फेसबुक ज्वाइन करते ही पति को मैं 'छिनाल' लगने लगी

Update: 2017-10-04 23:05 GMT

पति ने रामनामी से अलग इस हॉट चैट्स के लिए अपना नाम सुनील सुमन रख लिया था। मैंने फोन खोल के दिखाया कि देखिए कि आप सुनील सुमन के नाम से कैसे और किस तरह के चैट्स करते हैं महिलाओं के साथ। तीन लड़कियों से चैट में कहा है कि आपकी शादी नहीं और दो को बताया कि आपकी शादी है पर बीवी बहुत शक्की है और कोई बच्चा नहीं है...

एपी मिश्र

इस महिला से मेरी मुलाकात एक होटल के रेस्टोरेंट में हुई। हम दोनों होटल के बफे 'जहां खुद खाना लेना होता है' की पंक्ति में खड़े थे। खाना लेने के बाद मैं जिस टेबल पर बैठा था, उसी टेबल पर वह महिला भी बैठी। कोई 35—40 के बीच की रही होगी।

उसने रोटी तोड़ते हुए बहुत बेफिक्री से मुझसे कहा, 'हाय...मैं श्वेतांगी कालरा।' मैंने मुस्कुराकर हामी भरी। अदब से अपना नाम बताया। नाम बताने के बाद महिला ने कहा, मैं हमेशा खाने के करीब बैठना पसंद करती हूं। मुझे बहुत दूर से बार—बार आकर खाना ले जाना आॅड लगता है। और प्लेटें इतनी छोटी हैं कि आप एक सब्जी और सलाद से ज्यादा कुछ भी रख लें तो भद्दी लगने लगती हैं।

मैंने कहा, 'जी कोई नहीं आप आराम से बैठिए, मुझे अच्छा लगेगा।' हमने खाने के टेबल पर कुछ और भी बातें कीं, एक—दूसरे के प्रोफेशन के बारे में पूछा। उसने बताया कि वह एक सर्वे कंपनी में है और इन दिनों गुजरात चुनाव पर राजनीतिक माहौल भांपने की कोशिश में है।

वह बताती है, उसकी पूरी टीम आई है, पर वह टीम के साथ कंफरटेबल नहीं है, इसलिए अकेले खा रही है। उसको टीम से ऐतराज है कि वे लोग इजाजत के बगैर गुजरात में शराब पी रहे हैं। वह भी चोरी—छुपे। उसे शराब से कोई समस्या नहीं, पर उसकी राय में जहां प्रतिबंध हो, वहां खुलकर पीना मुमकिन नहीं। वह हंसते हुए बोलती है, 'शराब खुलकर पीने की चीज है, बंधकर पीने के लिए पानी तो है ही।'

उसने अपना खाना खत्म कर टेबल से उठते हुए मुझसे पूछा, 'क्या हमारे साथ आप बाहर टहलने चलेंगे। खाने के बाद खाना पचाने। कुछ कदम तो चलिए गुजरात में। हा...हा। खाने के बाद मुझे एक सिगरेट पीने की आदत है, पर है नहीं। इसलिए चलना है।'

मैं और श्वेतांगी कालरा एक पान—सिगरेट की दुकान पर पहुंचे। उसने सिगरेट पी और मैंने पान खाया और हम सड़क पर आगे बढ़ चले।

रात के करीब 9 बज रहे थे। अहमदाबाद की सड़कें अच्छी लग रही थीं। सड़कों पर गाड़ियों का भार बस इतना था कि टहलने वालों को बुरा न लगे। शहर की सफाई और सैनिटेशन अच्छा होने के कारण सड़क पर चलना दिल्ली—लखनऊ जैसा बुरा नहीं लगता। यहां सड़कों के किनारे बेंच लग हुए हैं, लोग उस पर बैठे हुए हैं। यह संस्कृति भारत के किसी और शहरों में संभवत: आपको नहीं दिखेगी। इसलिए आप किसी झपटमारी, छिनैती से नहीं डरते हैं और बेखौफ टहलते हैं।

श्वेतांगी ने मुझसे पूछा आप काम क्या करते हैं?

