यूपी के पूर्व आईजी ने कहा आतंकवाद विरोधी एक्ट में संशोधन जनविरोधी एवं अति कठोर

Update: 2019-07-25 14:14 GMT

पूर्व आईजी दारापुरी बोले आतंकवाद विरोधी एक्ट में संशोधन से आतंकवाद के आरोपी की पुलिस रिमांड 14 दिन से बढ़ाकर 30 दिन तक करने से पुलिस रिमांड के दौरान हिरासत में टार्चर की अवधि बढ़ जाएगी बहुत, इससे न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता बल्कि पुलिस द्वारा उत्पीड़न की सम्भावना भी बढ़ जाएगी...

लखनऊ, जनज्वार। पूर्व आईजी और जन मंच के संयोजक एसआर दारापुरी ने कहा कि आतंकवाद विरोधी एक्ट में संशोधन जनविरोधी एवं अति कठोर है। यह बात उत्तर प्रदेश के पूर्व आईजी रहे एसआर दारापुरी ने आज 25 जुलाई को एक प्रेस वार्ता के दौरान कही।

सआर दारापुरी ने कहा कि इस एक्ट में किसी संगठन के साथ—साथ किसी व्यक्ति को तथाकथित आतंकवादी विचारधारा के आधार पर आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान पूरी तरह से जनविरोधी, अति कठोर एवं मानवाधिकारों का हनन करने वाला है। इसमें सरकार को किसी भी विचारधारा को आतंकवादी विचारधारा करार देने तथा उसको मानने वालों तथा उसका प्रचार करने वालों के उत्पीडन का औजार मिल जायेगा।

सआर दारापुरी ने कहा कि इस प्रावधान के बिना भी बहुत से बुद्धिजीवियों, लेखकों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को शहरी नक्सली करार देकर जेल में डाला जा चुका है। इस संशोधन से ऐसे लोगों तथा सरकार विरोधी लोगों का उत्पीड़न करके का कानूनी हथियार उपलब्ध हो जायेगा, जिसका खुला दुरुपयोग किये जाने की पूरी सम्भावना है।

सी प्रकार प्रस्तावित संशोधन में आतंकवाद के आरोपी की पुलिस रिमांड 14 दिन से बढ़ाकर 30 दिन तक करने से पुलिस रिमांड के दौरान हिरासत में टार्चर की अवधि बहुत बढ़ जाएगी, जिससे न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता बल्कि पुलिस द्वारा उत्पीड़न की सम्भावना भी बढ़ जाएगी। संशोधन में आतंक के मामलों की विवेचना पुलिस उपाधीक्षक की जगह् पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा किया जाना भी विवेचना की गुणवत्ता के लिए अच्छा नहीं है।

गौरतलब है कि आतंकवादियों पर कड़े प्रहार करने के नाम पर लोकसभा ने बुधवार 24 जुलाई को विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक (यूएपीए) को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद इस बहस ने जोर पकड़ा है। विपक्षी दलों द्वारा इसका विरोध किये जाने पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आतंकवाद पर करारा प्रहार करने के लिए कड़े और बेहद कड़े कानून की जरूरत है। आज कांग्रेस कानून में संशोधन का विरोध कर रही है, जबकि 1967 में इंदिरा गांधी की सरकार ही यह कानून लेकर आई थी। जो इसे बढ़ावा दे रहे हैं, उन पर कठोर कार्रवाई होगी। हमारी सरकार की उनके प्रति बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं है।

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