यूपी में मर चुके और बिस्तर पकड़े बुजुर्गों पर भी CAA-NRC प्रदर्शन के दौरान हिंसा फैलाने का दर्ज हुआ मुकदमा
उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन ने CAA और NRC के विरोध में प्रदर्शनों में हुई हिंसा के लिए बन्ने खां नाम के एक ऐसे शख्स को भी आरोपी बनाया, जिसकी कई साल पहले मौत हो चुकी है....
जनज्वार। CAA और NRC के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में हिंसा मामले में यूपी पुलिस ने जो मामले दर्ज किये हैं, उससे उसकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान उठते हैं। पुलिस ने न सिर्फ सालों पहले मर चुके इंसान को हिंसा का दोषी करार दिया है, बल्कि बीमारी की हालत में खाट पकड़ चुके लोगों को भी हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उनका नाम उपद्रवियों की सूची में शामिल किया है।
नवभारत में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन ने CAA और NRC के विरोध में प्रदर्शनों में हुई हिंसा के लिए बन्ने खां नाम के एक ऐसे शख्स को भी आरोपी बनाया है, जिसकी कई साल पहले मौत हो चुकी है।
बकौल सपा जिलाध्यक्ष अजीम भाई ये दोनों ही लोग बहुत लंबे समय से बीमार चल रहे हैं और खुद से उठ पाने की हालत तक में नही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जो लोग खुद से खाट से तक नहीं उठ सकते वो हिंसक कार्रवाई कैसे कर सकते हैं।
गौरतलब है कि नागरिकता कानून के विरोध में 20 दिसंबर को फिरोजाबाद शहर में प्रदर्शन हुए थे जो हिंसक हो गये थे। इस मामले में थाना रसूलपुर, रामगढ़ और दक्षिण में पुलिस ने 38 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किये थे। यही नहीं इन मुकदमों की जांच के लिए एसएसपी सचिंद्र पटेल ने एसपी देहात राजेश कुमार के निर्देशन में एसआईटी का भी गठन किया है।
CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में कार्रवाई के नाम पर यूपी पुलिस ने मुजफ्फरनगर में एक सरकारी कर्मचारी समेत चार बेगुनाह लोगों को भी दोषी ठहराया था, जिन्हें 1 जनवरी को निर्दोष पाये जाने पर रिहा किया गया। पुलिस ने धारा 169 की रिपोर्ट पेश करके इन लोगों को छोड़ा है।
जानकारी के मुूताबिक सेवायोजन कार्यालय के क्लर्क मोहम्मद फारुख को 20 दिसंबर को पुलिस ने हिंसा के लिए दोषी ठहराते हुए उनके घर से गिरफ्तार किया था। अब फारुख के दफ्तर के इंचार्ज और दूसरे कर्मचारियों ने शपथ पत्र देकर कहा कि वह सारे दिन दफ्तर में मौजूद रहे और दफ्तर के रिकॉर्ड से भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है। डीएम ने इस मामले की जांच भी कराई थी।
इसके अलावा तीन अन्य लोगों अतीक अहमद, शोएब और खालिद को भी 20 दिसंबर को ही पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जबकि परिजनों का दावा था कि तीनों अपने बीमार रिश्तेदार को मेरठ के एक अस्पताल में ले जा रहे थे, जांच में इस बात की भी पुष्टि हो चुकी है।