मैंने बताया मैं दूसरों की बातें सुनता हूं, उनके बारे में पूछता हूं, उनकी कहानियां सुनता हूं और उनको लिखता हूं। मुझे यह काम पसंद है और मैं इन दिनों यही कर रहा हूं।

ओह...और मुझे अपनी कहानियां सुनाना, पूरी दुनिया में उसके ढोल पीटना और जीवन के हर सच में दूसरे को शामिल कर लेना पसंद है।

मैंने कहा, 'फिर तो हम एक—दूजे के लिए बने हैं। आप कहिए, मैं सुनता हूं।'

श्वेतांगी ने हंसते हुए मेरी तरफ देखा, नई सुनोगे या पुरानी।

मैंने कहा, 'ताजी ही सुना दो, जो अभी—अभी गुजरी हो।'

श्वेतांगी, 'पहले मैं अपना पारिवारिक परिचय बताती हूं। मैं शादीशुदा हूं। मेरी 6 साल की एक बेटी है। मेरे पति दिल्ली में मोटर बनाने वाली कंपनी में इंजीनियर हैं। मेरे पति को लगता है कि मेरी जैसी मामूली, भोंदू, नीरस और जुबान चलाने वाली औरत कोई दूसरी बनी नहीं है। जबकि मुझे लगता है कि मेरे पति जैसा कायर, जिम्मेदारियों से भागने वाला, कुंठित और आत्मजीवी कोई और नहीं होगा। इस कारण हमारी उनसे और उनकी हमसे बहुत बनती नहीं है। फिर भी हम एक खुशहाल परिवार की तरह जीते, रिश्तेदारियों में जाते, बर्थडे विश करते और शादी की सालगिरह पर केक काटते हैं। घर में खाने—पीने की कोई कमी नहीं है, तीन लोगों को रहने के लिए थ्री बीएचके है, पर मैं कई रात बिना खाए और मेरे पति कई रात घर में बिना आए गुजारते हैं। इस तरह हमारा जीवन सुख—चैन से गुजर रहा है।'

मैंने पूछा जब आप यहां है तो बेटी कहां है। श्वेतांगी ने बताया, मां के पास। जब टूर पर होती हूं, बेटी को मां के पास छोड़ आती हूं।

उसके बाद श्वेतांगी ने पूछा, 'मेरे रोमांचकारी दांपत्य जीवन में आपको कुछ भी ऐसा नहीं लगा कि आप कोई सवाल पूछें।'

मैंने कहा, 'नहीं।'

इसके बाद श्वेतांगी ने सिगरेट की आखिरी कश खिंची और फेंक दिया। बोली, 'यहां बैठो, एक और किस्सा सुनाती हूं। बड़ा मजेदार है। मर्दों की नैतिकता पर है। अपना ही किस्सा है बिल्कुल ओरिजिनल।'

मैंने बैठते हुए कहा, 'प्लीज सुनाइए।'

श्वेतांगी ने इत्मीनान करते हुए बोलना शुरू किया,

करीब दो साल पहले की बात है। मेरे हाथ में पहली बार स्मार्टफोन आया था। वाट्सअप और फेसबुक से अपना नया—ताजा रिश्ता था। शुरू में मुझे इसे चलाने में बहुत समस्या होती थी। फोन की तकनीकी इतनी जटिल थी कि कई महीनों तक मेरे आॅफिस का चपरासी इससे खेलता रहा। वह इसमें लगा रहता था और इसके बदले वह हमें आसानी से चाय—पानी दे देता था।

...लेकिन मेरे पति की कहानी इससे उलट थी। वह रातों—दिन स्मार्टफोन में लगे रहते। बच्ची को बस तक नहीं छोड़ने जाते। उनका गुडमॉर्निंग सुबह फेसबुक लाइक—कमेंट देखने से होती और गुडनाइट भी लाइक करने—कमेंट करने से होती। वह रात में सोते वक्त मोबाइल सिरहाने पर रखते और ट्वायलेट जाने से पहले चैट हिस्ट्री डिलीट करते।

