मुस्लिमों ने कैंसर पीड़ित हिंदू के इलाज को दिया मोहर्रम जुलूस का पैसा

Update: 2017-10-26 21:04 GMT

इंसानियत की अनूठी मिसाल पेश की है पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित पुरातन मोहल्ले के मुस्लिमों ने, जहां संप्रदाय से बढ़कर इंसानियत के धर्म को तवज्जो दी गई...

कोलकाता। एक तरफ जहां धर्म, जाति, संप्रदाय को लेकर तमाम सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं, राजनेता अपने हितों को साधते हुए धर्म के नाम पर लोगों को बांटते रहते हैं, वहीं धर्म—संप्रदाय से परे पश्चिम बंगाल में हिंदू—मुस्लिम एकता और इंसानियत की एक नई और अनूठी मिसाल देखने को मिली है।

पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में अक्तूबर के पहले सप्ताह में निकाला जाने वाला मोहर्रम का जुलूस सिर्फ इसलिए नहीं निकाला गया, क्योंकि इस मद में जो पैसा जमा किया गया था उसे उन्होंने एक युवा जान बचाने के लिए खर्चा था।

खड़गपुर के पुरातन मोहल्ले में इस बार मुस्लिम समुदाय ने मोहर्रम का जुलूस नहीं निकाला। कारण था कैंसर पीड़ित एक हिंदू लड़का। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाला अबीर भुनिया कैंसर जैसी भयानक बीमारी से जूझ रहा है। उसका परिवार इतना सक्षम नहीं है कि उसके इलाज के लिए एक बड़ी धनराशि इकट्ठा कर पाएं। इस बात का पता जब पड़ोसी मुस्लिमों को लगा तो उन्होंने मोहर्रम के जुलूस के लिए इकट्ठा किया गया पैसा कैंसर पीड़ित हिंदू लड़के अबीर भुनिया को इलाज के लिए दे दिए।

गौरतलब है कि खड़गपुर में हर वर्ष पुरातन बाजार के समाज संघ क्लब की तरफ से मोहर्रम के जुलूस के लिए करीब 50 हजार रुपए की धनराशि लोगों से इकट्ठा कर जुटाई जाती है। इस साल भी मोहर्रम के लिए पैसा जुटाया गया था, मगर इस पैसे से बजाय जुलूस निकालने के लिए इस इलाके के नेकदिल मुस्लिमों ने इलाज के अभाव में कैंसर जैसी बीमारी से तिल—तिलकर मर रहे पड़ोसी हिंदू अबीर भुनिया के इलाज के लिए देना मुनासिब समझा।

धर्म—संप्रदाय को परे छोड़ मुस्लिम पड़ोसियों से मिले इलाज के लिए इस सहयोग से अबीर बहुत भावुक होते हुए कहते हैं, 'मुझे नहीं मालूम कि मैं कैंसर से उबर पाऊंगा या नहीं, लेकिन पड़ोसियों ने मेरे लिए जो भी किया है, मैं ताउम्र उनका अहसानमंद रहूंगा।'

गौरतलब है कि हिंदू धर्म से ताल्लुक रखने वाला 35 वर्षीय अबीर भुनिया कैंसर से पीड़ित है। उसकी पुरातन बाजार में मोबाइल रिचार्ज की दुकान है, जिससे उसके परिवार का गुजर—बसर हो जाता था, मगर कैंसर जैसी भयावह बीमारी के बाद परिवार के लोग बहुत परेशान हो रहे थे कि इलाज कैसे होगा। फिलहाल अबीर की कीमोथैरेपी चल रही है, और अस्थिमज्जा प्रत्यारोपण किया जाना है।

अबीर के मां—बाप की पिछले साल मौत हो चुकी है, परिवार में वो और उनकी पत्नी हैं। उनका कोलकाता के सरोज गुप्ता कैंसर संस्थान से इलाज चल रहा है। वहां के डॉक्टरों ने बताया है कि उसके इलाज में लगभग 12 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी।

इलाज के लिए इतनी बड़ी धनराशि जुटाना अबीर के परिवार के लिए आसान काम नहीं है। उसके इलाज की बाबत इतनी मोटी धनराशि की जरूरत की बात जब समाज संघ क्लब को पता चली तो उन्होंने मोहर्रम के जुलूस के लिए इकट्ठा किया गया पैसा अबीर के इलाज के लिए देने का फैसला किया।

एक हिंदू युवा के लिए धार्मिक आस्था के पर्व का पैसा खर्च किए जाने पर समाज संघ के सचिव अमजद खान कहते हैं, मोहर्रम का जुलूस तो हम हर वर्ष आयोजित कर सकते हैं लेकिन इस समय हमारी प्राथमिकता अबीर का जीवन बचाना है।

वहीं मोहर्रम का पैसा एक हिंदू के इलाज के लिए दिए जाने पर समाज संघ के एक अन्य सदस्य मोहम्मद बिलाल कहते हैं, 'अबीर अभी कैंसर से जूझ रहे हैं। ऐसे में हम सभी को उनके साथ खड़ा होना चाहिए। हम दूसरों की सहायता करेंगे तो अल्लाह भी हमसे खुश रहेगा।'

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