2410 रुपए का उम्मीदवार पांचवीं बार बनेगा मुख्यमंत्री!

Update: 2018-02-18 09:48 GMT

बीजेपी इस बार बेहतर हालत में होगी इसमें कोई शक नहीं है। मगर कम्युनिस्टों को सीधी टक्कर देकर राज्य की सत्ता पर काबिज होगी, यह मुश्किल लग रहा है...

त्रिपुरा। एक तरफ देश में हजारों करोड़ रुपए के बैंक महाघोटाले एक के बाद सामने आ रहे हैं, वहीं इन सबके बीच एक ऐसी भी खबर है जिसकी तरफ किसी का ध्यान भी शायद ही गया होगा। आज त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है।

यह वही राज्य है जहां पिछले 5 बार से रिकॉर्डतोड़ एक ऐसा मुख्यमंत्री काबिज है, जिसका बैंक बैलेंस आज भी मात्र 2410 रुपए है। यह उन राजनेताओं के लिए आईना है जो हजारों करोड़ रुपए के साम्राज्य पर बैठकर न सिर्फ राज कर रहे हैं, बल्कि रोज—ब—रोज नए नए घोटालों में उनकी संलिप्तता भी उजागर हो रही है।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार इस बार भी धनपुर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। 1998 से वो लगातार धनपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीत रहे हैं।

आज विधानसभा की 60 में से 59 सीटों के लिए मतदान हो रहा है। त्रिपुरा में यह पहली बार है कि सत्ता में 25 सालों से काबिज कम्युनिस्टों को भाजपा से टक्कर मिल रही है। अगर यह चुनाव कम्युनिस्ट जीत जाते हैं तो माणिक सरकार पाचंवीं बार मुख्यमंत्री पद पर बैठेंगे। इस चुनाव में कुल 307 उम्मीदवार खड़े हैं। 3,214 मतदान केंद्रों पर आज सुबह सात बजे से मतदान शुरू हो गया है। चुनाव का रिजल्ट 3 मार्च को आना है।

हालांकि पहली बार बीजेपी भी यहां मैदान में है और दावा कर रही है कि वह त्रिपुरा का इतिहास बदल देगी और कम्युनिस्टों से सत्ता छीन भगवाधारी त्रिपुरा में राज करेंगे। गौरतलब है कि पिछले 25 सालों से कम्युनिस्ट यहां सत्ता में हैं।

इस बार बीजेपी अपनी जीत का आधार उन 20 आदिवासी सीटों को बता रही हैं, जहां से उसके कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्वोत्तर में अपनी पकड़ बनाने को भाजपा किस हद तक बेसब्र है इसका अंदाजा इसी बाद तो हो जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शांतिर बाजार में रैली कर इसका दावा भी ठोका।

हालांकि दूसरा सच यह भी है कि वर्तमान में पूर्वोत्तर के इस राज्य में आदिवासी बहुल 20 सीटों पर कम्युनिस्ट काबिज हैं। कांग्रेस भी 2013 में आदिवासी सीटों को जीत का आधार मानते हुए नैशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा (आईएनपीटी) से गठबंधन कर चुकी है, मगर वह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता से बाहर करने में नाकाम रही थी। 

राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि 2014 के बाद से लगातार मेहनत करके बीजेपी ने अपना संगठन और जनाधार यहां बहुत मजबूत कर लिया है। 2015 में जिला पंचायत चुनावों में मिली सफलता से भी बीजेपी के हौसले बुलंदी पर हैं। यही नहीं यहां पर बीजेपी के सहयोगी संगठन ने भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में काम करके अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है, इसलिए बीजेपी इस बार बेहतर हालत में होगी इसमें कोई शक नहीं है। मगर कम्युनिस्टों को सीधी टक्कर देकर राज्य की सत्ता पर काबिज होगी, इसमें संशय है।

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