मैं अपने कामों में व्यस्त रहती। शुरू में मुझे भी लगा नई चीज है हो सकता है कुछ काम करते हों। पर धीरे—धीरे मेरे पति की मुस्कराने, गुस्सा, प्यार, व्यस्तता, घूमना—फिरना, घरेलू काम आदि फेसबुक के मातहत होते गए तो मुझे चिढ़ होने लगी।

चिढ़ झगड़े में बदल गयी। झगड़े के बाद उनको और फुर्सत मिल जाती। मैं रात में पानी पीने या पेशाब करने के लिए उठती तो वह देर रात किसी से बात करते हुए मुस्कुरा रहे होते या कुछ तेजी से लिख रहे होते। मैंने एकाध बार जासूसी की तो देखा वह लड़कियों से बात करते हैं।

अब मैं समझ चुकी थी कि मेरे पति क्या करते हैं। पर मैं हमेशा से इस ख्याल की रही कि आप किसी को बांध नहीं सकते, इसलिए मैंने उनसे ज्यादा शिकायत नहीं की। बस ड्यूटी बांट दी।

मैंने एक दिन गुस्से में कह दिया मुझे नहीं फर्क पड़ता है, अगर तुम फेसबुक पर ही किसी लड़की से हमबिस्तर हो जाओ, पर इससे फर्क पड़ता है कि जब तक मैं बच्ची को तैयार कर रही होती हूं, तब तक तुम सुबह छह बजे उठकर सब्जी काटते हो या नहीं।

यानी काम बंट गया, साथ में जीवन काटना आसान हो गया। इसके बाद मैंने सोचा कि इस मामले में न्याय यही है कि बराबरी कर ली जाए, कुढ़ने से अच्छा है कि खुद को भी खुश रखने की कोई जगह तलाश ली जाए। क्योंकि पति पहले से फेसबुक में बहुत खुश थे। मैंने भी फेसबुक की शरण ली। मुझे ऐसा इसलिए भी करना पड़ा क्योंकि मेरी सारी दोस्त, आॅफिस वाले बात—बात में कहते तुम एफबी पर नहीं हो, वहां मैसेज डाल देता।

फेसबुक पर आते ही दोस्ती के सैकड़ों रिक्ववेस्ट आ गए। सोचा, घर में एक पति है जिसको मैं थर्ड क्लास की लगती हूं और यहां के चाहने वाले हैं जो फोटो देख के ही फिदा हैं। दो—चार की रिक्ववेस्ट स्वीकार क्या की कि मैं उनके लिए खुली खिड़की हो गयी। पोर्न से लेकर आई लव यू तक उन्होंने भेजना शुरू कर दिया।

इधर फेसबुक एकाउंट बनाए मुझे तीन—चार दिन ही हुए थे कि मेरे पति को इसकी भनक लग गयी। मेरे पति को मेरी स्त्री अस्मिता की चिंता हुई। उन्होंने एकाध—बार समझाने की कोशिश की तुम्हारे जैसे लोगों का फेसबुक पर लोग गलत इस्तेमाल कर लेते हैं। तुम खुद भी परेशानी में आओगी और हमें भी डालोगी। मैंने कह दिया मुझे ब्लॉक कर दो, तुम्हें को कोई परेशानी नहीं होगी।

इस पर वो कहने लगे कि ऐसा तुम इसलिए चाहती हो कि मैं ब्लॉक हो जाउं और तुम फ्री होकर कुछ भी करो। मैंने कहा, अगर मुझे कुछ भी करना होता तो आॅफिस जाती हूं वहां तो वो कुछ के साथ, सबकुछ कर सकती हूं। कहो तो आॅफिस जाना छोड़ दूं।

इस पर वह चुप हो गए और मैं फेसबुक पर बनी रही। पर वह माने नहीं। मुझे वह बार—बार फेसबुक पर होने वानी चीटिंग की खबरें भेजते, जिसमें औरतों को प्रेम में फांसकर या उनकी फोटो का गलत इस्तेमाल कर फंसाया जाता। जवाब में मैं भी उन खबरों की क्लिप भेजती जिसमें शादीशुदा मर्द लड़कियों के साथ एफबी पर चीट करते या उनको गलत जानकारियां देकर प्रेम करते।

