत्थलगड़ी की मांग करने वाले आंदोलनकारियों की मांग है कि क्षेत्र में आदिवासियों पर देश का कोई कानून लागू न हो। पत्थलगड़ी समर्थक जंगल और नदियों पर सरकार के अधिकारों को खारिज करते हैं। आंदोलन के तहत पत्थलगड़ी समर्थक गांव या क्षेत्र के बाहर एक पत्थर गाड़ते हैं या बोर्ड लगाते हैं, जिसमें घोषणा की जाती है कि गांव एक स्वायत्त क्षेत्र हैं और इसमें बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है।

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पीठ के समक्ष जे विकास कोरा के नेतृत्व वाले चार याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता जोएल ने कहा, राज्य में नई सरकार ने शपथ ली है और उसने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में घोषणा की थी कि पत्थलगड़ी आंदोलन के चलते उत्पन्न आपराधिक मामले वापस लिए जाएंगे। राज्य के अधिवक्ता तापेश कुमार सिंह ने कहा कि यदि ऐसा है तो याचिकाकर्ताओं को झारखंड हाईकोर्ट के पिछले साल के उस फैसले के खिलाफ दायर अपनी अपील वापस ले लेनी चाहिए, जिसमें अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज मामले रद्द करने से इनकार कर दिया था।

झारखंड उच्च न्यायालय ने पिछले साल 22 जुलाई को चार आरोपियों जे विकास कोरा, धर्म किशोर कुल्लू, इमिल वाल्टर कांडुलना और घनश्याम बिरुली के खिलाफ राजद्रोह के आरोप रद्द करने से साफतौर पर इंकार ​कर दिया था। इन सभी के खिलाफ इस आरोप में मामले दर्ज किये गए थे कि इन्होंने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये पुलिस अधिकारियों को पत्थलगढ़ी समर्थकों पर हमले करने के लिए उकसाया। इसमें कुल 20 व्यक्तियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से मात्र चार अपने खिलाफ राजद्रोह और अन्य आरोप रद्द करने के अनुरोध के साथ शीर्ष अदालत पहुंचे।

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गौरतलब है कि सार्वजनिक क्षेत्र में विकास के लिए छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट में संशोधन के लिए विधेयक विधानसभा में पेश करने के बाद से ही आदिवासियों को अपनी जमीन छिनने का डर सता रहा है। आदिवासियों ने पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिख उन्हें जमीन पर लगा दिया।

झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन जमीन और जंगल बचाने को लेकर शुरू हुआ था, लेकिन अब यह शांतिप्रिय इलाकों में हिंसा की राह पकड़ चुका है। पत्थलगड़ी आंदोलन का मकसद आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं को सर्वशक्तिमान बनाना है। आदिवासियों की मांग है कि खनन एवं अन्य विकास कार्य के लिए ग्रामसभा की अनुमति अनिवार्य की जाए। आंदोलन का विरोध करने पर 7 लोगों की हत्या के बाद यह हिंसा और इलाकों में भड़कने की आशंका जतायी गयी। इसी आंदोलन के चलते झारखंड में कई लोगों पर मुकदमे दर्ज थे, जिसे हेमंत सोरेन सरकार ने वापस ले लिया। इससे भी विभिन्न वर्गों में आक्रोश है।

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खूंटी क्षेत्र में जहां इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, वहां लोग अब इसकी वर्षगांठ मनाने की तैयारियां कर रहे हैं। ऐसे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत और हिंसक न हो जाये। पत्थलगड़ी का विरोध कर रहे 7 लोगों की हत्या पर पश्चिम सिंहभूम के एसपी इंद्रजीत महतो ने कहा था कि ’16 जनवरी को 9 लोगों ने गांव के कुछ घरों में तोड़फोड़ की थी। इसका विरोध करने के लिए एक बैठक बुलाई गई और 19 जनवरी को सभी 9 को बुलाया गया। बैठक के दौरान दो व्यक्ति भाग गए। ग्रामीणों ने 7 को पकड़ लिया और उन्हें मार डाला।’

श्चिमी सिंहभूम जिले के गुदड़ी प्रखंड के बुरूगुलिकेला गांव में कथित तौर पर पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा सात पत्थलगड़ी विरोधियों की सामूहिक हत्या की घटना के बाद पत्थलगड़ी एक बार फिर चर्चा में है। जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर बुरूगुलिकेला गांव में कथित तौर पर सात ग्रामीणों की हत्या के मामले में अभी पुलिस जांच कर रही है, लेकिन पुलिस अब तक की जांच के बाद इसे आपसी रंजिश का परिणाम बता रही है।

मुंडा समाज गांव के बाहर बड़ा पत्थर लगाकर अपने नियम का उल्लेख करता है, जिसे पत्थलगड़ी कहा जाता है, जबकि उरांव समाज पत्थरों का ढेर जमा करता है, जिसे ‘कुंजी पत्थर’ कहा जाता है। आदिवासियों का इतिहास बताता है कि सिंहभूम और खूंटी इलाके में मुंडा आदिवासी ब्रिटिश शासन के वक्त से अपने स्वशासन वाली व्यवस्था के पक्ष में संघर्षरत रहे हैं। पत्थलगड़ी आंदोलन भी उसी कड़ी में था। गौरतलब है कि पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत खूंटी क्षेत्र से हुई थी।

Full View पत्थलगड़ी आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए। इस आंदोलन ने तब जोर पकड़ा, जब रघुवर सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में विकास के लिए छोटानागपुर टेनेंसी ऐक्ट में संशोधन के लिए विधेयक विधानसभा में पेश किया। इसके बाद से ही आदिवासियों को अपनी जमीन छिनने का डर सता रहा है। इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया। यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ। इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ। खूंटी पुलिस ने तब पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया।

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खूंटी पुलिस के मुताबिक आईपीसी की धारा 121ए-124ए के तहत कुल 19 क्रिमिनल केस दर्ज किए गए हैं। इसमें कुल 172 आरोपियों पर दर्ज मामला सही पाया गया है और 96 पर कार्रवाई करने की अनुमति पुलिस ने सरकार से मांगी है। इसमें 94 पर कार्रवाई की अनुमति मिल चुकी है। इन 94 में से 48 में चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई है। साल 2016 से लेकर 2018 तक कुल 25 एफआईआर दर्ज किए गए हैं। इसमें हजारों अज्ञात लोगों पर राजद्रोह का एफआईआर दर्ज किया गया है। यह सभी केस अड़की, खूंटी और मुरहू थानों में दर्ज किए गए हैं।

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