उत्तराखण्ड में अपने ही विभाग को करोड़ों की चपत लगा रहे अधिकारी या मामला है कुछ और

Update: 2018-02-24 22:48 GMT

अवैध कमाई से हिस्सा लेने के बात को नकारा डीएफओ ने, कहा साबित करने के लिए मेरे पास हैं ढेरों प्रमाण...

हल्द्वानी से संजय रावत की रिपोर्ट

जीवनदायनी नाम से अलंकृत ‘गौला नदी’ सिर्फ मजदूरों, किसानों, बेरोजगार युवाओं और बड़े राजस्व के लिए ही जीवनदायिनी नहीं है। बल्कि इससे बड़े पूंजीपति, टटपूंजिए और विभागीय अधिकारी भी खूब फलते-फूलते हैं। खनन सत्र में कौन-कौन से ठेके किसे मिले, यहां तक भी ये सब अधिकारी मिलजुल के प्लेटफाॅर्म तैयार करते रहे हैं। इसी कड़ी में आज एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, अवैध उगाही का।

जानकारी हासिल करने के बाद इन संवाददाता ने दोनों पक्षों से बातचीत की। शिकायतकर्ता के मुताबिक वन विभाग और वन विकास निगम के कर्मचारी गौला नदी में उपखनिज ढोने वाले वाहनों से अवैध उगाही भी करते हैं, जिससे सूबे के राजस्व का कोई लेना देना नहीं होता। यह उगाही सात हजार पांच सौ (7,500) वाहनों से प्रतिदिन की जाती है। पिछले वर्ष तक यह उगाही 10 रुपए प्रति वाहन था, जबकि इस वर्ष यह 30 रुपए प्रति वाहन कर दी गयी है। यानि सात हजार (7000) वाहन भी प्रतिदिन नदी में उतरे तो यह रकम (7000 × 30 = 210000) दो लाख दस हजार रुपए प्रतिदिन हुई और महीनेभर में यह कमाई (210000 × 30 = 6300000) तिरेसठ लाख रुपए बनती है।

तिरेसठ लाख रुपए प्रतिमाह अधिकारी, कर्मचारी तो आराम से हजम कर जाते हैं, पर जीरो टाॅलेरेंस सरकार इस मामले को कैसे हजम करती है, ये एक विचारणीय प्रश्न लगा। शिकायतकर्ता के मुताबिक इस अवैध कमाई के बंटवारे की भी रोचक दास्ता है। बताते हैं कि 30 रुपए प्रति वाहन की उगाही से 5 रुपए प्रति वाहन डी.एफ.ओ. गौला को चढ़ावा जाता है और बाकी सीनियरटी-जूनियरटी के हिसाब से अन्य राशि वन निगम और वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी ईमानदारी से बांट लेते  हैं।

अब यदि डी.एफ.ओ. गौला को 5 रुपए प्रति वाहन रोज मिला, तो यह (5 ×7000 = 35000) पैंतीस हजार रुपए प्रतिदिन हुआ और (35000 ×30 = 105000) दस लाख पचास हजार मासिक हुआ। यानि कि एक नव नियुक्त डी.एफ.ओ. की तनख्याह का दस गुने से भी अधिक लाभ।

इस अवैध उगाही की भनक उच्च अधिकारियों और समबंधित विभाग के मंत्री महोदय को हो या न हो, पर यह खेल बड़ी राजस्व हानि का तो है ही, साथ ही साथ गौला नदी में उपखनिज चोरी की रोकथाम के लिए तरह तरह के उपकरणों पर भी सवालिया निशान खड़े करता नजर आया तो हमने डीएफओ गौला नीतीश मणि त्रिपाठी से बातचीत की।

डीएफओ नीतीश मणि त्रिपाठी द्वारा जनज्वार संवादाता से हुई बातचीत के बाद जारी किया गया आदेश 

इस आरोप पर डीएफओ नीतीश मणि त्रिपाठी ने दस्तावेजों के साथ अपना पक्ष रखा। उनका कहना था कि 'सबसे पहले प्रमाणों पर नजर डालते हुए बाते करते हैं। सबसे पहला ये कि 1977 में तराई पूर्वी की डिविजन अस्तित्व में आयी, जिससे वाहनों की ओवर लोडिंग पर किसी भी सत्र में 25 लाख से अधिक जुर्माना नहीं हुआ है। और मेरे कार्यकाल में इसी सत्र 2017-18 में जुर्माने की राशि सवा करोड़ से उपर है।'

डीएफओ नीतीश मणि त्रिपाठी द्वारा दैनिक समाचार पत्रों को जारी किया गया सूचना का विज्ञापन

 'दूसरा मैंने सचिव खनन से घोड़े बुग्गी का ई-रवन्ना शुरू करवाने की सिफारिश की, जिसके चलते जहां पहले घोड़े बुग्गियों के करीब 50 रवन्ने कटते थे। आज 500 से ज्यादा ई-रवेन्ने काटे जा रहे हैं। तीसरी बात मैंने विभाग में वर्ष 2007 से एक ही जगह बैठे करीब 80 कर्मचारियों का स्थानांतरण किया है। ऐसे में आप ही बताईये कि ये इल्जाम लगना स्वाभाविक है कि नहीं। मैं चीजों को व्यस्थित करने में भरोसा रखता हूं। इसलिए ये वेबुनियाद आरोप तो अपेक्षित है ही।'

प्रकाशित विज्ञापन की कटिंग

 इस मामले पर एक तरफ शिकायतकर्ता के पास अपनी बात प्रमाणित करने को कोई प्रमाण नहीं है, तो अधिकारी के पास ढेरों प्रमाण हैं अपनी बात पुख्ता करने को। हालांकि बातचीत होने के दौरान डी. एफ.ओ. ने उक्त संबंध में कई आदेश जारी कर दिए थे, जिससे लगता है कि किसी भी तरह की चोरी या अनियमितता का कोई मतलब नहीं बनता।

 

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