रिश्तेदारों से किराये की कोख लेना दंपती के लिए खुशियों का कारण बने न बने, तनाव का कारण जरूर बनेगा

Update: 2018-04-27 15:56 GMT

सरकार ने सेरोगेसी के सवाल को इतना उलझा दिया है कि एक निःसंतान दंपती के लिए किराये की कोख से बच्चा लेना जीवन में खुशियों के साथ नए तनाव के ऑफर जैसा है, जिसके खिलाफ खड़ा होना ही असल उपाय है...

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शाहरुख खान के तीसरे बेटे अबराम खान के सरोगेसी से जन्म होने की बात को सामने रखते हुए केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज जी ने बोला कि हम सरोगेसी को रेगुलेशन में लेकर आएंगे। सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2016 बनकर तैयार हुआ, इसमें कुछ अच्छी बातें भी हैं जैसे निसंतान दंपति को विवाह के 5 साल के बाद ही सरोगेसी का हक होगा जिससे जनसंख्या पर भी नियंत्रण बना रहेगा।

दूसरा सरोगेसी से केवल एक ही बच्चे को जन्म दिया जा सकता है और कोई भी औरत केवल एक बार ही सरोगेट बन सकती है, जिससे उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर ना पड़े। एक अन्य बात यह कि सरोगेट मां की उम्र भी 20 से 35 वर्ष के बीच में रखी गई है। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ कड़े और गलत नियम भी हैं जैसे निसंतान दंपति को सरोगेसी के लिए अपने रिश्तेदार को शामिल करना इत्यादि।

यह नियम कल्पना मात्र का है इससे 95 % निसंतान दंपती अपने नजदीकी रिश्तेदारों को सरोगेसी के लिए नहीं ला पाएंगे, क्योंकि निसंतान दंपती को यदि नजदीकी रिश्तेदार की सहायता से संतान की प्राप्ति हुई तो सरोगेट मां के अपने बच्चे की पुश्तैनी जायदाद के हक में भी आ जाएगी। हर निसंतान दंपति की नजदीकी रिश्तेदार की उम्र 20 से लेकर के 35 वर्ष के बीच में हो, यह भी हर बार संभव नहीं। एकल परिवार में यदि निसंतान दंपति का कोई नजदीकी जैसे कि सगा भाई भाई या बहन विद्यार्थी हो ही ना तो क्या होगा।

सरोगेट मां को किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दी जा रही है, जिसके कारण गर्भस्थ शिशु की जान का खतरा भी हो सकता है। 9 महीने लगातार किसी को परोपकार करने के लिए किस प्रकार से बाधित किया जा सकता है, यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है। सरोगेसी रेगुलेशन में किए जाने वाले सुधारों में सरोगेसी रिश्तेदारों से हटकर अन्य के साथ भी की जा सके इसकी छूट होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट हमें आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों को अपनाने का पूरा हक देती है, तो फिर क्यों इस प्रकार की अमानवीय पाबंदी लगाकर किसी निसंतान दंपती को संतान का सुख पाने से वंचित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी से एक प्रश्न है कि जो औरतें गर्भवती हो सकती हैं, उनके लिए आपने ₹6000 की घोषणा की, जबकि निसंतान दंपती के लिए परोपकार सरोगेसी की बात रखकर उनके लिए सरोगेसी के दरवाजे लगभग बंद ही कर दिए गए हैं ऐसा गलत है।

व्यावसायिक सरोगेसी को बंद किया गया यह सही है, परंतु सरोगेट मां को क्षतिपूर्ति की रकम तो अदा ही की जानी चाहिए, ताकि वह अपने गर्भ में पल रहे बच्चे और खुद की अच्छे से देखभाल कर पाए। भारत में कई बार सरोगेट बच्चे को अकेला छोड़ दिया गया, उसकी वजह सरोगेट बच्चे का स्वास्थ्य था।

यहां डॉक्टरों की जिम्मेदारी बनती है कि यदि ऐसा पाया जाता है कि बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से सही विकसित नहीं हो पा रहा है, तो उसके अबॉर्शन के आदेश भी दिए जाएं। ताकि जन्म के बाद ऐसी किसी भी परिस्थिति का सामना ना करना पड़े। सरोगेट मां को किराए की कोख कहकर आप नामित ना करें, उसे वृद्ध कोख का नाम दिया जाना चाहिए।

राज्यसभा स्टैंडिंग कमेटी के सुझाव सही हैं, परंतु 21 मार्च 2018 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में परोपकारी सरोगेसी पर अपना निर्णय बनाए रखा यह सरासर गलत है। सरोगेसी ऐसी बीमार औरतों को मदद करता है जो टीबी, कैंसर, पोलियो, बार बार गर्भपात या बार-बार आईवीएफ के नाकामयाब होने के कारण एवं अपने बच्चे को जन्म नहीं दे सकती हैं।

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