गिरफ़्तारियों और यातनाओं के सहारे लिखी गयी कश्मीर से 370 हटाने की दास्तान
कश्मीर के स्थानीय निवासी बताते हैं कि हिंसक विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए सुरक्षाकर्मी स्थानीय लोगों को पीट रहे हैं और उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं...
ज़ुबैर सोफी की रिपोर्ट
जब जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल ने चार अगस्त को प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से दुनिया को संबोधित किया तो मुस्लिम बहुल घाटी के लोग चिंतित थे।
धरती के सबसे ज़्यादा सैन्यीकृत क्षेत्र में दशकों की अशांति के अनुभव के बाद, स्थानीय लोग मिल रहे संकेतों से जानते थे कि कुछ बड़ा होने वाला है। पर जब राज्यपाल से पूछा गया तो उन्होंने मीडिया से कहा कि यह बेवजह की घबराहट है, जो अफवाहबाज़ी से पैदा की गयी है।
उन्होंने झूठ बोला था। अगले ही दिन मोदी प्रशासन ने घोषणा कर दी कि कश्मीर को संविधान से मिली स्वायत्तता वापस ली जा रही है, और राज्य को दो 'केंद्र शासित प्रदेशों' में बदला जा रहा है।
इस समाचार से पूरे क्षेत्र सहित देशभर में लोग स्तब्ध रह गये, पर कश्मीर में संचार माध्यमों और यात्राओं पर लगे पूर्व नियोजित प्रतिबंधों ने सरकार को यह दावा करने का मौका दिया कि स्थिति 'सामान्य' है।
अब, जब पूरे क्षेत्र में घेराबंदी के बाद सुरक्षाबलों द्वारा यातनाओं और दमन का विस्तृत विवरण सामने आ गया है, द इंडिपेंडेंट ने उन घटनाओं की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश की है, जो कश्मीर का विशेष दर्जा छीने जाने का बायस बनीं।
26 जुलाई का दिन याद करें, जब भारत सरकार की तरफ़ से पहले ही सुरक्षाबलों से लबालब भरे क्षेत्र में अतिरिक्त 100 टुकड़ियों, यानी लगभग 10,000 जवानों की तैनाती की गयी।
इस कदम को उठाने का बहाना क्षेत्र में उग्रवाद (मिलिटेंसी) का सामना करने को बताया गया, जबकि हाल के महीनों में आतंकी हमलों की संख्या में गिरावट देखी गयी थी।
कुछ दिनों बाद घाटी में और 180 टुकड़ियां भेजी गयीं, लेकिन इस बार गृह सचिव शालीन काबरा ने बहाना बनाया कि वार्षिक अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकी हमला होने की खुफ़िया जानकारी थी।
आदेश के बाद मोदी सरकार ने एक और एडवाइज़री नोटिस जारी किया और फिर से आंतकी हमले की धमकी का हवाला दिया गया तथा पर्यटकों व तीर्थयात्रियों को तुरंत अपनी सुरक्षा के लिए घाटी छोड़ने को कहा गया।
इस बीच, घाटी में जवानों की बढ़ती भीड़ जम्मू और कश्मीर की ग्रीष्म राजधानी (समर कैपिटल) श्रीनगर में घबराहट और भ्रम पैदा कर रही थी।
द इंडिपेंडेंट को प्राप्त फुटेज दिखाती है कि छात्र अपनी कॉलेज की इमारतों और हॉस्टलों पर जाकर यह देखकर हैरान होते हैं कि उन पर अब सेना का कब्ज़ा है और उनमें सुरक्षाबलों के रहने की व्यवस्था की जा रही है।
पार्ट-टाइम (अंशकालीन) छात्र जो रविवार 4 अगस्त को घंटों यात्रा के बाद इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) के अंतर्गत कॉलेज पहुंचते हैं, उन्हें कॉलेज के दरवाज़े बंद मिलते हैं।
28 वर्षीय शबाना वानी उस दिन 70 किलोमीटर की यात्रा करके कॉलेज आयी थीं। उन्होंने बताया कि 'उन्होंने अपने प्रोफेसर को फ़ोन किया और उनसे कॉलेज बंद होने के बारे में पूछा. जवाब में उन्होंने कहा कि उनके पास कोई समुचित आदेश नहीं आया था और केवल फ़ोन करके कॉलेज तुरंत बंद करने को कहा गया था, क्योंकि सुरक्षाबल कॉलेज को अपने कब्ज़े में लेने वाले थे।'
