भोपाल में टैगोर महोत्सव का उदघाटन वे लेखक करेंगे जिन्हें नफरत की राजनीति है प्यारी

Update: 2019-10-11 05:14 GMT

4 से 10 नवंबर के बीच भोपाल के रबिंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र और वनमाली सृजन पीठ की ओर से भारत भवन में आयोजित होने वाले टैगोर स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में भागीदार होंगे 30 देशों के 500 लेखक...

जनज्वार, दिल्ली। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर अपनी मानवता साम्प्रदायिक सौहार्द्र और अंतरराष्ट्रीयता के लिए जाने जाते हैं, लेकिन जब मोदीभक्त लेखक और तथाकथित राष्ट्रवादी लेखक जब उनकी स्मृति में आयोजित होने वाले भव्य विश्व रंग समारोह में उद्घाटन करने जाएंगे, तो विश्वकवि की आत्मा जरूर दुखी होगी।

भोपाल के रबिंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र और वनमाली सृजन पीठ की ओर से 'विश्वरंग' आयोजित किया जा रहा है। मगर सवाल है कि भोपाल में 4 नवम्बर से 10 नवम्बर तक होने वाले टैगोर महोत्सव में मोदीभक्त लेखिका चित्रा मुदगल के कर कमलों से उद्घाटन करवा कर इसके कुलाधिपति संतोष चौबे क्या सन्देश देने जा रहे हैं। यह भी काबिलेगौर है कि टैगोर की स्मृति में शायद ही इतना बड़ा आयोजन अब तक हुआ हो देश में।

कुछ साल पहले अशोक वाजपेयी ने टैगोर पर बड़ा उत्सव करने का मन बनाया था, जिसे विष्णु खरे ने जनसत्ता में तीखा विरोध कर उस आईडिया को पंक्चर कर दिया, लेकिन टैगोर विश्वविद्यालय के लेखक कुलपति ने उस आईडिया को लिफ्ट कर क्रेडिट लेने का काम किया है।

स उत्सव में 30 देशों के करीब 500 लेखक भाग लेंगे और 60 सत्र आयोजित होंगे। इस दृष्टि से यह जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से बड़ा होगा। बस फर्क इतना है कि उसमें अंग्रेजी के लेखक फिल्मी सितारे आदि अधिक होते हैं, इस फेस्टिवल में हिंदी और भारतीय भाषाओं की ब्रांडिंग होगी।

योजकों का कहना है कि टैगोर महोत्सव में थर्ड जेंडर्स कवि-रचनाकारों के अनुभव उनकी रचनाओं के जरिए सुनने का मौका मिलेगा। साथ ही संस्कृत, प्राच्यभाषाओं पर चर्चा की जाएगी, जो कि लगभग हमसे छूट ही गई हैं। इस मौके पर विश्व कुंभ साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, सिनेमा, पत्रकारिता, पर्यावरण, सहित अनेक विषय पर परिचर्चाएं होंगी।

ससे कुलाधिपति को दो फायदे होंगे। एक तो उनकी यूनिवर्सिटी की ब्रांडिंग होगी और उनकी साहित्यिक छवि को मान्यता मिलेगी। इस उत्सव के दूसरे उद्घाटनकर्ता दक्षिणपंथी रुझान के वयोवृद्ध लेखक रमेश चंद्र शाह होंगे। क्या मध्यप्रदेश में ज्ञान रंजन या अशोक वाजपेयी, राजेश जोशी जैसे लेखक इसका उद्घाटन नहीं कर सकते थे।

क्या नरेश सक्सेना और ऋतुराज इसके उपयुक्त पात्र नहीं हो सकते थे, लेकिन इसमें ऐसी लेखिका चित्रा मुदगल चुना गया जिन्होंने चुनाव से पहले मोदी के समर्थन में बयान जारी किया। इतना ही नहीं मोदी के मन की बात का सम्पादन करने वाले लेखक कमल किशोर गोयनका भी एक वक्ता होंगे। जबकि टैगोर की सोच दक्षिणपंथियों के आसपास भी नहीं टिकती।

ल 10 अक्टूबर को इस सिलसिले में दिल्ली में कुलाधिपति महोदय ने लंच पर कुछ लेखकों—पत्रकारों बुलाया। उस दौरान वरिष्ठ कवि और पत्रकार विमल कुमार और संजय कुंदन ने कुछ तीखे सवाल पूछकर कुलाधिपति महोदय को असहज कर दिया। अंत में कुलाधिपति को सफाई देनी पड़ी की वह भी राष्ट्रवादी लेखक हैं, पर टैगोर की तरह अंतरराष्ट्रीयता में यकीन करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिणपंथी यानी राष्ट्रवादी लेखकों को भी इसमें शामिल कर हम समन्वय स्थापित करना चाहते हैं।

ब वरिष्ठ पत्रकार और ​कवि विमल कुमार ने टैगोर की स्मृति में आयोजित इस भव्य कार्यक्रम के बजट के बारे में जानकारी चाही तो विश्वविद्यालय के चांसलर संतोष चौबे ने नहीं बताया, मगर जानकारी है कि इसका बजट 8 करोड़ रुपये है।

साहित्यकार व पत्रकार संजय कुंदन ने भी सवाल किया कि इस आयोजन की क्या चयन प्रक्रिया है। इस सवाल का कुलाधिपति संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। इस आयोजन के मुख्य सलाहकार एक कवि लीलाधर मंडलोई अधिकारी हैं तो दूसरे एक कहानीकार अधिकारी मुकेश वर्मा हैं जो अब अवकाश ले चुके हैं।

हरहाल इस विश्वविद्यालय ने 50 जगहों से पुस्तक यात्रा निकाली है और कई जगह कई कार्यक्रम भी किये हैं। यह तो मानना पड़ेगा कि जो काम साहित्य अकादमी या भारत भवन नहीं कर सका वह कुलाधिपति महोदय ने कर दिखाया। इस तरह टैगोर के माध्यम से भारतीय भाषाओं को जोड़ने का काम किया जाएगा। ऐसे में अगर फकीर मोहन सेनापति सुब्रमनियन भारतीय, वल्लो तोल, श्री श्री जैसे अनेक लेखकों को भी याद किया जाता तो बेहतर होता।

फिलहाल कुलाधिपति महोदय ने यकीन दिलाया है कि वे इसे समावेशी बनाएंगे। देखना है वे टैगोर की ब्रांडिंग कर वे अपने विश्वविद्यालय की कितनी रैंकिंग सुधार पाएंगे। सवाल यह भी है कि कहीं यह भी एक नया मेगा शो तो नहीं साबित होगा?

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