प्रधानमंत्री जी फुर्सत निकालकर सुन लीजिए विकलांग की गुहार

Update: 2017-11-04 10:39 GMT

दिव्यांगों के लिए बने परीक्षा केन्द्र जिला स्तर पर

10 किलोमीटर दूर जाकर की पढ़ाई, पर प्रतियोगिता परीक्षा व इंटरव्यू केन्द्र दूर होने से विचलित हो रहा दिव्यांग रामनिवास का हौसला

टोहाना से नवल सिंह की रिपोर्ट

उसने हिम्मत नहीं हारी, वो संघर्षरत है, पर बाधाएं भी विकट हैं जो उसके रास्ते से हटने का नाम ही नहीं ले रही। जी हाँ ये कहानी है फतेहाबाद जनपद के टोहाना उपमण्डल के गांव गाजुवाला में दिव्यांग (विक्लांग) रामनिवास की, जो भी इसे सुनता-देखता है उसके हौसले को सलाम करता है। साथ में उसके बदतर हालात देखकर चुपके से दो आंसू भी टपका देता है।

रामनिवास स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी प्रमाणपत्र में सौ प्रतिशत दिव्यांग है। चलने फिरने से लाचार, बेहद कठिनाई से दिनचर्या के सारे कार्य वो खुद निपटाता है। रामनिवास अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा है। जन्म से दिव्यांग उसके अन्य एक भाई व एक बहन भी दिव्यांग है। एक भाई स्वस्थ है जो चाय की रेहड़ी से घर की गृहस्थी खींच रहा है, परिवार बेहद दयनीय हालातों में जी रहा है।

पर रामनिवास के हौसले को सलाम जिसने कभी भी हालातों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिक्षा को हथियार बना कर विपदा का पहाड़ काटने की राह पकड़ी। दसवीं की परीक्षा के बाद आगे की शिक्षा का सवाल आया, स्कूल गांव से 10 किलोमीटर दूर था। उसने हिम्मत नहीं हारी और समाजसेवी संस्था से मिली ट्राईसाईकल से जाना शुरू किया।बाहरवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की।

अब इससे आगे की पढ़ाई कैसे करे, आर्थिक-शारीरिक-परिवारिक हालात के असुर उस पर ग्रहण की तरह छाए हुए थे। उसने घर पर रहकर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। यहां नया सवाल पैदा हो गया तैयारी तो कर ली, पर प्रतियोगिता परीक्षा के केन्द्र उसे दूरदराज के इलाके मिलने लगे। बार-बार कौन रामनिवास के लिए समय निकालता? कैसे आर्थिक बोझ का वहन होता?

इन हालातों के आगे उसको कुछ सूझ नहीं रहा है, हौसला दम तोडऩे लगा, अब वो पिछड़ने लगा है, ज्यादा दूरी के परीक्षा केन्द्र पर उसका किसी की सहायता जाना संभव नहीं होता। कुछ लोग सहायता कर रहे हैं, मगर अंतिम हल यही है कि सरकार के सहयोग के बिना उसका परीक्षा केंद्रों तक जाना असंभव जान पड़ता है।

गांव के सरपंच विजय हरिपाल कहते हैं, प्रशासनिक अधिकारी व विधायक के संज्ञान में यह मामला है। मदद का आश्वासन भी मिला था। पर अभी तक धरातल पर कुछ नहीं हुआ। ग्रामीण बलजीत सिंह कोने मे बेकार खड़ी, जंग व जाल लगी ट्राईसाईकिल दिखाते हुए कहते हैं, रामनिवास अब इसे भी नहीं चला पाता। उसका शरीर कमजोर हो रहा है, उसे एक मोटर ट्राईसाईकिल चाहिए, जिसे वो कम शक्ति से भी चला पाए।

सौ प्रतिशत दिव्यांग के परीक्षा केन्द्र जिला स्तर पर हो, ताकि वो इसके जरिए रोजगार आसानी से पा सके। पर उम्मीद का किला ढहने लगा है। अब स्थानीय शासन व प्रशासन से निराश रामनिवास प्रधानमत्री से गुहार लगाने जा रहा है। वहीं पंचायत का कहना है कि वो भी उसके लिए उच्च अधिकारियों व सरकार को पत्र लिखेगी, जिससे उसका हौसला टूटने ना पाए।

ऐसे व्यक्तियों की कहानी को नजदीक से देखने पर लगता है कि सरकार व प्रशासनिक अमला वाहवाही लूटने के लिए केवल कार्यक्रम करता है। विकलांग की जगह दिव्यांग संबोधन देता है, पर जमीनी हकीकत सुधारने में गंभीरता नजर नहीं आती है। हर बार रामनिवास की गुहार नक्कारखाने में तूती की तरह गुम हो जाती है।

सवाल यहां यह है कि क्यों सत्ता व प्रशासनिक गलियारे में रामनिवास की करुण पुकार किसी को कचोटती नहीं? क्यों अब तक रामनिवास की उचित मदद नहीं हुई, जिससे रामनिवास के जीवन की राह आसान हो पाए?

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