यह प्रतिक्रिया पति की मेरे फेसबुक ज्वाइन करने के छह महीने के बाद थी, लेकिन इधर उन्होंने दूसरा उपाय सोचा।

वह चिढ़कर देवी—देवताओं की तस्वीरें लगाने लगे। भगवान के भजन पोस्ट करने लगे और किसी गुरु जी के प्रचार में जुट गए। रोज सुबह उठने के बाद और रात को सोने से पहले एक—दो प्रवचन और गुरु जी के पोस्ट लगाते।

पर मैं अपने पति को जितना जानती थी मुझे ये सब नाटक लगा। कभी—कभार मजाक मैं पूछती कि आजकल ये सब क्या खेल चल रहा है, किसी लड़की ने धमका दिया है क्या जो भगवान के भजन में जुट गए हो। वह कहते, अरे ऐसा नहीं है। मैंने यह बीड़ा तुम्हारे लिए उठाया है कि तुम्हें भरोसा हो पाए कि मैं किसी लड़की या औरत से चैटिंग के लिए फेसबुक चलाता हूं।

मैंने जवाब में कहा, 'पर मैंने तो आपको ऐसा करने से कभी मना नहीं किया। फिर स्वत: संज्ञान लेने का कारण।'

मेरे पति ने कहा, संज्ञान तो लेना पड़ेगा। जब तुम्हारा सारा समय लोगों से चैट में चला जाता है फिर समझाना पड़ेगा तुम्हें। उस रात पति ने नैतिकता, पति—पत्नी के रिश्ते और मर्दों द्वारा दिए जा रहे धोखाधड़ी पर लंबा भाषण दिया। मैं सुनती रही। आखिर में उन्होंने कहा, ऐसी औरतों को लोग छिनाल समझने लगते हैं। बेजा फायदा उठाने लगते हैं।

उसके बाद मैंने उनको उनका फोन दिखाया। मैंने उन्हें उनके चैट्स दिखाए। उन्होंने रामनामी से अलग इस हॉट चैट्स के लिए अपना नाम सुनील सुमन रख लिया था। मैंने उनका फोन खोल के दिखाया कि देखिए कि आप सुनील सुमन के नाम से कैसे और किस तरह के चैट्स करते हैं महिलाओं के साथ। मेरी तो छोड़िए आपने खुद को बेटी विहीन कर लिया है। आपने तीन लड़कियों से चैट में कहा है कि आप की कोई शादी नहीं और दो को बताया कि आपकी शादी है पर बीवी बहुत शक्की है और कोई बच्चा नही है।

मेरे यह सब कहने के बाद वह नैतिकता छोड़ प्राइवेसी पर उतर आए थे। उन्होंने कहा कि मैंने कभी तुम्हारा फोन नहीं छुआ, लेकिन तुम मेरा फोन चेक करती हो।

मैंने जवाब में कहा कि मैंने फोन सिर्फ इसलिए छुआ कि आप मुझे बेमतलब की नैतिकता के प्रेशर में न लें और मुझे भी वह करने दें जो आप खुद करते हैं। इस बात पर मेरे पति भड़क उठे। उन्होंने कहा कि यह अधिकार मैं तुम्हें देता हूं जो तुम इतनी बहस कर पाती हो, अन्यथा दूसरे पति बीबियों के स्मार्टफोन का पासवर्ड अपने पास रखते हैं।

मैंने जवाब में कहा, उनका नहीं जानती जो देती हैं अपना पासवर्ड, लेकिन मैं इतना जानती हूं कि आप इतना नैतिक साहस नहीं कि आप मुझसे पासवर्ड मांग सकें। खुद में 72 छेद हैं और हमारा छेद गिनने चले हैं।

इतना बोलने के बाद श्वेतांगी ने राहत की सांस छोड़ी और इत्मीनान हो बोली मुझे एक और सिगरेट की तलब है। हम फिर उस सिगरेट की दुकान की आरे बढ़ चले। रास्ते में उसने मुझसे पूछा आपको कैसी लगी मेरी सच्ची वाली कहानी।

