विश्व रंगमंच दिवस पर ठाणे में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस का 3 दिवसीय नाट्य उत्सव

Update: 2018-03-27 19:47 GMT

विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च पर विशेष

थिएटर ऑफ़ रेलेवंस मशीन होती दुनिया में इंसानी ज़ज्बा जगाने, कला और कलाकारों की वस्तुकरण से मुक्ति और आधी आबादी के हक हकूक की लड़ाई को प्रबलता से प्रस्तुत कर रहा है सबके सामने... 

विश्व रंगमंच दिवस पर ‘रंगमंच के मूल उद्देश्यों' की पूर्ति हेत, दर्शक सहयोग से थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत की 25वीं वर्षगांठ मानते हुए अपनी थिएटर प्रतिबद्धता का 3 दिवसीय नाट्य उत्सव महाराष्ट्र के ऐतिहासिक शहर ठाणे में 27-28-29 मार्च, 2018 को आयोजित हो रहा है।

इस अवसर पर थिएटर ऑफ़ रेलेवंस मशीन होती दुनिया में इंसानी ज़ज्बा जगाने, कला और कलाकारों की वस्तुकरण से मुक्ति और आधी आबादी के हक हकूक की लड़ाई को प्रबलता से सबके सामने प्रस्तुत कर रहा है।

इसमें रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज रचित तीन क्लासिक नाट्य प्रस्तुतियां रखी जाएंगी। आज के मशीनीकरण के दौर में मनुष्य रूपी देहों में ‘इंसानियत’ खोजता हुआ नाटक 'गर्भ', खरीदने और बेचने के दौर में कलाकारों को वस्तुकरण से उन्मुक्त करता हुआ नाटक “अनहद नाद –Unheard Sounds of Universe” और आधी आबादी की आवाज़, पितृसत्तात्मक व्यवस्था के शोषण के खिलाफ़ हुँकार, न्याय और समता की पुकार तीसरा नाटक है “न्याय के भंवर में भंवरी” नाटकों का मंचन किया जाएगा।

इस कलात्मक मिशन को अपनी कला से मंच पर साकार करने कलाकार हैं अश्विनी नांदेडकर, योगिनी चौक, सायली पावसकर,कोमल खामकर,तुषार म्हस्के और बबली रावत।

10 अगस्त, 2017 को दिल्ली से शुरू हुआ “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य उत्सव, मुम्बई, पनवेल में हर रंग सम्भावना को अंकुरित करता हुआ अब ठाणे (महाराष्ट्र) में 27-28-29 मार्च, 2018 को “गडकरी रंगायतन” में होगा! हर रंगकर्मी को प्रोत्साहित करता हुआ एक रंग आंदोलन है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस”... एक चौथाई सदी यानी 25 वर्षों से सतत सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान से परे. सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’ सहभागिता पर खड़ा है हमारा रंग आन्दोलन.. मुंबई से मणिपुर तक!

“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर रंग चेतना का उदय करके उसे ‘जन’ से जोड़ा है। अपनी नाट्य कार्यशालाओं में सहभागियों को मंच,नाटक और जीवन का संबंध,नाट्य लेखन,अभिनय, निर्देशन,समीक्षा,नेपथ्य,रंगशिल्प, रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों पर प्रशिक्षित किया है और कलात्मक क्षमता को दैवीय से वरदान हटाकर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तरफ मोड़ा है।

25 सालों में 16 हजार से ज्यादा रंगकर्मियों ने 1000 कार्यशालाओं में हिस्सा लिया। जहाँ पूंजीवादी कलाकार कभी भी अपनी कलात्मक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं लेते इसलिए “कला– कला के लिए” के चक्रव्यहू में फंसे हुए हैं और भोगवादी कला की चक्की में पिस कर ख़त्म हो जाते हैं. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस ने “कला– कला के लिए” वाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ा है और हजारों ‘रंग संकल्पनाओं’ को ‘रोपा’ और अभिव्यक्त किया। अब तक 28 नाटकों का 16,000 से ज्यादा बार मंचन किया है।

भूमंडलीकरण पूंजीवादी सत्ता का ‘विचार’ को कुंद,खंडित और मिटाने का षड्यंत्र है. तकनीक के रथ पर सवार होकर विज्ञान की मूल संकल्पनाओं के विनाश की साज़िश है. मानव विकास के लिए पृथ्वी और पर्यावरण का विनाश, प्रगतिशीलता को केवल सुविधा और भोग में बदलने का खेल है. फासीवादी ताकतों का बोलबाला है “भूमंडलीकरण”!

लोकतंत्र, लोकतंत्रीकरण की वैधानिक परम्पराओं का मज़ाक है “भूमंडलीकरण”! ऐसे भयावह दौर में इंसान बने रहना एक चुनौती है... इस चुनौती के सामने खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन। पिछले 25 वर्षों से फासीवादी ताकतों से जूझता हुआ!

मंजुल भारद्वाज के मुताबिक भारंगम जैसे दरबारी उत्सवों, आत्म दम्भित कुंठाओं को पूरा करने के लिए सरकारी पैसे के दुरूपयोग से रचे ‘ओलम्पिकस’ जैसे पाखंड के बरक्स ‘कलात्मक’ साधना और जन सहयोग से ठाणे में आपके सामने सादर है 3 दिवसीय “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य उत्सव।

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