बिसमिल्लाह बोले... दुनिया में बेसुरों ने ही फैलाया है इतना फसाद

Update: 2018-03-21 15:23 GMT

भारत रत्न मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की आज 102वीं जयंती है। इस अवसर पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें याद किया है। ताउम्र मस्तमौला और फक्कड़ी में जिंदगी जीने वाले इस महान कलाकार को याद करते हुए उनके साथ बिताए कुछ पलों को ताजा कर रहे हैं पत्रकार निराला बिदेसिया

उस्ताद से मिला था तो वे थोड़े बीमार रहते थे। उनके पास पहुंच तो गया लेकिन कहां से उनसे बात शुरू करूं, समझ नहीं पा रहा था। बात बिहार से ही शुरू कर दी। बिहार से उनके जन्मना रिश्ते पर...

अभी यह वाक्य मुुंह से निकला ही था कि उस्ताद आप मूलतः बिहार से हैं, उन्होंने बीच में ही रोका-टोका और कहा कि अरे यार मैं बनारसी हूं। बनारस मेरे रग-रग में है, मेरी रूह का रिश्ता बनारस से है।

बिहार का प्रसंग छोड़ दिया। दूसरे विषयों पर बात होने लगी। पूछा कि आपने तो शादी-व्याह में मामूली कलाकारों द्वारा बजाये जानेवाले एक सामान्य-से तुतुहरीनुमा वाद्ययंत्र, न तो जिस वाद्ययंत्र की कोई कद्र थी, न उसे बजाने वालों की, उसे दुनियाभर में एक प्रतिष्ठित वाद्ययंत्र बना दिया और उसके बजानेवालों में गर्व का भाव भर दिया, कैसा लगता है?

उस्ताद का जवाब था- मैं तो सिर्फ साधता रहा शहनाई और संगीत को, बाकि उसका असर क्या हुआ, यह जानना मेरा काम नहीं। तबियत नासाज होने की वजह से उस्ताद ज्यादा बातचीत करने में असमर्थ थे। ज्यादा देर बात न हो सकी। लौट आया। लौटते हुए उन्होंने कहा कि जाओ, फिर कभी आना, तबीयत ठीक रहेगी तो जमकर बात करेंगे।

फिर उन्होंने नसीहत दी कि कुछ गाना-बजाना जान लो। यह जो दुनिया में फसाद देख रहे हो न वह लोगों के बेसुरे होने का ही परिणाम है। जिस दिन लोगों का सुरों से लगाव हो जाएगा, उसकी समझ आने लगेगी, वे संयमित हो जाएंगे, उन्मादी नहीं हो पाएंगे, इसलिए सबको सुरों की समझ होनी चाहिए।

कला के करीब होना चाहिए इंसान को, कला ही इस घोर मुश्किल समय में नफरत और फसादी मन को शांत कर एक नयी राह निकाल सकता है। उस्ताद यह नसीहत दे रहे थे, न जाने क्यूं मेरे आंखों से छलछल आंसू निकलते जा रहे थे। वह भावुक क्षण था। अंदर तक, पोर-पोर को भिगो देने वाला।

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