मैंने कहा, 'राहत देती है और अच्छी है।'

श्वेतांगी ने पूछा राहत कैसे देती और इसमें अच्छा क्या है? पति—पत्नी का रिश्ता दो फांक हो रहा है, अविश्वास की ढेरी लगी है और आप कहते हैं अच्छा है।

मैंने कहा कि इसमें राहत ये है कि इस पूरे विवरण में कहीं हिंसा नहीं है और राहत ये है कि आप बराबरी पर बहस कर पाती हैं और पति को खोलकर रख देती हैं। अबतक मैंने जो अनुभव सुने हैं उसमें औरत बहुत मजबूर, पेट की बहुत बड़ी दिखती और इज्जत की मारी दिखती है।

वह कैसे —श्वेतांगी ने पूछा?

मैंने कहा कि सोशल मीडिया के आने के बाद से यह स्थिति आमतौर पर ज्यादातर मध्यवर्गीय घरों की है जहां बीबियों के पास स्मार्टफोन है। स्मार्टफान ने औरत की दुनिया सात समंदर पार की कर दी है पर उसकी हकीकत यह है कि वह सच में अभी भी चौखट के भीतर के पायदान पर खड़ी है। आपका पूरा किस्सा उसी के आसपास का है।

औरतों के मामले में आपने पेट की बहुत बड़ी दिखने वाली क्यों कहा, इसका क्या मतलब है? — श्वेतांगी ने मुझसे पूछा।

अब हम होटल की ओर बढ़ रहे थे। रात के करीब 10.30 बज चुके थे। हालांकि कुछ दंपती सड़क किनारे लगे बेंच पर इत्मीनान से बैठे बातें कर रहे थे।

पर श्ववेतांगी ने मुझसे औरतों के पेट के दरिद्र होने बारे में जोर देकर दुबारा पूछा?

मैंने कहा, 'मैं जब पति पीड़ित औरतों से मिलता हूं तो अक्सर कहती हैं कि उनके रोटी का क्या रास्ता होगा, वह कहां जाएंगी और उनका कौन सहारा बनेगा। यह आपके साथ नहीं था, आप साहस के साथ एक सामान्य नागरिक की तरह अपने पति से पेश आती हैं। आपके विवादों में कहीं भी औरत होने की मजबूरी नहीं है?

श्वेतांगी ने कहा, 'मैं अपवाद हूं और अपवादों से दुनिया नहीं चलती। इसलिए आप इतनी आसानी से नहीं कह सकते कि औरतों का पेट ही महंगा होता है इसलिए अपना पति नहीं छोड़ पातीं। असल में उनकी इज्जत महंगी होती है और वह इसी चक्कर में जीवन बेच देती हैं, जिसका कोई मोल नहीं होता। संभवत: आप यही कहना चाह रहे हैं। मैं भी यह मानती हूं कि जिस दिन मर्द के हाथ में रखी इज्जत को औरतें अपने काबू में कर लेंगी उस दिन मुक्त हो जाएंगी पर यह इतना आसान नहीं, जितना आप जैसे लेखकों का लगता है।'

श्वेतांगी ने अगली सुबह फिर खाने की टेबल पर मिलने के वादे के साथ लिफ्ट के गेट पर बाय बोलते हुए कहा, 'यह औरत की लड़ाई है, यकीन मानिए वह इस सदी के आधे से पहले इसे जीत लेगी। बस आप लिखते रहिए हमारी कहानियों को, उसी तरह जैसे औरतें उन्हें आपको सुनाती हैं। बिना मिर्च मसाला के।'

लिफ्ट आने से पहले श्वेतांगी एक बार फिर उचक कर मेरी ओर लपकी और उसने कहा, 'यही ताजा किस्सा था। कल का ही है, अहमदाबाद आने से पहले का, जब हम और वह तलाक को लेकर तैयार हो गए। पर मुझे अच्छा लग रहा है कि मैं खुद अपना ख्याल रख सकूंगी। लगभग आधी उम्र। 35 के बाद अगर जिंदा रही तो 35 और साल तो। गुड नाइट।'

(फोटो प्रतीकात्मक)

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