व्हाट्सएप जासूसी के शिकार बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लिखा मोदी सरकार को खुला पत्र

Update: 2019-11-09 11:45 GMT

भारत सरकार से किया सवाल कि क्या वह अपने विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, एजेंसियों अथवा अन्य राज्य सरकारों और एन.एस.ओ. एवं उसके अन्य ठेकेदारों के बीच पेगासस या संबंधित मालवेयर के भारत में संचालन के लिए किसी अनुबंध से थी परिचित...

जनज्वार। व्हाट्सएप जासूसी कांड में 2 दर्जन से भी ज्यादा पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का नाम सामने आया है। इनमें शामिल अभिभाषक मनदीप, अजमल खान, आलोक शुक्ला, अंकित ग्रेवाल, आशीष गुप्ता, बल्ला रवीन्द्र नाथ, बेला भाटिया, डिग्री प्रसाद चौहान, देविका मेनन, जगदीश मेश्राम, निहालसिंग राठौड़, निकिता अग्रवाल, रूपाली जाधव, सीमा आज़ाद, शालिनी गेरा, शुभ्रांशु चौधरी, विद्या, वीरा साथिदार और विवेक सुंदरा की तरफ से मोदी सरकार के नाम एक खुला पत्र जारी किया है।

न्होंने लिखा है कि हम सभी को पिछले एक सप्ताह में व्हाट्सएप inc से संदेश प्राप्त हुए हैं। हमें सूचित किया गया हैं, कि हमारे मोबाइल उपकरणों को एक अत्याधुनिक साइबर हमले का निशाना बनाया गया हैं। इस संदेश के अनुसार, व्हाट्सएप्प वीडियो कॉलिंग सेवा के ज़रिये हमारे इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को एक स्पाईवेयर (spyware) भेजने की कोशिश की गयी थी, जिसके कारण हमारी डिजिटल सुरक्षा अत्यंत जोखिम में पड़ गई है।

व्हाट्सएप ने पेगासस नामक एक खतरनाक स्पाईवेयर को इस हमले के लिए ज़िम्मेदार ठहराया हैं, जो किइज़रायल स्थित एन.एस.ओ. समूह तथा उसकी मूल कंपनी Q साइबर टेक्नोलॉजीज़ द्वारा उत्पादित हैं| यह स्पाईवेयर बाज़ार में उपलब्ध सबसे परिष्कृत स्पाईवेयर में से एक हैं। एक बार इन्स्टॉल हो जाने पर यह उपयोगकर्ता की जानकारी के बिना उसके फोन के डाटा को दूसरे संचालक को उपलब्ध करा देता है, जिसमें उनके पासवर्ड, कांटेक्ट, कॉल लॉग, मैसेज, वीडियो कॉल इत्यादि सम्मिलित हैं।

file photo

न्होंने आगे लिखा है, हम सभी - पत्रकार, वकील, शिक्षक, लेखक, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, विद्यार्थी एवं अन्य पेशेवर हैं, जो कि भारत के विभिन्न शहरों से आते हैं, और सभ्य समाज के विभिन्न दायरों से जुड़े हुए हैं। यह जानकारी कि हमारी निजी जानकारियों, व्यक्तिगत संवादों, एवं वित्तीय लेन-देन पर एक गोपनीय तंत्र के द्वारा निगरानी रखी जा रही है, अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाली बात है।

ह हमारे निजता के मौलिक अधिकार का हनन करती है, और ना केवल हमारी सुरक्षा को जोखिम में डालती है बल्कि उन सभी लोगों की जो कि हमारे विस्तृत तंत्र से जुड़े हुए हैं, जिनमें परिवार-जन, मित्रगण, सहकर्मी , मुवक्किल इत्यादि सम्मिलित हैं। इस प्रकार की विस्तृत निगरानी संपूर्ण समाज में डर का माहौल तैयार करती है, और विचारों एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हमारी लोकतांत्रिक संवैधानिक अधिकारों के बिलकुल विरुद्ध है।

स हमले से प्रभावित तथा ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हम भारत सरकार से अपील करते हैं, कि इस साइबर हमले से जुड़ी जो भी जानकारी उसके पास है तथा इसी प्रकार के अन्य व्यापक निगरानी तंत्रों के विषय में जो सूचना उपलब्ध है, उसे सार्वजनिक करे। साथ ही इन तंत्रों से जुड़े सभी लोगों की जानकारी साझा करे।

ह सार्वजनिक चिंता का विषय है कि क्या भारतीय करदाताओं के पैसे को इस प्रकार की साइबर निगरानी पर खर्च किया जा रहा है, जिसमें करोड़ों रुपए तथा सूचना तकनीक के विस्तृत ढांचे की आवश्यकता पड़ती है। यह तथ्य कि बाकी विदेशी ताक़तों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय निजी कंपनियों ने हर स्तर पर हमारी दूर-संचार प्रणाली पर प्रभुत्व जमा दिया है, तथा भारतीय नागरिकों की निजी जानकारियां उन्हें उपलब्ध हैं; हमारी राष्ट्रीय स्वायत्तता पर ख़तरा है।

स संदर्भ में हम भारत सरकार से पूछना चाहते हैं, कि क्या वह अपने विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, एजेंसियों अथवा अन्य राज्य सरकारों और एन.एस.ओ. एवं उसके अन्य ठेकेदारों के बीच पेगासस या संबंधित मालवेयर के भारत में संचालन के लिए किसी अनुबंध से परिचित थी? अगर हाँ, तो इस प्रकार के अनुबंध से संबंधित सभी जानकारी जिसमें इसके कुल मूल्य तथा ठेका एजेंसियों के बारे में जानकारी को सार्वजनिक किया जाए।

सके साथ ही, इन निगरानी की पद्धतियों का दुरुपयोग रोकने के लिए स्थापित नियंत्रण व् निरीक्षण के ढांचे की सारी सूचना मुहैया कराई जाए और अगर सच में भारत सरकार के पास इस निगरानी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी, तो वो जनता को बताए कि इन साइबर हमलों के गुनहगारों की पहचान तथा भविष्य में इस प्रकार के हमले को रोकने के लिए हमारे दूर-संचार तंत्र की सुरक्षा के लिए वो क्या कदम उठा रही है?

ह ज़रूरी है कि हर सचेत और सूचित नागरिक इस वैधानिक व्यवस्था से जुड़ी सभी जानकारी से परिचित हो जो हमारे निजता के अधिकार का निर्धारण करती है। और एक ज़िम्मेदार सरकार के लिए ज़रूरी है कि वो सभी नागरिकों की डिजिटल सुरक्षा सुनिश्चित करे।

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