उस वक़्त की स्थिति के बारे में डॉक्टर बताते हैं कि अधिकारियों ने सभी बड़े अस्पतालों को तुरंत दवाओं आदि की स्थिति बताने के लिए कहा। अस्पताल कर्मचारियों ने द इंडिपेंडेंट को बताया कि दिया गया समय इतना कम था कि वे अपने अस्पतालों में दवाओं की उपलब्धता की सही जानकारी नहीं दे पाये।
इन तैयारियों के कारण गैर-स्थानीय लोगों के प्रति द्वेष का माहौल बना। कई वीडियोज़ में सामने आया कि बाहर से आकर काम करने वाले मज़दूर जिन सामानों को उठा सकते थे उनके साथ श्रीनगर छोड़ रहे हैं, जबकि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी के बाहरी छात्रों को सुरक्षाबलों की तरफ से उनकी सुरक्षा के मद्देनज़र हॉस्टल से बाहर निकाला गया और ले जाया गया।
4 अगस्त से लागू संचार-बंदी का नतीजा यह हुआ कि तैयारियों का स्तर उस समय समझा नहीं जा सका और केवल राज्यपाल आदि के सरकारी बयान, जिनके अनुसार 'सबकुछ ठीक था' व्यापक तौर पर प्रसारित हुआ।
5 अगस्त को सरकार की तरफ़ से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा के साथ कई कश्मीरियों का दुस्वप्न सच साबित हुआ।
इसकी क्रोध से भरी प्रतिक्रिया अपेक्षित थी। लेकिन दक्षिणी कश्मीर के सर्वाधिक अशांत जिलों के दौरे में द इंडिपेंडेंट ने निवासियों से यह आरोप सुने कि सुरक्षाबलों ने किसी भी किस्म के प्रतिरोध को शुरुआत में ही कुचलने के लिए अत्यधिक क्रूरता और सामाजिक अपमान का सहारा लिया।
पुलवामा जिले, जहां फरवरी में आत्मघाती बम हमले में 40 अर्धसैनिक जवान मारे गये थे, के नादापोरा परिगम में लोगों ने बताया कि स्थानीय लड़कों को सुरक्षाबलों ने 370 हटाने की घोषणा होने के कुछ घंटों बाद 5 अगस्त की रात को टॉर्चर किया।
22 वर्षीय मोहम्मद यासीन भट ने बताया कि उन्हें जवानों ने आधी रात को बिस्तर से खींचकर घर से बाहर निकाला और मेन रोड पर ले आये, जहां उन्हें 11 अन्य नागरिकों के साथ नंगी हालत में एक कतार में खड़ा किया गया।
मालूम चला कि दिन में इलाके से गुज़र रहे सुरक्षाबलों पर पथराव हुआ था और जवान इसके दोषियों को पकड़ने के लिए अनियमित तरीके से युवाओं की धर—पकड़ कर रहे थे।
प्रभारी अधिकारी ने यासीन से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर उसकी राय पूछने से शुरुआत की। यासीन ने बताया, "मैं माहौल में पसरे तनाव को महसूस कर पा रहा था, इसलिए मैंने अपनी सुरक्षा के लिहाज़ से कहा, "हम खुश हैं, यह अच्छा फैसला है।' पर मैं जानता था कि उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं है।"
यासीन ने बताया कि उसे और अन्य लोगों को कपड़े उतारने को कहा गया और फिर लाठियों, बंदूक की नलियों और लातों से मारा गया. उसने बताया कि उनकी मदद के लिए वहां कोई नहीं था और समूचे गांव की घेराबंदी की गयी थी। जवान हर कोने में थे।
यासीन ने बताया, 'मारपीट के दौरान हम में से कई बेहोश हो गये। फिर वे हमारे निजी अंगों को इलेक्ट्रिक शॉक दे रहे थे और फिर टार्चर शुरू कर रहे थे।'
यासीन के परिजनों ने उसकी पीठ, जांघों की चोटों की तस्वीरें दिखायीं और अन्य परिवारों ने भी अपने घर के युवाओं की तस्वीरें दीं।
यासीन ने बताया कि टार्चर के दौरान एक व्यक्ति ने पानी मांगा तो उसे सड़क के किनारे नाली का गंदा पानी पिलाया गया। अपमान की इंतेहा मारने-पीटने के बाद नग्न लोगों को एक दूसरे के ऊपर लिटाकर की गयी। यासीन के अनुसार, 'यह प्रताड़ना थी और हमें बेहद अपमानित महसूस करवाने के लिए की गयी थी।'
पड़ोसियों ने भी घटना के बारे में ऐसा ही कुछ बताया। 80 वर्ष से अधिक उम्र के एक बुज़ुर्ग ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया कि उन्होंने यह सारा मंज़र शुरू से अंत तक देखा और जब सुरक्षाकर्मी चले गये तो उन्होंने सड़क पर आकर युवाओं की मदद की।
