इन 12 गांवों के लोग इस डर से नहीं खेलते होली कि देवता हो जायेगा नाराज तो फैलेगी महामारी

Update: 2020-03-10 14:14 GMT

आठ हजार की आबादी वाली दुर्गापुर पंचायत में 12 गांव हैं, जो एक पहाड़ी के चारों ओर बसे हैं, इनमें से किसी टोले में होली नहीं खेली जाती है, इसके पीछे ग्रामीणों की अपनी मान्यताएं हैं....

बोकारो से राहुल सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार। भारत के गांवों में अब भी अजीब-अजीब मान्यताएं हैं। झारखंड के बोकारो जिले के कसमार प्रखंड की एक ग्राम पंचायत है दुर्गापुर जहां लोग अपनी मान्यताओं की वजह से होली नहीं खेलते हैं। इस पंचायत के 12 टोले या गांव एक पहाड़ी की तलहटी के इर्द-गिर्द बसे हैं। इस पहाड़ी को दुर्गा पहाड़ी या बड़रा बाबा भी कहते हैं।

हां के ग्रामीणों की मान्यता है पहाड़ी पर विराजमान बड़रा बाबा को रंग बिल्कुल पसंद नहीं हैं और वे इससे नाराज हो जाएंगे और अनिष्ट हो जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि बड़रा बाबा को सफेद छोड़कर कोई अन्य रंग पसंद नहीं हैं, इसलिए हम लोग होली नहीं खेलते। यहां के ग्रामीण पूजा-पाठ में केवल सफेद वस्तुओं का ही उपयोग करते हैं। इसकी वजह यह है कि दूसरे रंग की चीजों से बाबा नाराज हो जाएंगे। ग्रामीण पहाड़ी पर बाबा की पूजा करने जाते हैं तो सफेद कपड़े और सफेद फूल ही ले जाते हैं, यह ध्यान रखते हैं कि कोई रंगीन वस्तु नहीं हो।

ग्रामीण बड़राव बाबा से मन्नत मांगते हैं और फिर उनकी पूजा के लिए पहाड़ पर जाते हैं। पहाड़ी के नीचे तलहटी में दुर्गा माता व काली माता का मंदिर भी है।

पहाड़ी के नीचे तलहटी में स्थित दुर्गा माता व काली माता का मंदिर

हाड़ी की चोटी पर बड़रा बाबा को प्रसन्न करने के लिए बली चढाई जाती है। बली भी सफेद रंग के बकरे या मुर्गे की चढाई जाती है। पहाड़ी पर चढने वाले लोग हर हाल में सूर्यास्त के पहले उतर जाते हैं। ऐसी धारणा है कि अगर सूर्यास्त तक वहां रुकेंगे तो फिर जीवन में कभी सूर्योदय नहीं देख पाएंगे। यानी उसी रात मौत निश्चित है।

स्थानीय पत्रकार दीपक सवाल बताते हैं कि करीब 100 साल पहले की घटना या किवदंती है कि मूंगा बगदा गांव के कुछ लोग पहाड़ी की चोटी पर बड़रा बाबा को बलि चढाने के लिए गए। बलि चढाने के बाद सभी लोग नीचे उतर रहे थे, उसी दौरान ध्यान आया कि पशु को काटने वाला हथियार उपर ही छूट गया। सभी लोगों ने कहा कि सूर्यास्त होने वाला है रहने दो, लेकिन पुजारी बोला कि मैं लेकर आ जाता हूं।

पुजारी जब वहां हथियार लेने गया तब तक सूर्यास्त हो चुका था और उसे देवी का दर्शन हुआ और कहा कि तुम यहां सूर्यास्त होने पर क्यों आए अब जीवन में सूर्योदय नहीं देख सकोगे। वह पुजारी हथियार लेकर नीचे आया और सबको यह अनुभव बताया। उसके बाद वह घर भी गया, लेकिन रात में ही उसकी मौत हो गयी। इसके बाद फिर कभी कोई पहाड़ी पर सूर्यास्त के बाद नहीं चढता है और अगर पहाड़ी पर पहले से चढ़ा होता है तो यह कोशिश करता है कि किसी तरह सूर्यास्त होने से पहले नीचे आ जाए।

ग्रामीण भूखल महतो

दुर्गापुर पंचायत में स्थित है ललमटिया गांव, जहां मुस्लिम व हिंदू आबादी मौजूद है। हिंदुओं में महतो व करमाली जाति के लोग हैं। यहां के ग्रामीण ठाकुर करमाली बताते हैं कि तीन पीढी पहले कुछ लोगों ने उत्साह में होली खेली। लेकिन, उसके बाद वे लोग सोए तो सोए ही रह गए, मर गए। इनका कहना है कि रंग खेलने के बाद बहुत लोग बीमार होने लगे थे, अमीर-अमीर लोग भी बीमारी के शिकार हो गए। कई पशु बीमार होकर मरने लगे। गांव में महामारी फैल गयी। इसके बाद ग्रामीण भयभीत हो गए और फिर कभी किसी ने रंग नहीं खेला है।

हालांकि गांव की वे लड़कियां जिनकी शादी दूसरी जगह होती है, वे अपने ससुराल में जाकर रंग खेलती हैं। वहीं, लड़के भी अपने ससुराल में जाकर होली खेलते हैं। गांव के ही लोग जो इन 12 टोलों की चौहद्दी से बाहर कहीं बसे हों, वहां होली खेलते हैं। गांव के लोग पुआ-पकवान सब बनाते खाते हैं, मांस-मछली भी खाते हैं, लेकिन रंग नहीं खेलते हैं।

गांव के 75 साल के बुजुर्ग भूखल महतो कहते हैं कि हम लोग होली नहीं खेलते हैं, क्योंकि हमारे भगवान को रंग पसंद नहीं है। अगर खेलेंगे तो कुछ गलत हो जाएगा। गांव की महिलाएं भी रंगों से परहेज करनी बात कहती हैं।

Tags:    

Similar News