अय्याशी का कल्चर बढ़ाता पर्यटन व्यवसाय

Update: 2017-08-20 13:43 GMT

पर्यटन क्षेत्र विकसित होगा तो बड़े-बड़े रिजार्ट, पांच सितारा होटल जरूर खुलेंगे, जहां रईसजादे मनोरंजन के लिए आते हैं। क्षेत्रवासियों के हिस्से आता है रिजार्ट की चौकीदारी, रसोइया, गाइड, घोड़ा, सफारी, जिप्सी चालक, शराब की बिक्री का रोजगार और क्षेत्र को मिलती है पतित संस्कृति...

चंद्रदेखर जोशी

पर्यटन बोले तो- जीवन में बहार... नहीं तो। पर्यटन का अर्थ महानुभावों ने बदल दिया है। पर्यटन तो ज्ञान, संस्कृति की समझ, शोध-खोज, शांति-सुकून जैसे महान उद्देश्यों के लिए चलन में आया था।

सरकार और हर क्षेत्र के ‘जानकार’ कहते हैं कि पर्यटन से विकास होगा और रोजगार मिलेगा। - धत्त तेरे की ..... इन विचारों से अब पर्यटन का रूप मनोरंजन, अय्याशी, फैशन परस्ती, मौज मस्ती, थकान मिटाना जैसी मानसिकता ने ले लिया है।

इसमें ऐतिहासिक, जैविक और सांस्कृतिक पर्यटन नदारद है। पर्यटन एक अुत्पादक क्षेत्र है, इससे स्वस्थ विकास की कल्पना बेमानी है। प्रचार तंत्र कहता है कि एक बड़ा डैम, जंगल पार्क, भव्य मंदिर आदि चीजें बनेंगी तो पर्यटक आएंगे और क्षेत्र का विकास होगा, रोजगार मिलेगा। भला इससे कौन सा विकास होगा?

इस प्रकार की योजनाएं बनाने से ऐसे इलाकों में बड़े-बड़े रिजार्ट,पांच सितारा होटल जरूर खुलेंगे, जहां रईसजादे मनोरंजन के लिए आते हैं। ...क्षेत्रवासियों के हिस्से आता है रिजार्ट की चौकीदारी, रसोइया, गाइड, घोड़ा, सफारी, जिप्सी चालक, शराब की बिक्री का रोजगार और क्षेत्र को मिलती है पतित संस्कृति

क्या इसे रोजगार कहा जा सकता है? ऐसे पर्यटकों से सरकार को राजस्व जरूर मिलता है, लेकिन उस राजस्व को सरकारें मनमाने तरीके से खर्च करती हैं, उसे जनता की भलाई के लिए नहीं लगाया जाता।

पर्यटन के नाम पर होने वाले अंधाधुंध कारनामों से सामाजिक, पर्यावरणीय, जैव परिस्थिकी बिगड़ रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से पर्यटन के रूप में विकसित हुए देशों की हालत पूरी दुनिया के सामने है।

विकसित देशों को छोड़ दिया जाए तो अफ्रीका समेत तीसरी दुनिया के जो भी देश उत्पादकता के विकास को छोड़कर इस प्रकार के रास्तों पर आगे बढ़े वहां का सामाजिक जीवन बर्बाद हो चुका है। समाज भयानक बीमारियों वेश्यावृत्ति, नशाखोरी, कुपोषण, डिप्रेशन, अपराधों की ओर बढ़ा है।

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