कश्मीर में वर्तमान संकट के शुरू होने के बाद से यासीन, सुरक्षाकर्मियों पर टॉर्चर के आरोप लगाने वाले अकेले शख्स नहीं हैं। हालांकि, भारतीय सेना के प्रतिनिधियों ने इन दावों को सिरे से खारिज किया है।
पुलवामा में हुई इन घटनाओं की रिपोर्ट पर बीबीसी को दिये बयान में सेना के एक प्रतिनिधि ने कहा, 'भारतीय सेना एक पेशेवर संस्था है, जो मानवाधिकारों को समझती और उनका सम्मान करती है. सभी आरोपों की जांच की जा रही है।'
5 अगस्त को ही रात के तक़रीबन 2 बजे दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में न्यू कॉलोनी इलाके में सशस्त्र जवान मोहम्मद मक़बूल खान के घर पहुंचे।
जवानों ने दरवाज़ा पीटना शुरू किया। मक़बूल की बहू शाज़दा बानो ने बताया कि वह घबराती हुई दरवाज़ा खोलने को दौड़ीं।
शाज़दा ने बताया, 'उन्होंने हम सब को आंगन में बुलाया. हम सब वहां जमा हुए और उन्होंने हमारे नाम पूछने शुरू किये। जैसे ही उन्होंने आमिर खान का नाम सुना (27 वर्षीय युवक जो इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाता है), उसे अपने साथ खींचकर बाहर ले गये।
शाज़दा ने आगे बताया, 'हमने उन्हें रोकने की कोशिश की, पर उन्होंने कहा कि उन्हें तलाशी के लिए कुछ घर ढूंढ़ने के लिए आमिर की ज़रूरत है और हमने उन पर विश्वास किया. पर यह बिलकुल सच नहीं था।'
अगली सुबह जब वह लोग नज़दीकी पुलिस स्टेशन पहुंचे, उन्होंने आमिर को लॉकअप में बंद पाया। मक़बूल ने अधिकारियों से उसे हिरासत में लेने का कारण पूछा तो उन्होंने बस इतना कहा कि 'उसे 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस जब विरोध तेज़ होने की आशंका थी) के बाद रिहा कर दिया जायेगा।'
मगर ऐसा नहीं हुआ. 18 अगस्त को जब मक़बूल आमिर को देखने गये तो प्रमुख अधिकारी ने उन्हें बताया कि उसे श्रीनगर के केंद्रीय जेल में स्थानांतरित किया गया है।
परिजन शहर गये और आमिर के बारे में पूछा। उन्हें बताया गया कि आमिर और उनके गांव से तीन अन्य को पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिया गया है। इस क़ानून के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये या बिना किसी दोषारोपण के दो साल तक जेल में रखा जा सकता है।
इंडिपेंडेंट)
हिरासत में लिये गये अन्य लोगों में 25 वर्षीय युवा शाहिद अहमद भट भी थे, जिनके पिता मुश्ताक़ अहमद भट फार्मासिस्ट हैं और मक़बूल से कुछ मीटर की दूरी पर ही रहते हैं।
लेकिन मक़बूल के उलट, मुश्ताक़ को यह भी नहीं पता कि उनके बेटे को कहां रखा गया है। मुश्ताक़ बताते हैं, 'कुछ समय तक वह पुलिस स्टेशन में था, बाद में उन्हें बताया गया कि उसे श्रीनगर ले जाया गया है। केंद्रीय कारावास के अधिकारियों ने कहा कि शाहिद वहां नहीं है। मुझे नहीं पता कि मेरा बेटा कहां है, ज़िंदा है भी या नहीं।'
सरकारी अधिकारियों ने इनमें से किसी मामले पर टिप्पणी नहीं की, पर 5 अगस्त के फैसले के बाद की गयी गिरफ़्तारियों की व्यापकता को लेकर उनमें कोई झिझक नहीं थी। एक अधिकारी ने द इंडिपेंडेंट को बताया कि 4000 से अधिक लोगों को 5 अगस्त के बाद हिरासत में लिया गया है। हालांकि, सरकारी अधिकारी कोई एक निश्चित संख्या नहीं दे सके। आशंका जतायी जा सकती है कि शाहिद और आमिर जैसे कई लोग बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के सालों जेल में बिताने जा रहे हैं।
(1 सितम्बर 2019 को 'द इंडिपेंडेंट' में प्रकाशित ज़ुबैर सोफी की रिपोर्ट का साभार सहित अनुवाद 'कश्मीर ख़बर' द्वारा किया गया है।)
मूल रिपोर्ट : With meticulous planning then mass arrests and ‘torture’, Kashmir’s autonomy was lost