ऐतिहासिक बदलाव के मुहाने पर खड़ा आज का किसान आंदोलन

Update: 2018-07-22 14:28 GMT

कहीं हज़ारों किसानों ने शांति पूर्ण मार्च किया तो कहीं सड़कों को भी जाम किया गया। सरकारों पर कहीं तुरंत दबाव बना तो कहीं पर सरकार ने किसानों पर लाठियां व गोलियां चलवाई...

किसान आंदोलन पर रमन की टिप्पणी

किसान खेतों को छोड़ सड़कों पर उतर रहे हैं, चाहे मंदसौर हो या मुम्बई, जयपुर हो या हरियाणा हर तरफ रोष है। कहीं नेतृत्व के साथ कहीं बिना नेतृत्व के किसान आंदोलन उठ रहे हैं। बस एक सवाल है जस का तस बना है " मेरी फसल का जायज़ दाम मुझे क्यों नहीं मिल रहा?"

इस सवाल को अलग अलग जगहों पर भिन्न भिन्न तरीकों से उठाया गया। कहीं किसानों की संसद आयोजित हुई तो कहीं गांव बंदी हुई। कहीं हज़ारों किसानों ने शांति पूर्ण मार्च किया तो कहीं सड़कों को भी जाम किया गया। सरकारों पर कहीं तुरंत दबाव बना तो कहीं पर सरकार ने किसानों पर लाठियां व गोलियां चलवाई।

निष्कर्ष यही निकला की किसान आंदोलन जहां जहां संगठित हुए वहां आंशिक विजय भी हासिल हुई, लेकिन आज किसान आंदोलन जिस मुहाने पर खड़ा है, वहां ऐतिहासिक बदलाव आने की पूर्ण संभावना दिख रही है। यह आंदोलन दिशा और नेतृत्व की ओर झांक रहा है।

मुझे लगता है कि कड़वी बात पहले करनी चाहिए और मैं पहले भी कहता आया हूँ की दूध बहाकर, सब्ज़ियां सड़कों पर फेंककर,सड़कों को जामकर खाद्य सामग्री की सप्लाई रोकने से कोई भी किसान आंदोलन सफल नहीं हुआ है। जब भी ऐसा होगा आंदोलन हिंसा की ओर बढ़ेगा और हिंसक आंदोलन न तो व्यापक और समावेशी होते हैं न ही कोई दूरगामी असर ही छोड़ पाते हैं। एक आम आदमी इस आंदोलन में सहभागी होने से छिटक जाता है और जिसमें तनिक भी किसानों के प्रति सहानुभूति होती है वह भी सामाजिक स्तर पर इस तरह के आंदोलन का समर्थन नहीं कर पाता।

किसान को क्षणिक लाभ तो इस तरह के आंदोलनों से मिल जाता है, लेकिन वह क्षणिक लाभ एक व्यापक किसान आंदोलन की नींव खत्म कर देता है। किसानों को फिर से सरकार की तरफ से झुनझुना दे दिया जाता है, सरकारें बदलती जाती हैं लेकिन किसान की स्थिति जस की तस बनी रहती है।

आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए ग्रामीण और शहरी भारत का एका करना होगा मतलब शहर में जा रहे ग्रामीण खाद्यान्नों, सब्ज़ियों, दूध एवं अन्य खाद्य सामग्रियों का इस महंगाई के ज़माने में असल मूल्य किसानों को कितना मिल रहा है यह बताना होगा। वो किसानों की ही तो संतानें हैं जो किसी समय नौकरी पेशे की आस में शहरों में आकर बसे हैं। जड़ें तो आज भी ग्रामीण ही हैं, बस गांव की यादें थोड़ी धुंधला गई हैं। हमें उस रिश्ते को पुनर्जीवित करना होगा, एक समावेशी किसान आंदोलन की ऊर्जा यह काम कर सकती है।

दूसरा किसानों में पनप रही आत्मग्लानि को खत्म कर ग्रामीण संस्कृति को सामाजिक न्याय के पैमाने पर पुनर्जीवित करना होगा, यह काम भी एक व्यापक किसान आंदोलन के सहारे ही हो सकता है।

आंदोलन का दूरगामी असर उसकी समाज में सहभागिता और दिशा पर निर्भर करता है। इसलिए किसान आंदोलन को अहिंसक होना होगा, किसान नेताओं को भविष्य की खेती किसानी का मॉडल जो ग्रामीण भारत को आत्म निर्भरता के साथ साथ भारत को खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य गुणवत्ता सुरक्षा दे पाए, जैसे कि रूपरेखा बनानी होगी और उसी दिशा में किसान आंदोलनों को बढ़ाना होगा। कुल मिलाकर हमें वो किसान नेता चाहिए होंगे जो स्वराज की परिकल्पना को ग्रामीण स्तर पर ला सकें।

Tags:    

Similar News