मंदिरों में आरक्षण हुआ लागू, दलित बने पुजारी

Update: 2017-10-07 08:27 GMT

देश में यह किसी सातवें अजूबे की तरह है कि मंदिरों में अब तक जहां ब्राह्मणों का एकाधिकार रहा है, वहां अब दलित और पिछड़े भी पुजारी बने हैं...

केरल। यह आश्चर्यजनक लगता है कि जाति—धर्म को छोड़ पंडितों की भर्ती आरक्षण और टेस्ट के आधार पर हो, लेकिन दक्षिण भारत के राज्य केरल ने यह कर दिखाया, जो कि जाहिर तौर पर काबिलेतारीफ है।

गौरतलब है कि केरल में पहली दफा आरक्षण को आधार बनाकर पहली बार 62 पुजारियों का मंदिरों में पूजा—पाठ के लिए चुनाव किया है, जिनमें से 36 गैर ब्राह्मण हैं। गैर ब्राह्मणों में से भी 6 दलित जाति से हैं। जिन मंदिरों में आरक्षण मिला है, वो राज्य के सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिर हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन मंदिरों में ये गैर ब्राह्मण—दलित अपनी सेवाएं देंगे उनमें सबरीमाला का प्रसिद्ध भगवान अयप्पा का मंदिर भी शामिल है।

इन मंदिरों का प्रबंधन त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (टीडीबी) के पास है। टीडीबी केरल के करीब 1248 मंदिरों का रखरखाव करता है। सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक मंदिरों में आरक्षण का सुझाव केरल देवस्वम नियुक्ति बोर्ड द्वारा दिया गया था।

पुजारियों की नियुक्ति लोक सेवा आयोग (पीएससी) की तरह ही लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर हुई है। हालांकि यह नियुक्ति पार्टटाइम है।

बोर्ड के अध्यक्ष राजगोपालन नायर कहते हैं, पहली बार पुजारियों को नियुक्ति में पिछड़े और दलितों को आरक्षण मिला है। हालांकि राज्य में दलित पिछड़े वर्ग से पुजारी चुने जाने की मांग पिछले कई दशकों से उठाई जाती रही है।

सुप्रसिद्ध सबरीमाला स्थित अयप्पा मंदिर में दलित पुजारी की नियुक्ति को लेकर मामला कोर्ट में विचाराधीन है। पुरानी मान्यता के अनुसार वहां सिर्फ ब्राह्मण पुजारी नियुक्त करने की परंपरा चली आ रही है।

देवस्वम मंत्री कदकमपल्ली रामचंद्रन ने मंदिरों में दलितों की नियुक्ति को लेकर कहा है कि इस आधार पर दलितों—गैर ब्राह्मणों को पुजारी नियुक्त किए जाने से मंदिरों में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। पुजारियों का चयन मेरिट के आधार पर तथा आरक्षण के नियमों का पालन करते हुए किया गया है।

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